इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना है कि पति द्वारा गृहिणी पत्नी (जिसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है) के नाम पर खरीदी गई संपत्ति पारिवारिक संपत्ति है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू पतियों द्वारा अपनी पत्नियों के नाम पर संपत्ति खरीदना आम और स्वाभाविक है. जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने मृत पिता की संपत्ति के सह-स्वामित्व की घोषणा के लिए बेटे के दावे पर सुनवाई करते हुए कहा, "यह न्यायालय भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत इस तथ्य के अस्तित्व को मान सकता है कि हिंदू पति द्वारा अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति, जो गृहिणी है और उसके पास आय का स्वतंत्र स्रोत नहीं है, परिवार की संपत्ति होगी. Read Also: बीच सड़क पर जुड़वा बच्चों को जन्म देने के लिए मजबूर हुई मां, नवजात शिशुओं की मौत पर हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य को लगाई फटकार.
कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित न हो जाए कि संपत्ति पत्नी द्वारा अर्जित आय से खरीदी गई थी, तब तक यह माना जाएगा कि संपत्ति पति द्वारा अपनी आय से खरीदी गई है. अदालत ने कहा कि उपहार में दी गई संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व केवल साक्ष्यों के अवलोकन के बाद ही घोषित किया जा सकता है.
कोर्ट ने बताया कि बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 की धारा 2(9)(बी) के प्रावधान (iii) में प्रावधान है कि पति द्वारा अपनी पत्नी या बच्चों के नाम पर खरीदी गई संपत्ति को बेनामी संपत्ति नहीं कहा जा सकता है. ऐसी संपत्ति पति द्वारा अपने स्रोत से खरीदी गई मानी जाएगी.
कोर्ट ने माना कि ऐसी परिस्थितियों में, संपत्ति को तीसरे पक्ष के अधिकारों के निर्माण से बचाना आवश्यक है. अदालत ने कहा कि "ऐसे मामले में संपत्ति को आगे स्थानांतरित करने या उसकी प्रकृति को बदलने के खिलाफ सुरक्षा आवश्यक है, यदि उसे संरक्षित नहीं किया जाता है, तो संभावना है कि संपत्ति हस्तांतरित की जा सकती है या उस स्थिति में संपत्ति की प्रकृति बदली जा सकती है, तदनुसार, अपीलकर्ता की दलील के अनुसार निषेधाज्ञा देते हुए अपील को अनुमति दी गई.