Bharat Mata Mandir Varanasi: बेहद खास है धर्मनगरी वाराणसी स्थित भारत माता का मंदिर, दिखती है अखंड भारत की अद्भुत छवि
यह मंदिर अनोखा इसलिए है क्योंकि यहां अखंड भारत की छवि है. भारत माता मंदिर के गर्भ गृह में अखंड भारत का नक्शा मौजूद है. यह नक्शा सभी के आकर्षण का केंद्र बनता है.
वाराणसी: धर्मनगरी वाराणसी Varanasiमें भारत माता (Bharat Mata Mandir) का एक बेहद अनोखा मंदिर है. यह मंदिर अनोखा इसलिए है क्योंकि यहां अखंड भारत की छवि है. भारत माता मंदिर के गर्भ गृह में अखंड भारत का नक्शा मौजूद है. यह नक्शा सभी के आकर्षण का केंद्र बनता है. अखंड भारतवर्ष का मानचित्र जमीन पर उकेरा गया है. देश-विदेश से हजारों लोग हर वर्ष मंदिर देखने आते हैं. भारत माता मंदिर में जो मानचित्र है उसमें अखंड भारत को दर्शाया गया है जिसकी सीमाएं अफगानिस्तान, पाकिस्तान सहित बलूचिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार (बर्मा) और श्रीलंका (सीलोन) मकराना (पाकिस्तान) तक फैली हुईं थी.
इस मानचित्र में पहाड़ों, नदियों को थ्री डी की तरह उकेरा गया है. विशेष पत्थरों से बने इस मंदिर में अखंड भारत मां का नक्शा अद्भुत और अद्वितीय है. इसमें अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका सभी भारत के हिस्से दर्शाए गए हैं. इस खास मानचित्र को साल 1917 के मान्य मानचित्र के आधार पूरी तरह गणितीय सूत्रों के आधार पर उकेरा गया.
इस नक्शे में 450 पर्वत श्रृंखलाओं और चोटियों, विशाल मैदानों, जल निकायों, नदियों, समुद्रों और पठार का विस्तृत लेआउट है. नक्शा उस पर उल्लिखित भौगोलिक संस्थाओं के पैमाने और गहराई को भी बखूबी दर्शाता है. Republic Day 2021: उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित चंद्रेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग को तिरंगे के रंग में सजाया गया, देखें मनमोहक तस्वीर.
इस मानचित्र में माउंट एवरेस्ट और K2 को भी दिखाया गया है. यहां आपको चीन की ग्रेट वॉल भी दिखा देगी. उपमहाद्वीप के चारों ओर महासागरों में कई छोटे द्वीप भी दिखेंगे. जिन्हें लेजर लिंच की मदद से देखा जा सकता है.
भारत माता मंदिर का निर्माण 1918 में शुरू हुआ और 1924 में यह पूरा हुआ. महात्मा गांधी ने वाराणसी में 25 अक्टूबर 1936 को भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया. इस अवसर पर हिंदी कवि मैथिली शरण गुप्त जिन्हें राष्ट्रकवि भी कहां जाता है उन्होंने एक कविता की रचना की थी.
इस भव्य मंदिर को बनाने वाले शिल्पकारों के नाम भी यहां पूरे सम्मान के साथ शिलालेख पर उकेरे गए हैं. यह मंदिर दुर्गा प्रसाद खत्री के नेतृत्व में बनाया गया था. मिस्त्री सुखदेव प्रसाद व शिवप्रसाद ने 25 अन्य बनारसी शिल्पकारों के साथ मिलकर करीब छह सालों में यह मंदिर तैयार किया था.