स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से खेल के क्षेत्र में पिछड़ रही महिलाएं
बीते कुछ सालों में महिलाएं खेल के मैदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.
बीते कुछ सालों में महिलाएं खेल के मैदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. लेकिन उनके स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और जानकारी की कमी अक्सर देखने को मिलती है. यही कमी कैसे उनके जीवन और खेल पर असर डालती है?महिला खेलों को हाल के वर्षों में काफी पहचान मिली है, लेकिन महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और जानकारी की कमी अक्सर देखने को मिलती है. उनके स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया जाता है. इस वजह से उनकी खेल क्षमता पूरी तरह से नहीं निखर पाती. महिलाओं के शरीर और स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरतें पुरुषों से अलग होती हैं और उनकी खास जरूरतों को पूरा करने के लिए सही जानकारी और देखभाल एक अहम भूमिका निभाते हैं.
डॉ. रॉस ने 2016 और 2020 ओलंपिक में ब्रिटिश टीम के लिए स्वास्थ्य और फिटनेस प्लान तैयार करने में मदद की है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि समाज में तो पहले से ही स्वास्थ्य संबंधी असमानताएं हैं, लेकिन ये असमानताएं खेल के क्षेत्र में और भी ज्यादा गंभीर हैं.
वह कहती हैं, "खेल जगत असमानता का बड़ा उदाहरण है. महिलाएं अपने शरीर को ठीक से न समझ पाने के कारण कई ऐसी चीजों को सामान्य मान लेती हैं जो असल में ठीक नहीं होतीं. पुरुष प्रशिक्षक या कोच के इरादे भले ही नेक हों, लेकिन कई बार वे महिला खिलाड़ियों की शारीरिक बनावट और जरूरतों को पूरी तरह नहीं समझ पाते. साथ ही, खेलों की प्रकृति ही ऐसी होती है कि खिलाड़ी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में कठोर प्रशिक्षण का चलन, महिलाओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है.”
उन्होंने आगे बताया, "खेलों में प्रतिस्पर्धा और दबाव काफी ज्यादा होता है. हर कोई जीतना चाहता है. आप बिल्कुल भी कमजोर नहीं दिखना चाहते. साथ ही, महिलाओं के शरीर से जुड़ी कुछ समस्याओं को लेकर गलत धारणाएं हैं, जिन्हें खेल जगत में और हवा मिल जाती है. इसलिए, इन समस्याओं को खुलकर स्वीकार करने और महिला खिलाड़ियों की मदद के लिए खेल व्यवस्था में बदलाव लाना जरूरी है."
रॉस ने कहा कि महिला खिलाड़ियों को अपने शरीर को समझने और उसकी देखभाल करने के लिए विशेष जानकारी की जरूरत है. इनमें पीरियड, प्रजनन, ब्रेस्ट सपोर्ट, सही कपड़े और खान-पान जैसी चीजें शामिल हैं.
व्यवस्थागत असमानता
इंग्लैंड में 2022 के यूरोपीय चैम्पियनशिप के बाद से महिला फुटबॉल की लोकप्रियता बहुत बढ़ी है. इस बढ़ती लोकप्रियता के चलते, महिला खिलाड़ियों के स्वास्थ्य से जुड़ी असमानताओं पर थोड़ा और ध्यान दिया जा रहा है.
इंग्लैंड के चेल्सी फुटबॉल क्लब की मैनेजर और जल्द ही अमेरिका की राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम की कोच बनने वाली एम्मा हेयस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीरियड के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि अपने बच्चे को जन्म देने के बाद कई खिलाड़ी बेहतरीन वापसी कर रही हैं. कॉन्फ्रेंस के दौरान, घुटने की गंभीर चोटों की वजह बताये जाने वाले जूतों पर भी बात हुई, मैदानों की खराब स्थिति और मैचों के ज्यादा दबाव पर भी चर्चा की गई.
दरअसल, यह व्यवस्थागत असमानता सिर्फ खेलों के में नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है, "स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और सेवाओं तक पहुंच हासिल करने में महिलाओं और लड़कियों को अक्सर पुरुषों और लड़कों की तुलना में ज्यादा बाधाओं का सामना करना पड़ता है.”
संगठन ने आगे कहा, "इसकी कई वजहें हैं. जैसे, घर से ज्यादा बाहर निकलने पर रोक, खुद से जुड़े फैसले लेने में दिक्कत, शिक्षा का अभाव, सामाजिक भेदभाव, महिलाओं की जरूरतों और चुनौतियों के बारे में स्वास्थ्य कर्मचारियों और स्वास्थ्य सेवाओं में जागरूकता की कमी वगैरह.”
