ऑस्ट्रेलिया 2030 तक बैंक चेक खत्म करना चाहता है. भारत में भी बहुत से लोग अब चेक का इस्तेमाल नहीं करते. क्या है बैंक चेक का भविष्य?ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया है कि इस दशक के आखिर तक बैंक चेक को पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा. इसी महीने देश के वित्त मंत्री जिम चामर्स ने ऐलान किया कि 2030 से पहले अर्थव्यवस्था से बैंक चेक पूरी तरह खत्म किये जाने पर काम शुरू किया जा चुका है. इसके लिए चामर्स ने चेक का इस्तेमाल लगातार कम होते जाने को वजह बताया.
जिम चामर्स ने कहा, "हम जानते हैं कि चेक का इस्तेमाल लगातार घट रहा है. ऐसा मुख्यतया इसलिए है क्योंकि डिजिटल लेन-देन आसान और सस्ता है और इसकी पहुंच भी ज्यादा है. 98 प्रतिशत रीटेल लेन-देन चेक की जगह इंटरनेट या मोबाइल बैंक से किया जा सकता है.”
क्यों खत्म हो रहे हैं बैंक चेक?
डिजिटल इकॉनमी की शुरुआत ने ही यह बात स्पष्ट कर दी थी कि अब बैंक चेक के दिन गिने-चुने ही बचे हैं. ऑस्ट्रेलियन बैंकिंग एसोसिएशन का कहना है कि देश में होने वाले कुल लेन-देन का सिर्फ 0.2 फीसदी ही चेक से हो रहा है. चेक से लेन-देन अन्य सभी प्रकार के लेन-देन से ज्यादा महंगा भी है. और ऐसा आज से नहीं है. 15 साल पहले ऑस्ट्रेलिया के रिजर्व बैंक ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि चेक से लेन-देन करने पर 4.2 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का खर्च आता है.
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यह चलन पूरी दुनिया में करीब-करीब एक जैसा है. लगभग पूरी दुनिया में लोग अब करंसी नोट और चेक से लेन-देन कम कर रहे हैं और डिजिटल पेमेंट की ओर बढ़ रहे हैं. हाल ही में गोबैंकिंगरेट्स नामक एक संस्था ने सर्वेक्षण के बाद कहा था कि अमेरिका में 45 फीसदी लोगों ने पिछले साल एक बार भी चेक का इस्तेमाल नहीं किया. 23 फीसदी लोग ऐसे थे जिन्होंने महीने में सिर्फ एक बार चेक का इस्तेमाल किया.
ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि नई अर्थव्यवस्था में चेक की जगह नहीं है. इसकी कई वजह हैं. एक तो इसके कारण भुगतान में देरी होती है, जिससे उद्योगों को नुकसान होता है. साथ ही, ग्राहक भी ऐसी व्यवस्था को प्राथमिकता देते हैं, जो सहज और आसान हो.
चेक का इतिहास
एक कागज पर रकम और हस्ताक्षर का धन के लेन-देन के लिए इस्तेमाल सदियों पुराना है. इंफोसिस की साझेदार कंपनी फिनेकल पेमेंट्स की सीनियर एसोसिएट कंसल्टेंट मधुमिता श्याम ने अपने शोध में लिखा है कि माना जाता है कि पहली सदी में पर्शिया और उसके आसपास के इलाकों में व्यापारी लेन-देन के लिए लिखित कागजों का इस्तेमाल करते थे, जिन्हें साक कहा जाता था. साक के कारण व्यापारियों को बहुत बड़ी मात्रा में धन अपने साथ लेकर नहीं चलना पड़ता था.
18वीं सदी की शुरुआत में पहली बार छपे हुए चेक का इस्तेमाल शुरू हुआ था और 1770 के आसपास रोजाना चेक क्लीयरिंग शुरू हुई, जबकि शाम के वक्त बैंकों के क्लर्क मिला करते थे और एक दूसरे से चेक लेकर हिसाब किया करते थे. 1810 में इंग्लैंड में पहली बार निजी चेक प्रयोग किये गये थे.
