Aditya-L1 Mission: सूरज के कितने पास जाएगा आदित्य-एल1? कहां है वह जगह जहां से ISRO करेगा सूर्य का अध्यन

आदित्य -एल1 को पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर अंतरिक्ष के एक हिस्से हेलो ऑर्बिट में छोड़ा जाएगा. इससे यह लगातार सूरज की निगरानी कर सकेगा.

Representative Image | Pixabay

Aditya-L1 Mission: चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत के पहले सौर मिशन ‘आदित्य-एल1’ (Aditya-L1) को सूर्य की स्टडी के लिए लॉन्च कर रहा है. 2 सितंबर को इसरो अपना सूर्य मिशन (Aditya-L1) लॉन्च करेगा. सूर्य की स्टडी के लिए यह पहला भारतीय मिशन है. दो सितंबर को पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से इसका प्रक्षेपण किया जाएगा. आदित्य एल -1 मिशन से ISRO सूर्य के तापमान, पराबैंगनी किरणों के धरती- खासकर ओजोन परत पर पड़ने वाले प्रभावों और अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता का अध्ययन करेगा. Chandrayaan-3: चांद पर चीन के Yutu 2 से मिलेगा प्रज्ञान रोवर? जानें दोनों के बीच कितनी दूरी है.

ISRO के इस सूर्य मिशन को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं. जैसे, क्या आदित्य-L1 सूरज पर उतरेगा? क्या यह चंद्रयान की तरह सूर्ययान (Aditya-L1) सूरज पर लैंड करेगा? क्या यह सूरज के करीब पहुंचकर जलेगा नहीं? ऐसे कई सवाल हैं जो देशवासियों के मन में हैं यहां हम आपको ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब दे रे हैं. चांद के बाद अब 'सूरज' की बारी, दो सितंबर को श्रीहरिकोटा से लॉन्च होगा ISRO का आदित्य- L1 मिशन.

मिशन के नाम में क्यों जुड़ा है एल1

आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परत) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु) पर सौर वायु के यथास्थान अवलोकन के लिए तैयार किया गया है. एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसलिए इस स्पेसक्राफ्ट के नाम में एल1 जोड़ा गया है. इसे सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के एल1 बिंदु के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है. आदित्य एल-1 को इस बिंदु तक पहुंचने में 120 दिन यानी चार महीने लगेंगे.

इसरो ने कहा कि एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में स्थापित उपग्रह से सूर्य पर लगातार नजर रखने में बड़ा फायदा होगा और कोई भी ग्रह इसमें बाधा नहीं डालेगा. इसने कहा, ‘‘इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा.’’

क्या है लैग्रेंज बिंदु

‘लैग्रेंज बिंदु’ अंतरिक्ष में स्थित वे स्थान हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के उन्नत क्षेत्र उत्पन्न करते हैं. नासा के अनुसार, इनका उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा स्थिति में बने रहने के लिए आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने के लिए किया जा सकता है. लैग्रेंज बिंदु का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैग्रेंज के सम्मान में रखा गया है.

क्या करेगा आदित्य-एल1

आदित्य-एल1 मिशन का लक्ष्य एल1 के पास की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है. यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अवलोकन करने में मदद करेंगे. इसरो के अनुसार, इसका का लक्ष्य यह पता लगाने के लिए डेटा एकत्रित करना है कि कोरोना का तापमान लगभग दस लाख डिग्री तक कैसे पहुंच सकता है, जबकि सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड से थोड़ा अधिक रहता है.

कैसे काम करेगा आदित्य-एल1

आदित्य -एल1 को पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर अंतरिक्ष के एक हिस्से हेलो ऑर्बिट में छोड़ा जाएगा. इससे यह लगातार सूरज की निगरानी कर सकेगा. इसरो ने बताया, "यह सौर गतिविधियों और अंतरिक्षीय मौसम पर इसके असर का निरीक्षण करने के लिए ज्यादा अनुकूल स्थिति देगा."

शुरुआत में अंतरिक्षयान लो अर्थ ऑर्बिट में रखा जाएगा और फिर ऑनबोर्ड प्रोपल्शन का इस्तेमाल करके इसे लेग्रॉन्ज पॉइंट (एल-1) की ओर लॉन्च किया जाएगा. लेग्रॉन्ज पॉइंट्स, अंतरिक्ष की ऐसी जगहें हैं, जहां भेजी गई चीजें स्थिर रहती हैं. इन बिंदुओं पर दो पिंडों के गुरुत्वाकर्षण बल, खिंचाव और विकर्षण का विस्तृत क्षेत्र बनता है. ऐसे में अंतरिक्षयान को अपनी जगह पर बने रहने के लिए कम ईंधन चाहिए होता है.

सूर्य की लपटों को कैसे समझेगा आदित्य-एल1

आदित्य-एल1 यूवी पेलोड का उपयोग करके कोरोना और सौर क्रोमोस्फीयर पर और एक्स-रे पेलोड का उपयोग करके लपटों का अवलोकन कर सकता है. कण संसूचक और मैग्नेटोमीटर पेलोड आवेशित कणों और एल1 के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा तक पहुंचने वाले चुंबकीय क्षेत्र के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं. विशेष सुविधाजनक बिंदु एल1 का उपयोग करते हुए, चार पेलोड सीधे सूर्य का अवलोकन करेंगे और शेष तीन पेलोड द्वारा एल1 बिंदु पर कण और क्षेत्रों का यथास्थान अध्ययन किये जाने की उम्मीद है.

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