हिंसा संबंधी चुनौतियों से निपटने के अलावा गृह मंत्रालय ने उठाए कई अहम कदम
गृह मंत्रालय ने मणिपुर में जातीय हिंसा और जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों जैसी चुनौतियों से निपटने के अलावा वर्ष 2023 में ब्रिटिश काल के आपराधिक कानूनों में बदलाव लाने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए और पूर्वोत्तर में उग्रवादी संगठनों के साथ शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
नयी दिल्ली, 31 दिसंबर: गृह मंत्रालय ने मणिपुर में जातीय हिंसा और जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों जैसी चुनौतियों से निपटने के अलावा वर्ष 2023 में ब्रिटिश काल के आपराधिक कानूनों में बदलाव लाने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए और पूर्वोत्तर में उग्रवादी संगठनों के साथ शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए. यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वार्ता समर्थक गुट ने हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति व्यक्त करते हुए साल के अंत में केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये.
यह समझौता इस बात को दर्शाता है कि गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाला मंत्रालय उन समस्याओं का समाधान करने के लिए गंभीर है जिनसे पूर्वोत्तर भारत दशकों से जूझ रहा है और जिसने कई लोगों की जान ले ली. एक बड़ा संकट तीन मई को उस समय पैदा हुआ जब मणिपुर के जिलों में ‘‘जनजातीय एकजुटता मार्च’’ निकाले जाने के बाद जातीय हिंसा हुई. यह मार्च मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए निकाला गया था.
महीनों तक जारी रही हिंसा में कम से कम 180 लोगों की मौत हो गई। शाह ने संघर्ष कर रहे समुदायों -मेइती और कुकी को शांत करने के लिए राज्य का दौरा किया. न्यायिक जांच समिति का गठन, पीड़ितों को वित्तीय सहायता और अतिरिक्त बलों को भेजने सहित विश्वास-निर्माण के लिए कदम उठाए गए. कई महीनों की हिंसा के बाद मणिपुर में शांति बहाल हो गई है, लेकिन दोनों समुदायों के बीच अविश्वास चिंता का विषय है.
सरकार ने 29 नवंबर को मणिपुर के उग्रवादी संगठन ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ (यूएनएलएफ) के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत मेइती बहुल इस संगठन ने हिंसा छोड़ने पर सहमति व्यक्त की. मोदी सरकार ने पिछले पांच साल में पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूहों के साथ कई समझौते किए हैं. असम-मेघालय सीमा समझौते, असम-अरुणाचल सीमा समझौते और मणिपुर स्थित उग्रवादी समूह यूएनएलएफ के साथ समझौते पर 2023 में हस्ताक्षर किए गए.
गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को संसद में ब्रिटिश कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन नये विधेयक -भारतीय न्याय संहिता, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 पेश किए. इन विधेयकों को समीक्षा के लिए 18 अगस्त को गृह मामलों की स्थायी समिति को सौंपा गया और उसे तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया. आपराधिक कानूनों से संबंधित तीनों विधेयकों को संसद की स्थायी समिति की ओर से सुझाए गए संशोधनों के मद्देनजर संसद के हाल में हुए शीतकालीन सत्र में वापस ले लिया गया और गृह मंत्री ने 12 दिसंबर को इनकी जगह नए विधेयक पेश किए.
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक, 2023 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी),1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान लेने के लिए लाया गया है. इन विधेयकों में आतंकवाद की स्पष्ट परि दी गयी है, राजद्रोह को अपराध के रूप में खत्म कर दिया गया है और ‘‘राज्य के खिलाफ अपराध’’ शीर्षक से एक नया खंड जोड़ा गया है.
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