पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 में से 35 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ मैदान में उतरने वाली बीजेपी ने इस बार एक नई रणनीति अपनाई है.फिलहाल भारत में जारी लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दक्षिण बंगाल की तमाम सीटों पर डमी उम्मीदवार खड़े किए हैं. इसका मकसद मतदान के दिन वोटों का विभाजन करना और मतगणना के दिन पूरी प्रक्रिया पर निगरानी रखना है. कुछ केंद्रों पर ऐसे डमी उम्मीदवारों की पहचान गोपनीय रखी जा रही है.
वर्ष 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि उत्तर बंगाल में तो बीजेपी का संगठन मजबूत है. लेकिन राज्य के दक्षिणी इलाकों में उसकी स्थिति वैसी नहीं है. ऐसे में उसने कई सीटों पर एक से ज्यादा डमी उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं.
प्रदेश बीजेपी के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू हिंदी को बताते हैं, "अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में मतदान केंद्रों के लिए अपना चुनाव एजेंट तलाशना और उसे भीतर बिठाना पार्टी के लिए कड़ी चुनौती रही है. बीते चुनावों में हमने देखा है कि टीएमसी के लोगों के आतंक के मारे कोई भी चुनाव एजेंट नहीं बनना चाहता. मौजूदा परिस्थिति में निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरे ऐसे डमी उम्मीदवार ही हमारा सहारा हैं. इसके लिए संगठन से जुड़े ऐसे लोगों को तरजीह दी गई है जिसे चुनाव का पर्याप्त अनुभव है."
इस नेता का कहना था कि कुछ संवेदनशील सीटों पर निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने वाले लोगों का परिचय गोपनीय रखा गया है ताकि किसी को बीजेपी से उसके संबंधों के बारे में पता नहीं चले.
कहीं उजागर किए तो कहीं गोपनीय रखे गए हैं नाम
कोलकाता की जादवपुर सीट पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार सायनी घोष के खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार अनिर्वाण गांगुली मैदान में हैं. बीजेपी ने इस सीट पर अनिर्वाण के अलावा अरुण सरकार, शंकर मंडल और अवनी कुमार मंडल नामक तीन निर्दलीय उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा है.
इनमें से अरुण सरकार वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में सोनारपुर दक्षिण सीट पर बीजेपी उम्मीदवार अंजना बसु के समर्थन में डमी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे. इसी तरह अवनी मंडल वर्ष 2016 के चुनाव में भांगड़ विधानसभा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार रह चुके हैं.
कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना जिले की बारासात सीट पर बीजेपी उम्मीदवार स्वपन मजूमदार ने एक पुराने पार्टी कार्यकर्ता सुभाष हीरा को निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतारा है. बीजेपी ने वहां एक और डमी उम्मीदवार को उतारा है.
बीजेपी ने कई सीटों पर निर्दलीय के तौर पर लड़ने वाले अपने कार्यकर्ताओं के नामों का खुलासा कर दिया है. लेकिन कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां उनका परिचय गोपनीय रखा जा रहा है. इनमें बशीरहाट, जयनगर, मथुरापुर और उलूबेड़िया सीटें शामिल हैं. उन इलाकों में तृणमूल कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति में है.
दक्षिण 24-परगना जिले की डायमंड हार्बर सीट पर तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी के खिलाफ बीजेपी ने अभिजीत दास उर्फ बाबी को टिकट दिया है. लेकिन अभिजीत इस सीट पर अपने समर्थन में उतरने वाले डमी उम्मीदवार का नाम नहीं बताना चाहते.
हालांकि बीजेपी की जिला समिति के उपाध्यक्ष सुफल घाटू डीडब्ल्यू से कहते हैं, "डायमंड हार्बर सीट पर हमारे कई डमी उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन सुरक्षा कारणों से हम उनके नामों का खुलासा नहीं कर सकते. हमारे डमी उम्मीदवार के बारे में पता चलने पर टीएमसी के लोग उस व्यक्ति और उसके परिवार पर हमले करने लगेंगे. यही गोपनीयता की सबसे बड़ी वजह है."
वैसे, पार्टी ने एहतियात के तौर आरामबाग, कांती और तमलुक जैसी उन सीटों पर भी निर्दलीयों को मैदान में उतारा है जहां उसकी स्थिति मजबूत मानी जाती है.
क्या नया है डमी उम्मीदवार उतारने का चलन
प्रदेश बीजेपी के एक शीर्ष नेता नाम नहीं छापने पर बताते हैं, "डमी उम्मीदवार उतारने का प्रचलन कोई नया नहीं है. अगर हमने बीरभूम सीट पर देवतनु भट्टाचार्य को डमी के तौर पर नहीं उतारा होता तो वह सीट खाली ही रह जाती. यह जरूर है कि अबकी ऐसे उम्मीदवारों की तादाद पहले से ज्यादा है."
यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि बीजेपी ने पहले पूर्व आईपीएस देवाशीष धर को अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन राज्य सरकार की ओर से जरूरी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं जमा करने के कारण उनका नामांकन खारिज हो गया था. उसके बाद पार्टी ने निर्दलीय के तौर पर पर्चा दाखिल करने वाले देवतनु को अपना चुनाव चिन्ह देकर उम्मीदवार बनाया था.
हालांकि तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी चाहे कुछ भी करे, इस बार बंगाल से उसका सफाया तय है. पार्टी के नेता कुणाल घोष ने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "बीजेपी पहले भी तरह-तरह की तरकीब आजमाती रही है. लेकिन बंगाल में दीदी के करिश्मे के आगे उसकी तमाम रणनीति फेल हो जाती है. उसके डमी उम्मीदवार चुनाव का नतीजा नहीं बदल सकेंगे."
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मतदान और वोटों की गिनती के दिन ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार बीजेपी के लिए बड़े काम के साबित हो सकते हैं. मतदान में चुनाव एजेंट की भूमिका निभाने के साथ ही यह लोग टीएमसी के कुछ वोटों में भी सेंध लगा सकते हैं.
एक राजनीतिक विश्लेषक स्निग्धेंदु भट्टाचार्य डीडब्ल्यू से कहते हैं, "बीजेपी ने वर्ष 2021 के चुनाव नतीजों से सबक लेते हुए इस बार डमी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की रणनीति अपनाई है. उस बार वोटों की गिनती के दिन अनुभव की कमी के कारण कई काउंटिंग एजेंट बीच में ही मतगणना केंद्रों से बाहर निकल आए थे. इसी वजह से दो सौ पार के नारे के साथ उतरने वाली पार्टी को महज 77 सीटों तक ही सिमटना पड़ा था."