बिहार : क्या वोट के चक्कर में ढोई जा रही शराबबंदी
बिहार में शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हो रही है.
बिहार में शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हो रही है. ऐसे में क्या शराबबंदी कानून की प्रासंगिकता पर समीक्षा करने का समय आ गया है?बिहार में सारण प्रमंडल के तीन जिलों छपरा (सारण), गोपालगंज और सिवान में एकबार फिर जहरीली शराब से बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई. मुजफ्फरपुर में भी जहरीली शराब पीने से कथित तौर पर दो लोगों की मौत हो गई है. खबरों के अनुसार, दो अन्य प्रभावितों का इलाज चल रहा है और तीन लोगों ने आंखों की रोशनी खो दी है.
अब शराबबंदी पर सर्वे क्यों करा रही है बिहार सरकार
हालांकि प्रशासन ने इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन मृतकों के परिजनों का कहना है कि दोनों ने मुर्गा पार्टी की थी, जिसमें शराब पी गई थी. अहम पक्ष यह है कि राज्य में आठ साल से शराबबंदी कानून लागू है. इसके बावजूद शराब की जब्ती, खरीद-बिक्री के कारण लोगों की गिरफ्तारी और जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतें सुर्खियां बनती हैं.
वर्तमान संदर्भ में जहरीली शराब के जानलेवा मामलों की खबरें 15 अक्टूबर से ही आ रही थीं. एकबार फिर पुलिस-प्रशासन इसे "जहरीले पेय पदार्थ से मौत" की संज्ञा देता रहा. जहरीली शराब का कहर एक-एक कर 16 गांवों में फैल गया और मृतकों की संख्या बढ़ने लगी, तो कोहराम मच गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मृतकों की संख्या 60 के पार पहुंच चुकी है. कुछ लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है. हालांकि, मृतकों का प्रशासनिक आंकड़ा 37 ही है.
शराबबंदी वाले राज्य में शराब की लत के शिकार बने सैकड़ों पुलिसवाले
हर ऐसे हादसे के बाद जैसा होता रहा है, उसी राह पर हालिया मौतों के बाद भी वरिष्ठ अधिकारियों की आवाजाही बढ़ी, छापेमारी तेज हो गई, धड़ाधड़ लोग गिरफ्तार किए जाने लगे. 21 अक्टूबर को सारण डीआईजी नीलेश कुमार ने पत्रकारों को बताया कि इस मामले में गठित एसआईटी ने सीवान, गोपालगंज और छपरा में त्वरित कार्रवाई करते हुए 14 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है.
क्यों है जहरीली शराब की गिरफ्त में बिहार
गिरफ्तार किए गए लोगों में कई महिलाएं भी हैं. तीन आरोपी पहले ही आत्मसमर्पण कर चुके हैं. भगवानपुर हाट और मशरख के थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है. इससे पहले भी जब-जब ऐसी घटनाएं हुईं, राज्य सरकार ने हर संभव कार्रवाई की.
मद्य निषेध विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 1 अप्रैल 2016 को शराबबंदी लागू होने के बाद से अब तक पुलिस तथा मद्य निषेध विभाग द्वारा 69,216 छापेमारियां की जा चुकी हैं. शराबबंदी कानून के उल्लंघन के आरोप में करीब 8.43 लाख मामले दर्ज किए गए और अब तक साढ़े 12 लाख से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं. आंकड़ों के अनुसार, 2016 से अब तक कुल 418 लोगों की मौत हुई है.
जहरीली शराब से मरने वालों में किस आर्थिक वर्ग के लोग?
पत्रकार अमित पांडेय कहते हैं, "हर बार ऐसे हादसों के शिकार अधिकतर रोज कमाने-खाने वाले ही होते हैं. इस बार भी छपरा, सिवान या गोपालगंज के इन गांवों में विवाह कार्यक्रम या कोई पार्टी नहीं हुई थी. ये सभी मजदूर थे, जो दिनभर मजदूरी करने के बाद शाम को पीते थे. छोटी-मोटी पार्टी का जश्न भी मांस, मछली और सस्ती शराब से मनाते थे. इस बार भी स्प्रिट से ही बनी शराब ने कहर बरपाया."
भगवानपुर हाट के मेले में या फिर मशरख प्रखंड के इब्राहिमपुर गांव में मछली पार्टी के लिए भी स्प्रिट वाली शराब ही खरीदी गई. सिवान जिले के बिलासपुर गांव में रजनीकांत और उनकी पत्नी माला को शराब बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.
रजनीकांत ने पुलिस को बताया कि उसने एक सप्लायर से लीटरभर स्प्रिट खरीदी, उसमें दो लीटर पानी मिलाया और शराब बनाई थी. इस शराब के 100 मिलीलीटर का पाउच 100 रुपये में बेचा. माला ने यह भी बताया कि जब लोग मरने लगे, तो उन्होंने शराब को शौचालय में बहा दिया.
बिहार में ‘रहस्यमय’ तरीके से लगातार हो रही मौत
अमित पांडेय कहते हैं, "ग्रामीणों का कहना था कि रजनीकांत अपने घर से शराब बेचता है, इस बात की जानकारी हर किसी को थी. तभी उन्होंने रजनीकांत से खरीदकर शराब पी. यह कैसे मान लिया जाए कि स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना नहीं थी?" इससे पहले भी पूरे थाने को शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने वालों का साथ देने के आरोप में लाइन हाजिर तक किया जा चुका है.
