संयुक्त राष्ट्र ने 2010 से 2030 के बीच नए संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतों को 90 फीसदी घटाने का लक्ष्य रखा था. लेकिन यह लक्ष्य अब खतरे में है.दुनियाभर में एचआईवी और एड्स पर सबसे बड़ा वार्षिक सम्मेलन सोमवार को जर्मनी के शहर म्यूनिख में शुरू हुआ है. यहां 175 देशों के 10,000 से अधिक डॉक्टर, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और कार्यकर्ता एकत्रित हुए.
यूएन के आंकड़ों के अनुसार, एड्स से संबंधित मौतों में 2004 के आंकड़ों के मुकाबले 69 फीसदी और 2010 के मुकाबले 51 फीसदी की कमी आई है. फिर भी, हर मिनट विश्व में एक व्यक्ति की एड्स के कारण मौत होती है.
यूएन एड्स ने अपनी नई रिपोर्ट में बताया है कि अगर इन प्रयासों के लिए अधिक धन मुहैया कराया जाए और मानवीय अधिकारों की रक्षा की जाए, तो 2030 तक एड्स महामारी का अंत किया जा सकता है.
मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इस महामारी के प्रति अब पहले की तरह ध्यान नहीं दिया जाता, जिसके कारण एचआईवी/एड्स के खिलाफ लड़ाई के लिए सरकारी फंडिंग भी घट रही है.
कितना आम है एचआईवी का संक्रमण
एड्स - 'एक्वायर्ड इम्यून डेफिशिएंसी सिंड्रोम' - एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है. यह ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) के संक्रमण से होता है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है और विभिन्न संक्रमणों और कई तरह के कैंसर का खतरा बढ़ा देता है.
एचआईवी संक्रमण का मुख्य कारण असुरक्षित यौन संबंध है. संक्रमित सुई और संक्रमित रक्त के संपर्क से भी यह बीमारी फैल सकती है. एचआईवी पॉजिटिव मां के गर्भधारण से शिशु तक भी एचआईवी संक्रमण फैल सकता है.
2022 में लगभग 4 करोड़ लोग इस वायरस के साथ जी रहे थे. पूर्वी यूरोप जैसे कुछ क्षेत्रों में संक्रमण बढ़ रहा है, और अफ्रीका में, महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, संक्रमण की दर अभी भी ऊंची बनी हुई है. इस बीच भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में एचआईवी के मामलों में तेजी देखी जा रही है.
डब्लूएचओ के अनुसार, एचआईवी के कारण हर साल 6,00,000 लोगों की मौत होती है क्योंकि कई लोगों को पता नहीं होता कि उन्हें एचआईवी है, या वे इलाज नहीं कराते हैं, या फिर इलाज में बहुत देर हो जाती है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि एचआईवी संक्रमण के लक्षण अकसर संक्रमण के कुछ सप्ताह बाद महसूस होते है, जिनमें बुखार, थकान, गले में खराश, और मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं.
शुरुआती लक्षण अकसर सामान्य वायरल संक्रमण जैसे दिखते हैं. संक्रमण के बढ़ने के साथ साथ पीड़ित का इम्यून सिस्टम कमजोर होने लगता है. इस कमजोरी की वजह से अन्य संक्रमण और कैंसर जैसी बीमारियां भी पैदा होने लगती है.
एचआईवी के मामलों को कम करने में चुनौतियां
एचआईवी का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं निकला है, लेकिन एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) से वायरस की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है. एआरटी का नियमित उपयोग एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों के जीवन को लंबा और स्वस्थ बनाता है.
एआरटी से एचआईवी के फैलाव को भी कम किया जा सकता है, जिससे समाज में संक्रमण की दर को घटाया जा सकता है. दुनियाभर में अभी भी लोगों को एचआईवी के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. भारत जैसे देशों में यौन शिक्षा पर खुलकर चर्चा नहीं की जाती, जिससे एचआईवी के प्रति जागरूकता प्रभावित होती है.
एचआईवी/एड्स का न केवल स्वास्थ्य पर, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. एचआईवी से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति समाज में कई गलतफहमियां और पूर्वधारणाएं हैं. उन्हें अकसर भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है. यह भेदभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है.
एचआईवी/एड्स की रोकथाम के उपाय
एचआईवी/एड्स से बचने के लिए सुरक्षित यौन संबंध बनाएं और कंडोम का उपयोग करें.
ड्रग्स का उपयोग करने वालों को हमेशा स्वच्छ और सुरक्षित सुई का प्रबंध करना चाहिए.
रक्तदान के समय सावधानी बरतनी चाहिए, जिसमें रक्त की जांच और सुरक्षित रक्तदान प्रक्रियाएं शामिल हैं.
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका जैसे उच्च संक्रमण वाले देशों में पुरुषों को खतना की सलाह दी जाती है.
एचआईवी की जांच के लिए नियमित परीक्षण और सलाह सेवाओं का उपयोग करना चाहिए, और पॉजिटिव व्यक्तियों को सहायता देनी चाहिए.