व्हेलों को निगल रही हैं गर्म समुद्री हवाएं
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

उत्तरी प्रशांत महासागर में हंपबैक व्हेलों की संख्या बीते एक दशक में 20 फीसदी तक गिर गई है. इसके पीछे मुख्य रूप से समुद्री गर्म हवाओं को जिम्मेदार माना जा रहा है.शानदार समुद्री स्तनधारियों के बारे में 28 फरवरी को जारी एक रिपोर्ट से इनके भविष्य को लेकर गहरी चिंता उभरी है. व्हेलों के संरक्षण के उपायों और कारोबारी शिकार पर 1976 में रोक लगने के बाद से इलाके में हंपबैक व्हेलों की तादाद तेजी से बढ़ी थी. यह सिलसिला 2012 तक चलता रहा.

हालांकि पिछले एक दशक में व्हेलों की संख्या में बड़ी तेजी से गिरावट आई है. रॉयल सोसायटी ओपन साइंस जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में रिसर्चरों ने इसका ब्योरा दिया है.

व्हेलों की गिनती

75 वैज्ञानिकों की एक टीम ने फोट आइडेंटिफिकेशन के जरिए विशाल समुद्री स्तनधारियों के बारे में बड़े आंकड़े जुटाए. 2002 से 2021 के बीच उत्तरी प्रशांत महासागर में व्हेलों की आबादी का पता लगाया गया. व्हेलों की अनोखी पूंछ की तस्वीरों के जरिए यह टीम 33,000 से ज्यादा व्हेलों को लगभग दो लाख बार देखने में सफल हुई.

मिस्र में मिले अब तक की सबसे छोटी व्हेल के अवशेष

इसी दौरान वैज्ञानिकों ने देखा कि 2012 तक हंपबैक व्हेलों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती रही. माना जाता रहा कि सागर का यह इलाका जितने व्हेलों को संभाल सकता है, यह संख्या उससे ऊपर चली जाएगी. लेकिन इस अनुमान के उलट वैज्ञानिकों ने पाया कि इनकी आबादी में तेजी से गिरावट आ रही है. 2012 से 2021 के बीच हंपबैक व्हेलों की संख्या 33,000 से घट कर 26 हजार के करीब रह गई. हवाई में रहने वाले व्हेलों की संख्या में तो यह गिरावट 34 फीसदी तक देखी गई.

समुद्री गर्म हवाओं का प्रकोप

2014 से 2016 का समय बहुत ताकतवर और सबसे लंबे समुद्री गर्म हवाओं के चलने का दौर रहा है. इसने पूरे उत्तर-पूर्वी प्रशांत को प्रभावित किया और कई बार तो इसकी वजह से सागर का तापमान तीन से छह डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया. इसका महासागर के ईकोसिस्टम पर बहुत गहरा असर देखा गया. इसकी वजह से हंपबैक व्हेलों के लिए भोजन की बहुत कमी हो गई.

व्हेल बायोलॉजिस्ट और न्यू साउथ वेल्स की सदर्न क्रॉस यूनिवर्सिटी में पीएचडी के छात्र टेड चीजमान इस रिसर्च रिपोर्ट के लेखक हैं. उनका कहना है, "हमने जितना सोचा था, यह उससे बहुत ज्यादा बड़ा संकेत है. हमारा आकलन है कि लगभग 7,000 व्हेलों में ज्यादातर भूख से मरी हैं."

सागर की सीमाएं

आबादी का थोड़ा ऊपर-नीचे होना सामान्य बात है. लेकिन लंबे समय से रहती आई प्रजातियों की संख्या का इतने थोड़े समय में इतना कम हो जाना महासागर में किसी बड़ी समस्या की ओर इशारा है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अत्यधिक गर्मी की वजह से व्हेलों को पालने की समुद्र की क्षमता घट गई. चीजमान कहते हैं, "बजाय इसके कि व्हेलों की संख्या (समुद्र की) उस सीमा के पार जाती, वह सीमा ही घट कर व्हेलों के पास आ गई."

व्हेल मछलियां क्यों होती हैं इतनी विशाल

हंपबैक व्हेलों का आहार वैसे तो लचीला है, लेकिन वो उसके अलावा और कुछ खाने में सक्षम नहीं हैं. इससे समुद्र की सेहत का भी अंदाजा हो जाता है. चीजमान ने सी लायन और सील जैसे कुछ अन्य जीवों की आबादी में आई कमी की ओर ध्यान दिलाते हुए बताया, "सिर्फ व्हेलों का खाना ही कम नहीं हुआ है. गर्म समुद्र कम भोजन पैदा करता है."

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के मुताबिक, समुद्री गर्म हवाओं की नियमितता और तीव्रता पहले ही ज्यादा हो गई है. हालांकि इस शताब्दी में इनके पूरी दुनिया में और ज्यादा बढ़ने की प्रबल आशंका है.

खतरे में हंपबैक व्हेल

सैकड़ों सालों से दुनिया भर में व्हेलों के शिकारी तेल, मांस और बालीन (व्हेलों के मुंह के बाल) के लिए उनका शिकार करते हैं. 1986 में आईयूसीए ने व्हेलों की इस प्रजाति को खतरे में घोषित किया. हालांकि हंपबैक व्हेलें आज भी कई तरह के खतरों का सामना कर रही हैं. इनमें सबसे ज्यादा खतरा जहाजों की टक्कर और मछलियों के जाल में फंसने का है.

हालांकि व्हेलों के कारोबारी शिकार पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध का नतीजा हंपबैक व्हेलों की संख्या बढ़ने के रूप में सामने आया और यह संख्या दुनिया भर में 80,000 से ज्यादा वयस्क व्हेलों तक पहुंच गई. लेकिन अब संरक्षण के उपायों को जलवायु परिवर्तन से रोकने के उपायों के साथ जोड़ना होगा. इसके बगैर खतरा झेल रहे जीवों को बचाना संभव नहीं होगा.

एनआर/एसएम (एएफपी)