महिलाओं को ज्यादा सहायता की जरूरत
रॉस महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी इन दिक्कतों को दूर करने पर काम कर रही हैं. इसके लिए उन्होंने इंग्लिश फुटबॉल एसोसिएशन (एफए) और हेल्थ बिजनेस ‘द वेल एचक्यू' के बीच नया समझौता किया है. वेल एचक्यू की स्थापना रॉस ने खुद की है.
रॉस ने कहा, "कुछ बाधाओं और मानसिकताओं को दूर करने में भले ही सालों लग सकते हैं, वहीं कुछ चीजों को आसानी से बदला जा सकता है.” उन्होंने कहा कि ब्रेस्ट सपोर्ट एक ऐसी समस्या है जिस पर शायद ही ध्यान दिया जाता है. इसकी वजह से खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर काफी असर पड़ सकता है. अध्ययनों से पता चला है कि भारी स्तन वाली महिलाएं 37 फीसदी कम व्यायाम करती हैं. वहीं, सही स्पोर्ट्स ब्रा न पहनने से खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है.
वह कहती हैं, "यह शारीरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. अगर व्यायाम के दौरान छाती ज्यादा हिलती है, तो शरीर उसे स्थिर रखने के लिए ज्यादा ऊर्जा खर्च करता है. अगर सही तरीके से स्तन को सहारा नहीं दिया जाता है, तो महिला जल्दी ही थक जाती है. इससे दौड़ते समय समान गति बनाए रखने में भी समस्या आ सकती है. वहीं, सही स्पोर्ट्स ब्रा ना पहनने से छाती में दर्द हो सकता है और प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है. छाती के हिलने से दौड़ने के दौरान पैरों का पूरा जोर नहीं लग पाता, जिससे कदमों की लंबाई कम हो जाती है और कम दूरी तय होती है.”
वह आगे बताती हैं, "2021 में टोक्यो गेम्स से पहले, हमने स्पोर्ट्स ब्रा को लेकर एक बड़ा प्रोजेक्ट किया था. उस दौरान पाया गया कि 50 फीसदी महिला खिलाड़ी ऐसी थीं जो अपनी छाती के सही आकार और जरूरत के हिसाब से स्पोर्ट्स ब्रा नहीं पहन रहीं थीं. कई लोगों को लगता है कि महिला शरीर के बारे में महिलाओं को खुद-ब-खुद सब पता होता है और वे अपनी देखभाल करना जानती हैं, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है.”
पोषण से जुड़ी समस्या
रॉस महिलाओं के पोषण से जुड़ी समस्या को लेकर भी चिंतित हैं. उन्होंने यह अनुभव किया है कि शरीर के आकार के प्रति लोगों के नजरिये की वजह से महिलाएं अक्सर पुरुषों की तुलना में कम खाना खाती हैं, खासकर कार्बोहाइड्रेट से जुड़ा भोजन. खिलाड़ियों को बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है, लेकिन कम खाने से उनका पीरियड रुक सकता है. इसे आम बात माना जाता है, लेकिन इससे हड्डियों, मांसपेशियों, दिमाग और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है.
वह बताती हैं, "कम खाना खाने वाली लड़कियों में तीन से पांच साल बाद हड्डियों की कमजोरी की समस्या देखने को मिलती है. उनके शरीर में हड्डियों को मजबूत बनाने वाले हार्मोन बनना कम हो जाता है. कई लड़कियों में हड्डियों में दबाव के कारण चोट की शिकायत सामने आती है.”
रॉस कहती हैं कि कम खाना खाने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. इससे उनका करियर प्रभावित हो सकता है. उन्होंने बताया, "इस मामले में हमें काफी सुधार करने की जरूरत है. मुझे लगता है कि खेलों में इसका असर हम जितना सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा है. कई महिला खिलाड़ी सिर्फ इसलिए बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती हैं, क्योंकि उन्हें पोषण और शरीर की देखभाल के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती है.”
पीरियड, शरीर में होने वाले बदलाव और दर्द जैसी परेशानियों के कारण कई लड़कियां खेलों से दूरी बना लेती हैं. महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर समाज में अभी भी जागरूकता और अध्ययन की काफी कमी है. हालांकि, खेल जगत इस क्षेत्र में अहम भूमिका निभा सकता है. भले ही, शुरुआत में इसे सिर्फ बेहतर प्रदर्शन के नजरिए से ही क्यों न देखा जाए, बाद में धीरे-धीरे स्वास्थ्य से जुड़े सभी पहलुओं पर भी ध्यान दिया जा सकता है.