कांग्रेस ने अपनी 'गारंटियों' का रिपोर्ट कार्ड पेश किया, भाजपा ने जद(एस) के साथ गठबंधन पर मुहर लगाई
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बेंगलुरु, 23 दिसंबर : कर्नाटक 2024 में हाई-वोल्टेज राजनीति का गवाह बनने के लिए तैयार है, जहां कांग्रेस सरकार अपनी सभी पांच चुनावी गारंटियों को लागू करके अपनी जमीन मजबूत करने का प्रयास कर रही है. उत्तर भारत के तीन राज्यों में अपनी जीत और जद (एस) के साथ गठबंधन से उत्साहित भाजपा राज्य की सभी 28 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने की बात आत्मविश्वास के साथ कर रही है. दूसरी ओर, कर्नाटक में कांग्रेस खेमा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जोरदार प्रचार अभियान के बावजूद तेलंगाना चुनावों में पार्टी की जीत से उत्साहित है.

कर्नाटक कांग्रेस ने मुफ्त बिजली, मुफ्त 10 किलो चावल, महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा और परिवार की मुखिया महिलाओं के लिए दो हजार रुपये के मासिक भत्ते की अपनी गारंटी को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया. अब कांग्रेस सरकार पांचवीं और आखिरी गारंटी यानी नए स्नातकों और डिप्लोमा धारकों के लिए भत्ते को लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार है. राज्य में कांग्रेस के खिलाफ भाजपा और जद (एस) का एक साथ आना और वरिष्ठ वोक्कालिगा नेता आर. अशोक को विपक्ष के नेता और पूर्व सीएम बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे, भाजपा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र को भाजपा आलाकमान द्वारा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्ष के बीच कड़ी टक्कर का संकेत मिलता है. यह भी पढ़ें : ‘India Block’: नाराजगी के बावजूद CM नीतीश कुमार के पास ‘इंडिया ब्लॉक’ के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं

राज्य में अगड़े समुदायों और अन्य लोगों के बीच राजनीतिक संघर्ष के लिए भी मंच तैयार है. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया अहिंदा समूहों के हितों की वकालत कर रहे हैं और जाति जनगणना रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, जिससे अगड़े समुदायों को निराशा हो रही है. राज्य की राजनीति में प्रभावशाली माने जाने वाले वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के नेताओं और मठाधीशों ने सिद्दारमैया सरकार को रिपोर्ट स्वीकार न करने की चेतावनी दी है.

दोनों समुदायों के मंत्रियों और विधायकों ने इस संबंध में सिद्दारमैया से मुलाकात की है और खुलकर अपनी आपत्तियां बताई हैं. काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में बयान दिया था कि अगड़ी जातियां जाति जनगणना का विरोध करती हैं और कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार कोई अपवाद नहीं हैं. उन्होंने कहा, सभी अग्रिम समुदाय के नेताओं की सोच एक जैसी है. शिवकुमार को बाद में स्पष्ट करना पड़ा कि वह पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाने के विचार के विरोधी नहीं हैं और आपत्ति उचित जनगणना कराने को लेकर थी.

पूर्व एमएलसी और वरिष्ठ भाजपा नेता कैप्टन (सेवानिवृत्त) गणेश कार्णिक ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि पिछले 25 से 30 वर्षों में कर्नाटक की राजनीति लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए मतदाताओं की विशिष्ट प्रतिक्रिया का रुझान दिखाती है. 1991 से लेकर अब तक जब भी लोकसभा चुनाव की बात आई तो यह हमेशा भाजपा के पक्ष में गया है. यह पहला कारक है. दूसरा, कर्नाटक के पिछले विधानसभा चुनाव में अगर कुल वोटों की गिनती की जाए तो भाजपा ने अपना आधार नहीं खोया है. उन्होंने समझाया, “वास्तव में हमें 2018 के चुनावों की तुलना में 8.65 लाख अधिक वोट मिले. 2018 में, हालांकि भाजपा को 110 सीटें मिलीं, लेकिन कांग्रेस को तब भाजपा से 6.25 लाख वोट ज्यादा मिले थे. उसे कम सीटें मिलीं. पिछले चुनावों में भाजपा ने अपना वोट आधार नहीं खोया, जैसा कि सभी ने कहा था.”

