निर्भया की मां ने बयां की देश की कड़वी सच्चाई, जानकर आप भी करेंगे तारीफ
निर्भया की मां ने बेटी की मौत के बाद निर्भया ज्योति नाम से एक ट्रस्ट बनाया था, जिसके जरिए वह दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं और बच्चियों के मुद्दों पर काम करती हैं.
नई दिल्ली. कहा जाता है कि समाज या समुदाय की खुशहाली में महिलाओं की सबसे बड़ी भूमिका होती है, लेकिन यह कथन हमारे देश में महिलाओं की स्थिति से बिलकुल अलग है, जहां आज भी महिलाएं समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी हैं. राष्ट्रीय राजधानी में वर्ष 2012 के 16 दिसंबर को चलती बस में क्रूरतम सामूहिक दुष्कर्म के कारण प्राण गंवाने वाली निर्भया की मां आशा देवी कहती हैं कि महिला के मुद्दों पर जोर-शोर से बातें करने वाली राजनीतिक पार्टियां अक्सर चुनावों से पहले वोट बंटोरने के लिए महिलाओं के मान-सम्मान, सुरक्षा और सशक्तीकरण के वादे करती हैं, लेकिन वोट मिलने के बाद उन वादों को भुला देती हैं.
देश में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं, यह बात किसी ने छुपी नहीं है. अब तो विदेशों में इस बात की चर्चा है कि भारत में महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. देश शर्मसार करने वाली घटनाएं आए दिन होती रहती हैं. महिलाओं की समस्याओं को लेकर सरकारें कितनी संवेदनशील हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महिला को सशक्त करने के दावे के साथ अस्तित्व में आया महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में 22 सालों से लटका है. इस अटके, लटके, भटके विधेयक की बात उठाने पर मौजूदा सरकार शर्त रख देती है कि पहले तीन तलाक विधेयक पारित कराने में सहयोग दीजिए.
तीन तलाक विधेयक में भाजपा की ज्यादा रुचि इसलिए है कि उसे लगता है कि इससे मुस्लिम महिलाएं खुश होंगी और आधी मुस्लिम आबादी के वोट उसके लिए पक्के हो जाएंगे. विपक्ष कहता है कि तीन तलाक विधेयक में यह नहीं बताया गया है कि तलाक देने वाले पति के जेल चले जाने पर तलाकशुदा महिला का खर्च कौन उठाएगा.
देश में महिलाओं की स्थिति पर विचार साझा करते हुए आशा देवी ने विशेष बातचीत में आईएएनएस से कहा, "चुनावों से पहले राजनेता महिलाओं के लिए बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद महिलाएं उनकी प्राथमिकता सूची से बाहर निकाल दी जाती हैं."
उन्होंने कहा, "महिलाएं अपना हक मांग रही हैं, लेकिन उनके साथ मजाक हो रहा है. उन्हें शर्म आनी चाहिए इस बात पर कि देश के हर कोने-कोने में बच्चियों से, जिसे हमारे देश में देवी का दर्जा दिया जाता है, दरिंदगी का शिकार हो रही हैं और महिला सुरक्षा के ठेकेदार खामोश हैं. वोट बटोरने के दौरान उन्हें हम सबसे पहले दिखाई देते हैं और वोट मिलने के बाद वह हमें और हमारी समस्याओं को अगले चुनावों के लिए टाल देते हैं, इसलिए ताकि वह एक बार फिर हमारे नाम पर वोट बटोर सकें."
आशा देवी के अनुसार, "महिलाओं से जुड़े मुद्दे कागजों तक सीमित हैं. हम सरकारों को यह कहते हुए सुनते हैं कि महिलाओं का सशक्तीरण उनकी प्राथमिकता है. सुनकर बहुत अच्छा लगता है, लेकिन यह एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है. मैं खुद छह साल से संघर्ष कर रही हूं. मुझे याद है कि मैंने एक फरियादी की तरह अदालतों और पुलिस स्टेशन के बाहर घंटों बिताए हैं, लेकिन उनकी ओर से मुझे बेरुखी ही मिली."
देश में महिला सत्ता में हो या विपक्ष में, उस पर हर ओर से दबाव बनाया जाता है. क्या कारण है कि वह चाहकर भी अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाती हैं? इस सवाल पर आशा देवी ने कहा, "देखिए, जो भी महिलाएं सत्ता में उच्च पदों पर बैठी हैं, वे शायद इसलिए भी अपनी आवाज नहीं उठाती हैं, क्योंकि वह भी कहीं न कहीं कुछ लोगों से डरती हैं. उन्हें जैसा कहा जाता है, वैसा करना पड़ता है और अगर वह ऐसा नहीं करेंगी तो उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ेगा. इस तरह देखा जाए तो एक तरह वहां भी महिला किसी न किसी तरह के शोषण का शिकार बन रही है."
निर्भया की मां ने बेटी की मौत के बाद निर्भया ज्योति नाम से एक ट्रस्ट बनाया था, जिसके जरिए वह दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं और बच्चियों के मुद्दों पर काम करती हैं. अपने इस प्रयास के बारे में आशा देवी कहती हैं, "मुझे हर दिन किसी न किसी रेप पीड़िता की कहानी सुनने को मिलती है, तब पता चलता है कि देश में कितनी निर्भयाएं हैं. हम हर रोज प्रयत्न कर रहे हैं, हर रोज सरकार से हाथ जोड़कर बच्चियों की सुरक्षा की गुहार लगाते हैं, लेकिन सरकार को दिखाई नहीं देता या वह देखना नहीं चाहती है. शायद सोच यह है कि अगर देश में सबकुछ ठीक हो जाएगा तो वे वोट मांगने के लिए कौन सा मुद्दा उठाएंगे."
हम विश्व स्तर पर अपनी उपलब्धियों का डंका पीटते हैं, लेकिन हमारे ही देश में अभी भी मासिक धर्म के दौरान बच्चियों और महिलाओं को अछूत समझा जाता है. महिलाओं के प्रति समाज में कुरीतियां इतनी ज्यादा हैं, जिनकी शायद गिनती करना संभव नहीं है.
महिला आरक्षण विधेयक के जल्द पास होने की उम्मीद जताते हुए आशा देवी ने कहा, "हम उम्मीद कर सकते हैं. आज नहीं तो कल यह बिल जरूर पास होगा, लेकिन उसके लिए हमें अपनी लड़ाई जारी रखनी होगी, हम हार नहीं मान सकते. हमें हमारा अधिकार चाहिए और यह उन्हें देना होगा. अगर सरकार हमें हमारा अधिकार नहीं दे सकती तो उसे यह स्पष्ट करना होगा कि इस देश पर केवल पुरुषों का अधिकार है."