नयी दिल्ली, 10 अगस्त: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिला के गर्भपात का आदेश जारी होने के बाद पुलिस को पीड़िता को 24 घंटे के भीतर अस्पताल ले जाना चाहिए. न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने ऐसे मामलों में, विशेषकर नाबालिगों से जुड़े मामलों में, चिकित्सकों द्वारा निभाई जाने वाली ‘‘महत्वपूर्ण भूमिका’’ पर जोर दिया और उन्हें यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में भ्रूण को साक्ष्य के लिए संरक्षित किया जाए तथा पीड़िता को जल्दबाजी में अस्पताल से छुट्टी नहीं दी जाए, जिससे उसकी जान को खतरा हो सकता है. लिव-इन में रहने के लिए कपल का बालिग होना जरूरी, नाबालिग को नहीं दे सकते संरक्षण.
नाबालिग से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने नौ अगस्त को ये निर्देश दिए. अदालत ने मौजूदा मामले में कहा कि 16 वर्षीय पीड़िता को गर्भपात के आदेश पारित होने के तीन दिन बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसे प्रक्रिया के बिना छुट्टी दे दी गई.
इसने कहा कि इससे पीड़िता के घर पर सात सप्ताह के उसके गर्भ का गर्भपात हो गया और भ्रूण को संरक्षित नहीं किया जा सका. अदालत ने कहा कि संबंधित डॉक्टर की लापरवाही के कारण एक महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो गया.
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