नई दिल्ली: केंद्र के सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 2005 को संशोधित करने के फैसले का कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल जोरशोर से विरोध कर रहे है. सभी का दावा है कि मोदी सरकार आरटीआई को कमजोर बना रही है. हालांकि विपक्ष के विरोध के बीच सोमवार को आरटीआई संशोधन बिल (RTI Amendment Bill) लोकसभा (Lok Sabha) में पास हो गया.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को कहा कि मोदी सरकार का आरटीआई में संशोधन का फैसला गलत है. उन्होंने जोरदार हमला बोलते हुए कहा, “यह साफ है कि मौजूदा केंद्रीय सरकार आरटीआई कानून को एक विलेन के रूप में देखती है और केंद्रीय सूचना आयोग की स्थिति और स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहती है, जिसे केंद्रीय चुनाव आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ रखा गया था.”
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा, “केंद्र सरकार अपने उद्देश्यों को हासिल करने के लिए अपने विधायी बहुमत का उपयोग कर सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया में यह हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को अलग कर देगी.”
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क्या हुए बदलाव-
आरटीआई एक्ट में प्रस्तावित संशोधन में कहा गया है कि केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पाँच वर्ष (या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो) के लिए निर्धारित किया जाता है. यानि कि अब कार्यकाल का फ़ैसला केंद्र सरकार करेगी. एक अन्य संशोधन का प्रस्ताव है कि मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होंगे और सूचना आयुक्त के भी चुनाव आयुक्त के जैसे ही होंगे. इन दो बदलावों के कारण विपक्ष आरटीआई की स्वतंत्रता छीनने का दावा कर रही है.
केंद्र सरकार का तर्क-
मोदी सरकार की दलील है कि प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत ऐसे प्रावधानों को सक्षम बनाना है, जिनके तहत मुख्य सूचना आयुक्तों, सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों के वेतनमान, भत्तों और सेवा शर्तों के संबंध में नियम बनाए जा सकें. इस समय सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत ऐसा कोई भी प्रावधान उपलब्ध नहीं है.