Canal Man: हाथ में फावड़ा लेकर फिर असंभव को संभव करने निकले बिहार के लौंगी भुइयां, 20 साल में खोदी थी 5 km लंबी नहर, अब 5 गांवों के लिए कर रहे यह काम

इस संसार में असंभव जैसा कुछ भी नही है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण बिहार के गया में सामने आया है. बीते साल ग्रामीणों की तरक्की के लिए अकेले 3 किलोमीटर लंबी नहर बनाने वाले गया के लौंगी भुइयां (Laungi Bhuiyan) अब एक और नहर बना रहे है, वो भी अकेले, बिना किसी सरकारी मदद के.

लौंगी भुइयां (Photo Credits: ANI)

पटना: इस संसार में असंभव जैसा कुछ भी नही है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण बिहार (Bihar) के गया (Gaya) में सामने आया है. बीते साल ग्रामीणों की तरक्की के लिए अकेले 3 किलोमीटर लंबी नहर बनाने वाले गया के कैनाल मैन (Canal Man) लौंगी भुइयां (Laungi Bhuiyan) अब एक और नहर बना रहे है, वो भी अकेले, बिना किसी सरकारी मदद के. प्रधानमंत्री मोदी ने सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना राष्ट्र को समर्पित की

न्यूज एजेंसी एनएनआई से बात करते हुए इमामगंज और बांकेबाजार ब्लॉक की सीमा पर बसे कोलिथवा गांव के निवासी लौंगी भुइयां ने कहा "मैंने खुद ही नहर खोदने का फैसला किया है और मुझे पूरा यकीन है कि इससे पांच गांवों में पानी जल्द पहुंच जाएगा." उन्होंने कहा “दूसरी नहर जो मैं अभी खोद रहा हूं, उससे आस पास के 5 गांवों के खेतों को पानी मिलने से वहां खेती हो सकेगी, जिससे इस क्षेत्र की गरीबी दूर होगी. दूसरी नहर में भी मछली पकड़ने का काम किया जा सकता है.”

लौंगी भुइयां बीते साल तब चर्चा में आ गए, जब उन्होंने इमामगंज और बांकेबाजार की सीमा पर जंगल में बसे कोठीलवा गांव के लोगों की गरीबी दूर करने के लिए पांच किलोमीटर लंबी नहर खोद डाली. भुइयां ने 20 साल में पांच किलोमीटर लंबी, चार फुट चौड़ी व तीन फुट गहरी नहर की खुदाई कर किसानों के खेतों तक पानी पहुंचा दिया. उनके इस काम की खूब प्रशंसा भी हुई.

इसलिए अकेले खोदी 5 किमी लंबी नहर

दरअसल लौंगी ने जब सूखे की मार के कारण गांव के युवाओं को बाहर जाते देखा तो उन्हें पीड़ा हुई और उन्होंने यह काम करने की ठानी थी. दरअसल, गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां सिंचाई के लिए बारिश का पानी रुक नहीं पाता है. यह गांव गया शहर से लगभग 80 किमी दूर है और वन क्षेत्र से घिरा हुआ है. चूंकि गांव में खेती के अलावा कमाई का कोई जरिया नहीं था इसलिए बड़ी संख्या में युवा काम करने बड़े शहरों में चले गए और गांव में महिलाएं-बच्चे अकेले रह गए.

2001 में बनाई थी योजना

ग्रामीणों के अनुसार, अगस्त 2001 में लौंगी ने बागेठा सहवासी जंगल में स्थित एक प्राकृतिक जल स्रोत से गांव तक एक नहर खोदने का फैसला किया था. ग्रामीण आमतौर पर अपने मवेशियों को पानी पिलाने के लिए वहीं ले जाते थे. लौंगी को यह बात पता थी कि इसका पानी स्रोत ग्रामीणों के खेतों में सिंचाई करने के लिए पर्याप्त होगा, लेकिन गांव तक इसके पहुंचने का रास्ता नहीं था.

'पागल' कहते थे ग्रामीण

जिसके बाद लौंगी भुइयां ने एक जमीनी सर्वेक्षण किया और नहर के लिए रास्ते को चिह्न्ति किया. 20 साल तक लगातार काम करने के बाद आखिरकार उसने चार फीट चौड़ी और तीन फीट गहरी नहर खोद ली. दशरथ मांझी की तरह ही ग्रामीणों ने शुरू में लौंगी को 'पागल' कहा. क्योंकि वह इतने बड़े काम के लिए केवल पारंपरिक उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे थे. हालांकि बाद में उनके अथक प्रयासों को देखते हुए जिला प्रशासन भी मदद के लिए आगे आया और प्रशासन ने नहर का नाम लौंगी नहर ही रख दिया. साथ ही गर्मियों के लिए बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए छोटा तालाब भी बनवाया.

'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी की दिला दी याद

लौंगी भुइयां के इस साहसिक काम ने बिहार के ही 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी की याद दिला दी, जिन्होंने 22 साल तक कड़ी मेहनत कर एक पहाड़ को चीर कर अपने गांव के लिए सड़क बना दिया था. दशरथ की मेहनत का नतीजा था कि उनके गांव से कस्बाई बाजार वजीरगंज की दूरी 55 किलोमीटर से घटकर 15 किमी रह गई.

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