एयरटेल के बाद जियो और स्टारलिंक में समझौता, सरकार देगी इजाजत?

भारत की दो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों एयरटेल और जियो ने इलॉन मस्क की स्टारलिंक के साथ समझौता किया है.

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एयरटेल के बाद जियो और स्टारलिंक में समझौता, सरकार देगी इजाजत?

भारत की दो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों एयरटेल और जियो ने इलॉन मस्क की स्टारलिंक के साथ समझौता किया है.

देश Deutsche Welle|
एयरटेल के बाद जियो और स्टारलिंक में समझौता, सरकार देगी इजाजत?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत की दो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों एयरटेल और जियो ने इलॉन मस्क की स्टारलिंक के साथ समझौता किया है. इस करार के बाद भारत के उन इलाकों में इंटरनेट पहुंच पाना संभव हो सकता है जहां टावर या केबल नहीं है.मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो ने भारत में स्टारलिंक सेटेलाइट इंटरनेट सेवाएं लाने के लिए अमेरिकी कारोबारी इलॉन मस्क की स्पेसएक्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. दो अरबपतियों के बीच हुए इस करार को आश्चर्यजनक कदम माना जा रहा है, क्योंकि वे कई महीनों से इस बात पर असमंजस में थे कि भारत उन्हें स्पेक्ट्रम कैसे देने वाला है.

जियो, भारत का सबसे बड़ा टेलीकॉम ऑपरेटर है और एक अनुमान के मुताबिक उसके 48 करोड़ से अधिक यूजर हैं. वह अपने रिटेल स्टोरों में स्टारलिंक के उपकरण का स्टॉक करेगा, जिससे स्टारलिंक को देश भर में ऐसे हजारों आउटलेट में प्रत्यक्ष वितरण केंद्र की सुविधा मिलेगी.

इससे पहले देश में सेटेलाइट इंटरनेट के स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर मस्क और भारतीय कंपनियों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो चुकी है. अंबानी चाहते थे कि सेटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी हो जबकि मस्क की कंपनी स्टारलिंक का तर्क था कि स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाए.

एक दूसरे साथ भी और मुकाबला भी

अंबानी की चिंता थी मस्क अपनी सेवाओं को भारत में उतारने के बाद दूरसंचार क्षेत्र पर हावी हो सकते हैं. हालांकि इस करार के बाद अंबानी अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्पादों को तेजी से बढ़ते बाजार में पेश करेंगे, साथ ही उनके साथ प्रतिस्पर्धा भी करेंगे.

रिसर्च कंपनी काउंटरपॉइंट के नील शाह कहते हैं, "यह सौदा आश्चर्यजनक है, लेकिन स्टारलिंक के लिए भारत के बाजार में दाखिल होना एक विवेकपूर्ण रणनीति है और इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए जीत है, जो पहले मुकाबला कर रहे थे, वही अब सहयोग और साझेदारी कर रहे हैं."

जियो के साथ डील होने से एक दिन पहले, 11 मार्च को स्टारलिंक और भारती एयरटेल के बीच भी साझेदारी का एलान हुआ था. भारती एयरटेल देश की दूसरी बड़ी टेलीकॉम कंपनी है. इस साझेदारी के तहत स्टारलिंक सेटेलाइट इंटरनेट को भारत लाने की योजना है.

हालांकि यह दोनों समझौते तभी लागू होंगे जब स्पेसएक्स को भारतीय सरकार से स्टारलिंक की सेवाएं बेचने की अनुमति मिलेगी. एयरटेल ने एक बयान में कहा कि स्टारलिंक के साथ उसका सौदा इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी स्पेसएक्स की सहायक कंपनी को भारत में ऑपरेशन करने के लिए सरकारी मंजूरी मिलती है या नहीं.

जियो के साथ डील की घोषणा के बाद बुधवार (12 मार्च) को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में एयरटेल के शेयरों में एक प्रतिशत तक की गिरावट आई, जबकि रिलायंस इंडस्ट्रीज मामूली बढ़त के साथ कारोबार कर रहा था. ये दोनों समझौते भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन में मस्क से मुलाकात के कुछ सप्ताह बाद हुए हैं, जहां उन्होंने स्पेस, मोबिलिटी, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन समेत कई मुद्दों पर चर्चा की थी.

जहां ना पहुंचे टावर, वहां पहुंचे मस्क का इंटरनेट

भारत की 1.4 अरब से अधिक आबादी में से कम से कम 40 प्रतिशत लोगों के पास अभी भी इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. इस अंतर को पाटने के लिए सस्ते सेटेलाइट ब्रॉडबैंड की जरूरत है, खासकर भारत के विशाल दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में. ये वो इलाके हैं जहां मोबाइल टावर नहीं है या कंपनियां टावर लगाने के भारी खर्च को नहीं उठाना चाहती.

