हमें ‘आपके आतंकवादी’ और ‘मेरे आतंकवादी’ के युग में नहीं लौटना चाहिए: संरा में भारत ने कहा

भारत ने कहा है कि अमेरिका में 9/11 को हुए आतंकवादी हमले के 20 साल बाद आतंकवाद को ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ और ‘दक्षिणपंथी चरमपंथ’ जैसी विभिन्न शब्दावली में विभाजित करने के प्रयास फिर से हो रहे हैं और विश्व को ‘‘आपके आतंकवादी’’ और ‘‘मेरे आतंकवादी’’ के दौर में नहीं लौटना चाहिए बल्कि इस समस्या का मुकाबला मिलकर करना चाहिए.

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits : File Photo)

संयुक्त राष्ट्र, 7 जुलाई : भारत ने कहा है कि अमेरिका में 9/11 को हुए आतंकवादी हमले के 20 साल बाद आतंकवाद को ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ और ‘दक्षिणपंथी चरमपंथ’ जैसी विभिन्न शब्दावली में विभाजित करने के प्रयास फिर से हो रहे हैं और विश्व को ‘‘आपके आतंकवादी’’ और ‘‘मेरे आतंकवादी’’ के दौर में नहीं लौटना चाहिए बल्कि इस समस्या का मुकाबला मिलकर करना चाहिए. वैश्विक आतंकवाद निरोधक रणनीति (जीसीटीएस) की सातवीं समीक्षा पर प्रस्ताव पारित करने के लिए मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुई चर्चा में भाग लेते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत टी एस तिरुमूर्ति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस बात को माना है कि आतंकवाद का खतरा बहुत गंभीर और सार्वभौमिक है तथा इसे बिना किसी अपवाद के संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के सामूहिक प्रयासों से ही पराजित किया जा सकता है.

तिरुमूर्ति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को यह नहीं भूलना चाहिए कि 9/11 के आतंकवादी हमले से पहले विश्व ‘‘आपके आतंकवादी’’ और ‘‘मेरे आतंकवादी’’ के बीच बंटा हुआ था. उन्होंने कहा कि दो दशक बाद ‘‘देखने में आ रहा है कि हमें एक बार फिर विभाजित करने के प्रयास हो रहे हैं,’’ और इसके लिए ‘‘उभरते खतरों’’ की आड़ में नई शब्दावली गढ़ी जा रही है मसलन नस्ली और जातीय रूप से प्रेरित हिंसक चरमपंथ, हिंसक राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथी चरमपंथी. यह भी पढ़ें : Petrol-Diesel Price: दिल्ली में पेट्रोल की कीमतों ने सेंचुरी बनाया, ईंधन दरों में बढ़ोतरी जारी

उन्होंने कहा, ‘‘मैं आशा करता हूं कि सदस्य देश इतिहास को नहीं भूलेंगें और आतंकवाद को फिर से विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करके ‘मेरे आतंकवादी’ और ‘तुम्हारे आतंकवादी’ के दौर में वापस नहीं ले जाएंगे तथा बीते दो दशक में हमने जो प्रगति की है उसे धक्का नहीं पहुंचाएंगे.’’ तिरुमूर्ति ने कहा कि ‘आतंकवाद’ की वैश्विक स्वीकार्य परि का अभाव इस वैश्विक समस्या को खत्म करने के ‘‘हमारे साझा लक्ष्य के लिए एक रोड़ा है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान रण्नीति अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक समझौते को अपनाने की दिशा में गतिरोध को तोड़ने में विफल रही है. भारत इस समझौते का प्रबल समर्थक है.’’

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