भारत में चेक-व्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था का परिदृश्य बेहद विविध और विस्तृत है. वहां एक ही समय पर नयी और पुरानी व्यवस्थाएं समानांतर रूप से चलती हैं. लेकिन भारत में भी चेक का इस्तेमाल कम हो रहा है. कई छोटे व्यापारी बड़े लेन-देन के लिए चेक का इस्तेमाल करते हैं. बुजुर्ग कर्मचारियों और व्यापारियों की बड़ी आबादी है जो डिजिटल पेमेंट को लेकर सहज नहीं है. इसके अलावा, बहुत सारे संस्थान भी भुगतान के लिए क्रॉस्ड चेक पर निर्भर रहते हैं.
हालांकि 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 10 लाख रुपये से अधिक का लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक करना अनिवार्य कर दिया था. लेकिन डिजिटल पेमेंट की आधुनिक तकनीकों और आसान इस्तेमाल ने लोगों को डिजिटल माध्यमों की ओर बहुत तेजी से आकर्षित किया है. एजवर्व की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल अप्रैल में भारत में 5.54 करोड़ चेक इस्तेमाल किये गए जो पिछले साल मार्च से कम हैं, जबकि 6.4 करोड़ चेक इस्तेमाल हुए थे.
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लेकिन रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012 से 2017 के बीच भारत में चेक के इस्तेमाल में मात्र 10.8 फीसदी की कमी आई. इस लिहाज से भारत दुनिया में चेक का इस्तेमाल कम करने वाले देशों में निचले पायदान पर था. विकसित देशों, एशियाई देशों और ब्रिक्स देशों समेत 21 देशों की सूची में भारत सबसे नीचे थे. तुर्की ही एक ऐसा देश था जिसमें भारत से कम लोगों ने चेक इस्तेमाल किये.
चेक का भविष्य
भले ही डिजिटल पेमेंट्स तेजी से बढ़ रही हैं और चेक का इस्तेमाल कम होता जा रहा है लेकिन इसे पूरी तरह हटा पाना इतना भी आसान नहीं है. ऑस्ट्रेलिया ने, जहां चेक का इस्तेमाल बेहद कम हो चुका है, इसे हटाने के लिए सात साल का समय निर्धारित किया है. इसकी वजह यह है कि चेक अर्थव्यवस्था में आज भी अहम भूमिका निभा रहा है और बड़ी संख्या में लोग इस पर निर्भर हैं. ऐसा सिर्फ भारत जैसी जटिल अर्थव्यवस्था में ही नहीं बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन या अन्य विकसित देशों में भी है.
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‘मनी फाइट क्लब' किताब की लेखिका लिंजी कुक ने फाइनैंशल टाइम्स में लिखे एक लेख में कहा कि लोग आज भी चेक पसंद करते हैं क्योंकि बहुत से लोग अपनी निजी सूचनाएं ऑनलाइन करने को लेकर सहज नहीं है. वह लिखती हैं, "चेक आज भी भुगतान का एक सुरक्षित तरीका है, खासकर तब जबकि आप सामने वाले की बैंक डिटेल्स नहीं जानते. 2020 में हुए कुल फ्रॉड में से 1.85 करोड़ भुगतान यानी सिर्फ 1.23 करोड़ पाउंड में चेक शामिल थे. दूसरी तरफ पिछले साल ऑनलाइन पेमेंट के कारण 47.9 करोड़ पाउंड के फ्रॉड हुए.”
मधुमिता श्याम अपने शोध पत्र में कहती हैं कि निकट भविष्य में तो चेक को भारत से हटाना संभव नहीं दिखता. वह लिखती हैं, "निकट भविष्य में चेक को सिस्टम से हटाना तो संभव नहीं दिखता लेकिन इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट मोड को पूरी आक्रामकता के साथ प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. सिस्टम प्रोवाइडर, पेमेंट गेटवे प्रोवाइडर, यूटीलिटी कंपनियों, शिक्षण संस्थानों और कंपनियों को मिलकर इस दिशा में काम करना चाहिए.”