बिहार (Bihar) में अगर आप सरकारी नौकरी कर रहे हैं और काम में ढिलाई बरती तो अब आपको नौकरी से हाथ भी धोना पड़ सकता है. सरकार अब सरकारी सेवकों की सत्यनिष्ठा, कार्य दक्षता और आचार की समीक्षा करेगी. इसके लिए समिति गठित की गई है, जो 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के सरकारी सेवकों के कामकाज की समीक्षा करेगी. समान्य प्रशासन विभाग ने 50 वर्ष से ऊपर के सरकारी सेवकों के कामकाज की समीक्षा करने के लिए पिछले वर्ष 23 जुलाई को एक संकल्प जारी किया था. इसके तहत इस उम्र सीमा में आने वाले वैसे सरकारी सेवक, जिनकी कार्यदक्षता या आचार ऐसा नहीं है, जिससे कि उन्हें सेवा में बनाए रखना लोकहित में हो, उनके कार्यों की समीक्षा कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की अनुशंसा करनी है.
इसी संकल्प के मद्देनजर समिति का गठन किया गया है. गृह विभाग (आरक्षी शाखा) द्वारा जारी आदेश में समूह 'क' के सेवकों के कार्यकलाप की समीक्षा के लिए बनी समिति के अध्यक्ष गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव होंगे. इस समिति में बतौर सदस्य विभागीय सचिव, विशेष सचिव (आईपीएस), गृह विभाग और विभागीय मुख्य निगरानी पदाधिकारी होंगे. इसी तरह समूह 'ख,' 'ग' एवं अवगीर्कृत सेवकों के कामकाज की समीक्षा के लिए अलग समिति बनाई गई है, जिसके अध्यक्ष गृह विभाग के सचिव को बनाया गया है. सरकारी सेवकों की कार्यदक्षता की समीक्षा प्रत्येक साल दो बार की जाएगी. अगर वे ऐसा करने में सक्षम नहीं रहे तो सरकार उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेज देगी. यह भी पढ़े: बिहारः साल 2013 में JDU नेता सुमारिक यादव हत्याकांड में RJD की पूर्व विधायक कुंती देवी को उम्रकैद की सजा
इधर, राजद इस आदेश को लेकर भड़क गया है. राजद इसे तुगलकी फरमान बता रहा है. राजद के वरिष्ठ नेता मनोज कुमार झा ने कहा, यह उस राज्य का तुगलकी फरमान है, जहां कि एक बड़ी आबादी को 40 से 45 वर्ष की उम्र में एक अदद नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है और हां, 'अक्षमता' अगर पैमाना हो तो 'शासनादेश' से उत्पन्न इस सरकार को ही रिटायर हो जाना चाहिए.