कुतुब परिसर में हिंदू और जैन देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं, पर पूजा करना कानून के खिलाफ होगा: एएसआई
कुतुब मीनार (Photo Credits: Pixabay)

नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कुतुब मीनार परिसर (Qutab Minar) में हिंदू और जैन मंदिरों के देवी-देवताओं के जीर्णोद्धार की मांग वाली याचिका का विरोध करते हुए मंगलवार को कहा कि हालांकि परिसर के अंदर हिंदू मूर्तियां मौजूद हैं, लेकिन यदि यहां पूजा-अर्चना की जाती है तो वह केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक के अंदर पूजा करना मौजूदा कानूनों का उल्लंघन होगा. पुरातात्विक निकाय ने एक हलफनामे में स्पष्ट किया, भूमि की किसी भी अवस्था का उल्लंघन कर मौलिक अधिकारों का लाभ नहीं उठाया जा सकता. कुतुब मीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तम्भ रखें, वहां मौजूद मूर्तियों को स्थापित कर पूजा करने की अनुमति दें: यूनाइटेड हिंदू फ्रंट

हलफनामे में कहा गया है, "संरक्षण का मूल सिद्धांत इस अधिनियम के तहत संरक्षित स्मारक घोषित और अधिसूचित स्मारक में किसी भी नई प्रथा को शुरू करने की अनुमति नहीं देता है. स्मारक की सुरक्षा के मद्देनजर, वहां पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति नहीं है."

हलफनामे में कहा गया है, "यह एएमएएसआर अधिनियम, 1958 (प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम) के प्रावधानों के विपरीत होगा."

सुनवाई के दौरान एएसआई की दलीलें एक मुकदमे की अस्वीकृति को चुनौती देने वाली अपील के दौरान आईं, जिसमें आरोप लगाया गया था कि महरौली में कुतुब मीनार परिसर के भीतर स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद एक मंदिर परिसर के स्थान पर बनाई गई थी.

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश पूजा तलवार ने इससे पहले 22 फरवरी को अपील करने की अनुमति देते हुए इस मामले में संस्कृति मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक और एएसआई, दिल्ली सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् के माध्यम से भारत संघ का जवाब मांगा था.

एएसआई ने अपने हलफनामे में कहा, "कुतुब मीनार पूजा स्थल नहीं है और केंद्र सरकार से इसे सुरक्षा मिलने के बाद से कुतुब मीनार या इसके किसी भी हिस्से में किसी भी समुदाय द्वारा पूजा नहीं की जाती."

एएसआई के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि अपीलकर्ता की आशंकाएं गलत हैं, क्योंकि एजेंसी मूर्तियों को हटाने या स्थानांतरित करने पर विचार नहीं कर रही है. वकीलों ने स्पष्ट किया कि मूर्तियों को स्थानांतरित करने में विभिन्न एजेंसियों से विभिन्न अनुमतियां लेनी होंगी.

अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि 1198 में गुलाम वंश के शासक कुतुब-उद्दीन-ऐबक के शासनकाल में लगभग 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ दिया गया था और उन मंदिरों के स्थान पर इस मस्जिद का निर्माण किया गया था.

एएसआई ने अपनी दलील में कहा कि देवताओं की मूर्तियां मौजूद रहने के बारे में इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता. इसमें कहा गया है कि कुतुब मीनार परिसर के निर्माण में हिंदू और जैन देवताओं की स्थापत्य सामग्री और छवियों का फिर से उपयोग किया गया था. कहा गया है, "इस परिसर में मौजूद शिलालेख से बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है. यह स्मारक जनता के देखने के लिए खुला है."