उन्होंने कहा, “हुआ यह कि 2018 में कांग्रेस को भाजपा से 6.25 लाख वोट ज्यादा मिले. 2023 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस के वोट 15 लाख कम हो गए हैं. इन वोटों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को गया. सत्तारूढ़ दल को इस बार 24 लाख वोट अतिरिक्त मिले. यह जद (एस) के वोट आधार का खिसकना है जिसने नतीजों को (कांग्रेस के पक्ष में) झुका दिया. सिद्दारमैया और डी.के. शिवकुमार को आगे करना एक सोची-समझी रणनीति थी. मैसूरु क्षेत्र में जद (एस) और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के समर्थक कांग्रेस में स्थानांतरित हो गए. सिद्दारमैया ने चुनाव के दौरान बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का बयान दिया था जिसे भगवा पार्टी ने प्रमुखता से उठाया था. यह माना गया था कि इससे भाजपा को मदद मिलेगी, लेकिन इस घटनाक्रम से जद(एस) का मुस्लिम वोट कांग्रेस की ओर चला गया. अब, मतदान के छह महीने बाद, कई विकास हुए हैं, जिनमें प्रमुख है अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, जो भाजपा के लिए एक बड़ी लहर पैदा करेगा.

कार्णिक ने कहा, “गारंटी योजनाएं भ्रम के कारण कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं. शिवकुमार और सिद्दारमैया के बीच अब मतभेद पैदा हो गए हैं.'' उन्होंने कहा, “विधायक और मंत्री लोकसभा चुनाव के लिए काम करने के मूड में नहीं हैं. विकास के लिए धन नहीं होने से लोगों में विश्वासघात की भावना पैदा हुई है. तीन राज्यों में भाजपा की जीत का असर पड़ेगा. तेलंगाना में कांग्रेस की जीत महत्वहीन है. “हम 20 से कम सीटें नहीं जीतेंगे. आज पूरे देश में यह अहसास हो रहा है कि भाजपा सत्ता में आएगी. इससे दोराहे पर खड़े लोग भी भाजपा की तरफ जाएँगे. पीएम मोदी के नाम पर वोट पड़ते हैं. फरवरी में केंद्रीय बजट पेश होगा, इसका भी असर पड़ेगा.'

राजनीतिक विश्लेषक बी समीउल्ला ने कहा कि कर्नाटक की राजनीति में वोक्कालिगा और लिनागायत समुदायों के बीच ध्रुवीकरण देखा जा रहा है. कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवारों की तलाश कर रही है, जबकि भाजपा के पास पूर्व मंत्रियों को उम्मीदवार बनाने का विकल्प है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक सीट जीती थी, इस बार यह छह, सात या आठ सीटों तक जा सकती है. यह देखना अभी बाकी है कि जाति जनगणना को लेकर अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़े वर्ग एक साथ आएंगे या नहीं. उन्होंने बताया कि अभी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी.

पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी ने कहा था कि राज्य की राजनीति में एकनाथ शिंदे और अजित पवार हैं, जो राज्य में महाराष्ट्र जैसे नाटकीय घटनाक्रम की ओर इशारा कर रहे हैं. इस संबंध में उनके बार-बार दिए जाने वाले बयान और कम समय में कांग्रेस सरकार के गिरने की भविष्यवाणी आने वाले दिनों में भारी राजनीतिक हलचल का संकेत दे रही है.पूर्व सीएम बसवराज बोम्मई ने भविष्यवाणी की है कि गारंटी योजनाओं के कारण, कर्नाटक की अर्थव्यवस्था नष्ट हो जाएगी क्योंकि अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करने की कोई योजना नहीं है, जबकि अशोक ने कहा है कि ऑपरेशन लोटस को अंजाम देने की कोई आवश्यकता नहीं है और कांग्रेस सरकार अपने आप गिर जाएगी. . लोकसभा चुनाव से पहले अगले कुछ महीनों में राज्य में क्या राजनीतिक घटनाक्रम सामने आएगा, यह तो समय ही बताएगा.