भारत में सेटेलाइट इंटरनेट के इस क्षेत्र में सालाना 36 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है. अनुमान के मुताबिक, इस सेक्टर के 2030 तक 1.9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. स्टारलिंक 2022 से भारत में व्यावसायिक रूप से काम करने के लिए लाइसेंस का इंतजार कर रही है, लेकिन अभी तक इस पर कोई स्पष्ट समयसीमा तय नहीं की गई है. राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं समेत अन्य कारणों से इसमें देरी हुई है.

स्टारलिंक दुनिया भर में 125 से अधिक बाजार को अपनी सेवाएं देती हैं. मस्क के स्टारलिंक में पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले कम से कम 6,900 एक्टिव सेटेलाइट हैं जो कम विलंब (लो लैटेंसी) वाले ब्रॉडबैंड देते हैं, जिसमें ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जहां पहले इंटरनेट बिल्कुल भी नहीं था. लो लैटेंसी वह ब्रॉडबैंड है जिसमें डाटा पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह जाने में कम समयintent/tweet?url=https%3A%2F%2Fhindi.latestly.com%2Findia%2Fafter-airtel-a-compromise-in-jio-and-starlink-will-the-government-allow-2534207.html&text=%E0%A4%8F%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B2+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6+%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B+%E0%A4%94%E0%A4%B0+%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%95+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%9D%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A4%BE%2C+%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0+%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A5%80+%E0%A4%87%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A4%3F&via=LatestlyHindi ', 650, 420);" title="Share on Twitter">

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भारत की दो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों एयरटेल और जियो ने इलॉन मस्क की स्टारलिंक के साथ समझौता किया है. इस करार के बाद भारत के उन इलाकों में इंटरनेट पहुंच पाना संभव हो सकता है जहां टावर या केबल नहीं है.मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो ने भारत में स्टारलिंक सेटेलाइट इंटरनेट सेवाएं लाने के लिए अमेरिकी कारोबारी इलॉन मस्क की स्पेसएक्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. दो अरबपतियों के बीच हुए इस करार को आश्चर्यजनक कदम माना जा रहा है, क्योंकि वे कई महीनों से इस बात पर असमंजस में थे कि भारत उन्हें स्पेक्ट्रम कैसे देने वाला है.

जियो, भारत का सबसे बड़ा टेलीकॉम ऑपरेटर है और एक अनुमान के मुताबिक उसके 48 करोड़ से अधिक यूजर हैं. वह अपने रिटेल स्टोरों में स्टारलिंक के उपकरण का स्टॉक करेगा, जिससे स्टारलिंक को देश भर में ऐसे हजारों आउटलेट में प्रत्यक्ष वितरण केंद्र की सुविधा मिलेगी.

इससे पहले देश में सेटेलाइट इंटरनेट के स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर मस्क और भारतीय कंपनियों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो चुकी है. अंबानी चाहते थे कि सेटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी हो जबकि मस्क की कंपनी स्टारलिंक का तर्क था कि स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाए.

एक दूसरे साथ भी और मुकाबला भी

अंबानी की चिंता थी मस्क अपनी सेवाओं को भारत में उतारने के बाद दूरसंचार क्षेत्र पर हावी हो सकते हैं. हालांकि इस करार के बाद अंबानी अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्पादों को तेजी से बढ़ते बाजार में पेश करेंगे, साथ ही उनके साथ प्रतिस्पर्धा भी करेंगे.

रिसर्च कंपनी काउंटरपॉइंट के नील शाह कहते हैं, "यह सौदा आश्चर्यजनक है, लेकिन स्टारलिंक के लिए भारत के बाजार में दाखिल होना एक विवेकपूर्ण रणनीति है और इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए जीत है, जो पहले मुकाबला कर रहे थे, वही अब सहयोग और साझेदारी कर रहे हैं."

जियो के साथ डील होने से एक दिन पहले, 11 मार्च को स्टारलिंक और भारती एयरटेल के बीच भी साझेदारी का एलान हुआ था. भारती एयरटेल देश की दूसरी बड़ी टेलीकॉम कंपनी है. इस साझेदारी के तहत स्टारलिंक सेटेलाइट इंटरनेट को भारत लाने की योजना है.

हालांकि यह दोनों समझौते तभी लागू होंगे जब स्पेसएक्स को भारतीय सरकार से स्टारलिंक की सेवाएं बेचने की अनुमति मिलेगी. एयरटेल ने एक बयान में कहा कि स्टारलिंक के साथ उसका सौदा इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी स्पेसएक्स की सहायक कंपनी को भारत में ऑपरेशन करने के लिए सरकारी मंजूरी मिलती है या नहीं.

जियो के साथ डील की घोषणा के बाद बुधवार (12 मार्च) को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में एयरटेल के शेयरों में एक प्रतिशत तक की गिरावट आई, जबकि रिलायंस इंडस्ट्रीज मामूली बढ़त के साथ कारोबार कर रहा था. ये दोनों समझौते भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन में मस्क से मुलाकात के कुछ सप्ताह बाद हुए हैं, जहां उन्होंने स्पेस, मोबिलिटी, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन समेत कई मुद्दों पर चर्चा की थी.

