Bharatiya Nyaya Sanhita: विवाहेतर संबंध फिर बनेंगे अपराध! समलैंगिकता में असहमति से बनाया यौन संबंध तो जाना पड़ेगा जेल? कानून में होगा बदलाव
गृह मंत्रालय की संसदीय समिति भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री यानी व्यभिचार यानी विवाहेतर संबंध को फिर से अपराध घोषित करने की सिफारिश कर सकती है. इस पर विचार किया जा रहा है.
Gender-Neutral Adultery & Non-Consensual Sex Proposal: lपांच साल पहले खत्म हो चुका अडल्ट्री से जुड़ा कानून दोबारा आना वाला है. हाल ही में इसकी चर्चा तेज हो गई है. गृह मंत्रालय की संसदीय समिति भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री यानी व्यभिचार यानी विवाहेतर संबंध को फिर से अपराध घोषित करने की सिफारिश कर सकती है. इस पर विचार किया जा रहा है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संसदीय समिति भारतीय न्याय संहिता में रद्द हो चुके दो कानूनों को फिर से जोड़ने का सुझाव दे सकती है. पहला कानून अडल्ट्री से जुड़ा है वहीं दूसरा समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध से जुड़ा है. One Nation One Election: 'एक देश एक चुनाव' पर कमेटी की मीटिंग खत्म, विधि आयोग शेयर किया रोडमैप
संसदीय समिति ने क्या सुझाव दिए हैं?
विवाहेत्तर संबंध को लेकर
आईपीसी की धारा 497 के अडल्ट्री (व्यभिचार) यानी विवाहेत्तर संबंध को अपराध (Crime) माना जाता था. ये धारा 1860 में ही IPC में जोड़ी गई थी. इसमें अडल्ट्री को परिभाषित करते हुए कहा गया था- अगर कोई पुरुष किसी शादीशुदा महिला से उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो ऐसे मामले में महिला के पति की शिकायत पर उस पुरुष पर केस दर्ज किया जा सकता है.
इस कानून में 2 पेंच थे
पहला- अगर कोई शादीशुदा मर्द किसी कुंवारी या विधवा महिला के साथ सहमति से यौन संबंध बनाता है तो उसे अडल्ट्री का दोषी नहीं माना जाएगा. दूसरा- महिलाओं को इसमें कभी दोषी नहीं माना जाता था.
धारा 497 के तहत दोषी पाए जाने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था. सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा - जो कानून व्यक्ति की गरिमा और महिलाओं के साथ समान व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वो संविधान के खिलाफ है. Death Penalty For Mob Lynching: मॉब लिंचिंग में मौत की सजा, राजद्रोह कानून खत्म, संसद में बोले अमित शाह
समलैंगिक संबंधों को लेकर पहले का कानून
IPC की धारा 377 के तहत, अगर कोई व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त कर दिया था. इससे सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर हो गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि असहमति से बनाए गए यौन संबंध को धारा 377 के तहत अपराध ही माना जाएगा.
संसदीय समिति का सुझाव
समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध और विवाहेतर संबंध को क्राइम माना जाए. इन्हें जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए. विवाहेतर संबंध में महिला के लिए भी सजा का प्रावधान हो.
समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध को लेकर कोई कानून नहीं है. समिति इसे भारतीय न्याय संहिता में शामिल करने का सुझाव दे सकती है. इसके दायरे में पुरुषों के अलावा महिलाएं और ट्रांसजेंडर भी आ सकते हैं.