छत्तीसगढ़ में गोबर के बाद अब गौमूत्र बनेगा आर्थिक बदलाव का आधार
देश मे छत्तीसगढ़ की पहचान नवाचार वाले राज्य के तौर पर बन गई है, यहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दिशा में एक और कदम बढ़ाने की तैयारी है और इसके लिए सरकार अपने को वार्मअप भी कर रही है.
रायपुर, 9 अप्रैल : देश मे छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की पहचान नवाचार वाले राज्य के तौर पर बन गई है, यहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दिशा में एक और कदम बढ़ाने की तैयारी है और इसके लिए सरकार अपने को वार्मअप भी कर रही है. पहले गोबर को रोजगार से जोड़ा गया तो अब गौमूत्र के जरिए आर्थिक समृद्धि का आधार बनाने के प्रयास किये जा रहा है. वर्तमान हालात में लोगों को रोजगार मुहैया कराने के साथ उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाना सभी सरकारों के लिए चुनौती बना हुआ है. इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए तमाम कोशिशें हो रही है, कहीं यह कोशिशें सफल होती जान पड़ती है तो कहीं अपेक्षा के अनुरुप सफलता नहीं मिलती. छत्तीसगढ़ में बगैर लागत के रोजगार और आर्थिक समृद्धि का रास्ता खोजा जा रहा है. पहले कदम में गोबर से शुभ संकेत मिले और अब उसी दिशा में गौमूत्र के सहारे आगे बढ़ने की तैयारी है.
राज्य सरकार ने पहले गौठान के जरिए आवारा मवेशियों की समस्या पर अंकुश लगाने के साथ रोजगार सृजन के स्थल में बदला गया. यहां बड़ी संख्या में स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं गोबर के कई उत्पाद दीए, गमले, मूर्ति गोकाष्ट तैयार करती है, बर्मी कंपोस्ट बनातीं है, इसके लिए दो रुपये किलो की दर से गोबर खरीदा जाता है. एक तरफ जहां किसानों को बर्मी कंपोस्ट मिल रही है तो खेतों की रासायनिक उर्वरक पर से निर्भरता कम करने के लिए गौमूत्र का उपयोग किया जाने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि गौ-मूत्र से बॉयो फर्टिलाईजर और बॉयो इनसेक्टिसाइडस तैयार किए जाते हैं गौ-मूत्र में यूरिया सहित अनेक मिनिरल और इंजाइम्स भी होते हैं. फर्टिजलाईजर के रूप में गौ-मूत्र का उपयोग करने से सूक्ष्म पोषक तत्व नाईट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का अवशोषण बढ़ता है. पौधों की ऊंचाई और जड़ में अच्छी वृद्धि होती है, मिट्टी में लाभकारी जीवाणु बढ़ते हैं और गौ-मूत्र में पाये जाने वाला यूरिया बहुत से कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करता है.
सरकार का दावा है कि राज्य में गौ-वंशीय और भैस वंशीय पशुओं की संख्या 111 लाख से अधिक है. प्रति पशु औसतन प्रतिदिन सात लीटर गौ-मूत्र विसर्जित करता है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सलाहकार प्रदीप शर्मा का कहना है कि, खेती की जमीन के लिए कार्बन और यूरिया जरुरी होता है, कार्बन की गोबर से बनी बर्मी कंपोस्ट से पूर्ति होती है, वहीं यूरिया का सबसे बड़ा स्त्रोत यूरिन है, इसके लिए यूरिन का फोर्टिफिकेशन जरुरी है. वर्तमान में 20 लाख क्विंटल आर्गेनिक फर्टिलाइजर बना रहे है, अब हमें फोर्टिफिकेशन के लिए एक लाख लिटर गौ मूत्र की जरुरत है. पहले चरण में बर्मी कंपोस्ट के तौर पर पूरा हो गया है दूसरा चरण गौमूत्र के फोर्टिफिकेशन के जरिए पूरा होगा. यह भी पढ़ें : Uttar Pradesh: जेलों में ‘गायत्री मंत्र’ और ‘ महामृत्युंजय मंत्र’ बजाये जायेंग
राज्य में जिस तरह से पहले गोबर खरीदी का क्रम शुरू हुआ उसी तरह आगामी समय में गौ मूत्र की भी खरीदी करने की तैयारी है. गौ मूत्र की खरीदी कैसे हो इसके लिए टेक्निकल कमेटी अध्ययन करेगी. यह कमेटी गौ-मूत्र के संग्रहण, गौ-मूत्र की गुणवत्ता की टेस्टिंग, गौ-मूत्र से तैयार किए जाने वाले उत्पादों के बारे में अपनी अनुशंसा देगी. फिलहाल सरकार ने गौमूत्र किस तरह से खरीदी जाएगा, इसका संग्रहण कैसे होगा इस पर फैसला नहीं लिया है, मगर इतना तय है कि अगर गोबर की तरह पशुपालकों से गौ मूत्र भी खरीदा गया तो एक तरफ जहां गौधन को संरक्षित करना आसान होगा, आवारा मवेशी से फसलों को होने वाले नुकसान को बचाया जा सकेगा तो रोजगार के नए अवसर भी विकसित होंगे.