जहां ना पहुंचे टावर, वहां पहुंचे मस्क का इंटरनेट

भारत की 1.4 अरब से अधिक आबादी में से कम से कम 40 प्रतिशत लोगों के पास अभी भी इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. इस अंतर को पाटने के लिए सस्ते सेटेलाइट ब्रॉडबैंड की जरूरत है, खासकर भारत के विशाल दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में. ये वो इलाके हैं जहां मोबाइल टावर नहीं है या कंपनियां टावर लगाने के भारी खर्च को नहीं उठाना चाहती.

भारत में सेटेलाइट इंटरनेट के इस क्षेत्र में सालाना 36 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है. अनुमान के मुताबिक, इस सेक्टर के 2030 तक 1.9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. स्टारलिंक 2022 से भारत में व्यावसायिक रूप से काम करने के लिए लाइसेंस का इंतजार कर रही है, लेकिन अभी तक इस पर कोई स्पष्ट समयसीमा तय नहीं की गई है. राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं समेत अन्य कारणों से इसमें देरी हुई है.

स्टारलिंक दुनिया भर में 125 से अधिक बाजार को अपनी सेवाएं देती हैं. मस्क के स्टारलिंक में पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले कम से कम 6,900 एक्टिव सेटेलाइट हैं जो कम विलंब (लो लैटेंसी) वाले ब्रॉडबैंड देते हैं, जिसमें ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जहां पहले इंटरनेट बिल्कुल भी नहीं था. लो लैटेंसी वह ब्रॉडबैंड है जिसमें डाटा पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह जाने में कम समय लगता है और इस वजह से यूजर को बेहतर सेवा मिलती है.

मस्क की कंपनी को लाइसेंस का इंतजार करते हुए इसे कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. कुछ समय पहले भारत में अधिकारियों ने स्टारलिंक के दो उपकरण जब्त किए थे, एक उपकरण संघर्ष क्षेत्र में और दूसरा नशीली दवाओं की तस्करी के एक मामले में, जिसके बाद मस्क को कहना पड़ा कि भारत में इसकी सेटेलाइट इंटरनेट सेवा एक्टिव नहीं है.

पिछले साल नवंबर में भारत के दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि स्टारलिंक भारत के सुरक्षा संबंधी मानकों को पूरा करने की प्रक्रिया में है और प्रक्रिया पूरी होते ही उसे लाइसेंस दे दिया जाएगा.

इलॉन मस्क का भारत में एजेंडा क्या होगा?

मस्क और भारत

भारत में मस्क के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है, जहां उन्होंने हाल ही में आयातित इलेक्ट्रिक कारों को बेचने के लिए पहले टेस्ला शोरूम के लिए एक समझौता किया है. टेस्ला दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश और एक विशाल अर्थव्यवस्था में घुसने के लिए बीते कुछ सालों से कोशिश कर रही है.

भारत में इलेक्ट्रिक कारों का बाजार काफी छोटा है, लेकिन फिर भी यह टेस्ला के लिए विकास का मौका बन सकता है. खासतौर से चीन की इलेक्ट्रिक कारों से मिलती चुनौती और पहली बार बीते साल इसकी इलेक्ट्रिक कारों की सालाना बिक्री में आई गिरावट को देखते हुए.

भारत ने लंबे समय तक इलेक्ट्रिक कारों पर भारी आयात शुल्क लगाए रखा. इसके नतीजे में टेस्ला भारतीय बाजार में नहीं दाखिल हो सकी. उसके पास स्थानीय उत्पादन की सुविधा नहीं थी. मस्क भी भारत द्वारा लगाए जाने वाले 100 फीसदी शुल्क की शिकायत करते रहे हैं और कहते हैं कि यह दुनिया में सबसे ज्यादा है.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्पेस फेलो चैतन्य गिरी ने कहा, "स्टारलिंक-जियो समझौता स्टारलिंक के लिए सरकारी मंजूरी को आसान बनाने के लिए एक व्यावसायिक तौर-तरीका तैयार कर सकती है."

गिरी ने कहा, "स्टारलिंक का फायदा यह है कि यह एक बड़ा समूह है, इसे स्पेसएक्स की हाई रॉकेट लॉन्च फ्रीक्वेंसी से लाभ मिलता है, और ट्रंप-मस्क संबंधों के कारण भू-राजनीतिक ताकत मिलती है."

इससे पहले सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के मामले पर नीलामी और आवंटन को लेकर काफी विवाद हुआ था. स्टारलिंक की दलील थी कि लाइसेंसों का प्रशासनिक आवंटन ग्लोबल ट्रेंड के अनुरूप है. वहीं, जियो का कहना था कि समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए नीलामी की जरूरत है. जियो का कहना था कि भारतीय कानून में इस बारे में कोई प्रावधान नहीं है कि व्यक्तियों को सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं कैसे दी जा सकती हैं. हालांकि, सरकार ने बाद में कहा था कि स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक तरीके से आवंटित किया जाएगा.

एए/एनआर (रॉयटर्स, एपी)

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