20 अक्टूबर को पश्चिम चंपारण जिले के बैरिया में दारोगा प्रदीप सिंह पर शराब के धंधेबाजों से साठगांठ का आरोप लगाते हुए उग्र लोग सड़क पर उतर आए. एसपी शौर्य सुमन ने आरोपी दारोगा को निलंबित कर दिया है. ऐसी घटनाएं रेखांकित करती हैं कि पूर्ण शराबबंदी के लक्ष्य को हासिल करने में किस स्तर तक परेशानी आ रही है.
पुलिस और जनता, दोनों परेशान
लंबे समय से आरोप लग रहे हैं कि शराबबंदी के बावजूद बिहार में देसी-विदेशी शराब का अवैध कारोबार जारी है. बार-बार पकड़ी जाने वाली खेप तथा समय-समय पर इन मामलों में पुलिसकर्मियों की संलिप्तता के मामले सामने आते रहे हैं. डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी ने बताया, "आखिर एक ही बात को कितनी बार कहा जाए? भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने भर से कुछ नहीं हो जाएगा. पूरा नेक्सस है."
एके चौधरी कहते हैं, "शराबबंदी के उद्देश्य अच्छे थे, लेकिन अब लोगों पर इसकी दोतरफा मार पड़ रही है. ठीक है कि मामला महिलाओं के वोट का है, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि उनका सुकून बरकरार है कि नहीं. मुझे तो लगता है कि इसी चक्कर में वे ज्यादा पिस रही हैं."
नशा विरोधी अभियान के संचालक जय प्रजापति भी शराबबंदी कानून की समीक्षा का समर्थन करते हैं, "2016 में जब शराबबंदी लागू हुई थी, तब वाकई काफी सुधार दिखा था. किंतु धीरे-धीरे जब यह आर्थिक दोहन का माध्यम बनने लगा, तो परिदृश्य बदल गया. अब तो पुलिस की हनक भी खत्म हो गई है और धंधेबाजों का भय भी. हर हाल में इस कानून की समीक्षा होनी चाहिए."
हालांकि, पुलिसकर्मियों की भी अपनी समस्याएं हैं. नाम ना छापने की शर्त पर बेगूसराय जिले के एक थाना प्रभारी ने बताया, "कितनी बार पकड़कर भेजूं? भेजता हूं, तो 15-20 दिन बाद (आरोपी) बाहर आ जाता है. यहां तो धंधेबाजों ने इन लड़कों (डिलिवरी करने वाले) को बाइक तक दे दी है. पैसा भी खूब मिल जाता है. रोज नया चेहरा देखने को मिलता है. एक थाने में केवल यही काम तो रह नहीं गया है. पकड़ने जाओ, तो पुलिस ही सबसे सॉफ्ट टारगेट बन जाती है. जान पर बन आती है. आप लोग भी जानते हैं कि धंधेबाज खेप लाने के लिए कैसे-कैसे तरीके ईजाद करते हैं."
क्यों नहीं हो रही है शराबबंदी कानून की समीक्षा
राज्य में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से ही इसके प्रावधानों पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कानून में कई बार संशोधन भी किए गए. जानकारों के मुताबिक अब सत्ता पक्ष या विपक्ष, दोनों ही कहीं-न-कहीं बीच के रास्ते की तलाश में है. सरकारी मानव बल तथा संसाधन का बड़ा हिस्सा भी इसे लागू करने में खर्च हो रहा है, जबकि सरकार को सालाना करीब 20,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है.
एक गंभीर आरोप यह है कि शराब की खरीद-बिक्री का समानांतर अर्थतंत्र खड़ा हो जाने के कारण अवैध राशि भ्रष्ट अफसरों-नेताओं व धंधेबाजों की जेब में जा रही है. ऐसे में कानून की समीक्षा की बात उठने लगी है.
'जन सुराज पार्टी' की स्थापना के मौके पर और इससे पहले की अपनी पदयात्राओं में भी प्रशांत किशोर साफ कहते रहे हैं कि राज्य में अगर उनकी सरकार बनी, तो वह मात्र 15 मिनट के अंदर शराबबंदी को खत्म कर देंगे. वह शराबबंदी से होने वाले नुकसान की भी चर्चा करते रहे हैं. इसी तरह बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव भी शराबबंदी को विफल बताते हैं.
बिहार: पार्टियों की भीड़ में कितनी जगह बना सकेंगे प्रशांत किशोर
बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी सितंबर में शराबबंदी की मौजूदा नीति की समीक्षा किए जाने की मांग की. 'इंडिया टुडे' से बातचीत में उन्होंने तो शराबबंदी के क्रियान्वयन की आलोचना करते हुए यहां तक कह दिया कि इसका असर केवल गरीबों पर होता है. गरीब लोगों ने अगर 250 मिलीलीटर शराब पी ली, तो उनपर मुकदमा चलाकर उन्हें जेल भेज दिया जाता है. दूसरी ओर हजारों-लाखों लीटर शराब की तस्करी करने वालों को छोड़ दिया जा रहा है. मांझी ने नीतीश कुमार को सुझाव दिया कि वह चौथा सर्वेक्षण करवाएं और इस मुद्दे का समाधान करें.
राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, "सामाजिक सुधार के बेहतर उद्देश्य से शुरू किया गया एक अभियान वाकई अब वोटों के नफा-नुकसान के चक्कर में उलझ गया है. सत्ता में होने के कारण सरकार की जिम्मेदारी थोड़ी बढ़ जाती है. जैसी एकता इसे लागू करते वक्त दिखाई गई थी, वही एकता दिखाकर वर्तमान परिस्थिति का समाधान निकाला जाए, ताकि किसी बाप को अपना बेटा न गंवाना पड़े."