मांस और डेयरी आहार से पर्यावरण पर होने वाले असर स्पष्ट हैं. जनवरी में वीगन लाइफस्टाइल अपनाने की मुहिम "वीगनरी" का ये 10वां साल है. वीगन आहार के प्रति अब तक कितना बदला है नजरिया?2019 में जब बर्गर किंग अपना 'इंपॉसिबल वॉपर' लाया, तो लंबे समय से वीगन आहार की वकालत करती आ रहीं टोनी वेरनेली को जैसे यकीन ही नहीं हुआ.
30 साल पहले उन्होंने कंपनी के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी. अब वही कंपनी गर्व से अपना वीगन बर्गर लॉन्च कर रही थी और 2030 तक अपना 50 फीसदी मेन्यू वीगन करने की प्रतिबद्धता जता रही थी. इससे दिखता था कि कितना कुछ बदल चुका है. ये इस बात का संकेत भी था कि अब पीछे की ओर लौटना मुमकिन नहीं रहा. वेरनेली कहती हैं, "यह आंदोलन सिर्फ एक ही रास्ते पर आगे बढ़ सकता है.”
एक जमाने में जीवनशैली से जुड़ी एक पसंद के तौर पर देखा गया वीगनिज्म या वीगनवाद, आज पश्चिमी मुख्यधारा संस्कृति में तेजी से बड़ी जगह बनाता दिख रहा है.
वेरनेली अब ब्रिटेन की एक गैर-लाभकारी संस्था वीगनरी में काम करती हैं. इसी संस्था ने जनवरी में वीगन आहार को बढ़ावा देने का अभियान चलाया. यह मुहिम तेजी से फैल रही है. पिछले साल उत्तर कोरिया के अलावा हर देश के सात लाख से ज्यादा लोगों ने इसपर हस्ताक्षर किए थे. गूगल की वैश्विक सर्च में जर्मनी का नाम सबसे ऊपर आता है, जहां 2016 के बाद से वीगन प्रेमियों की संख्या कमोबेश दोगुनी हो चुकी है. उसके बाद ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया का नंबर है.
वीगनिज्म के प्रति बढ़ती दिलचस्पी ने इसे एक फलते-फूलते अरबों डॉलर के उद्योग में बदल दिया है. बड़े पैमाने पर ऐसे उत्पाद पेश किए जा रहे हैं, जो पूरी तरह पौधों से मिली चीजों से तैयार किए जाते हैं. वीगन इन्फ्लूएंसर, अपनी रेसिपी और जीवनशैली को सामने रखने में जुटे हैं.
जलवायु जागरूकता है बड़ी वजह
मांस और डेयरी उत्पादों को खाने से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को लेकर हुई भारी मीडिया कवरेज, वीगनिज्म के प्रति रुझान का एक मुख्य बिंदु है. ब्रिटेन स्थित 'द वीगन सोसायटी' की मीडिया अधिकारी मेजी स्टेडमान कहती हैं, "मेरे ख्याल में उससे लोगों के नजरिए में एक बड़ा बदलाव आया क्योंकि हम लोग जलवायु संकट के कारण जीवन पर हो रहे प्रभाव और स्पष्टता से देख रहे हैं."
नेचर फूड नाम के जर्नल में इस साल प्रकाशित एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक, वीगन आहार में 75 फीसदी कम ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं. वन्यजीवन की तबाही और जल प्रदूषण भी उल्लेखनीय रूप से कम होता है.
पशुओं से मिलने वाले भोजन के मुकाबले फल-सब्जी, दालों और अनाज में कम ऊर्जा, कम जमीन और कम पानी खर्च होता है. मांस उत्पादन में बड़े पैमाने पर चरागाहों का इस्तेमाल शामिल है. चारागाह बनाने के लिए पेड़ काटे जाते हैं. गाय और भेड़ जैसे जीव, पाचन के दौरान मीथेन भी छोड़ते हैं. उनका चारा उगाने के लिए जो खाद इस्तेमाल की जाती है, उससे नाइट्रस ऑक्साइड निकलती है. दोनों ही गंभीर ग्रीनहाउस गैसे हैं.
घिसी-पिटी धारणाएं तोड़ना जरूरी
वीगन अभियान चलाने वालों का कहना है कि वीगनिज्म पर बढ़ते ध्यान से नए और पुराने दोनों किस्म के स्टीरियोटाइप भी उभर आए हैं.
वेरेनेली बताती हैं कि वीगनरी ने उपदेश और दुहाई वाली पारंपरिक वीगन धारणा का सीधा मुकाबला करने की कोशिश की है. इसके तहत, हमेशा के लिए वीगन बने रहने की असाध्य संभावना के बदले, कोशिश करने और नाकाम रहने की छूट को प्रोत्साहित किया है. पिछले साल एक चौथाई प्रतिभागियों ने बताया कि वे वीगन लाइफस्टाइल बनाए रख सकते थे. बाकी प्रतिभागियों में से करीब आधा लोगों ने कहा कि वे अपने आहार में पशु उत्पाद काफी कम कर देंगे.
स्टेडमान का कहना है कि इस गलत धारणा को तोड़ने में भी इससे मदद मिली है कि वीगनिज्म महंगा है और "मैं क्या खाऊं के बुनियादी तथ्य" को समझने में भी सफलता मिली है.
मांस और मर्दानगी
लेकिन "मांस मतलब मर्दानगी" के भाषायी झांसे को तोड़ना ज्यादा बड़ी चुनौती रही है.
स्टेडमान के मुताबिक, "अगर आप महिला हैं, तो आप बहुत मुमकिन है वीगन होंगी. मर्द होने या मांस खाने से जुड़ी जो घिसी-पिटी धारणाएं हैं, ये सब बातें वहीं से आती हैं."
'द वीगन सोसायटी' के मुताबिक, खुद को वीगन कहने वाली ब्रिटेन की 1.3 प्रतिशत आबादी में से सिर्फ 37 फीसदी ही पुरुष हैं.
मांस का संबंध पुरुष से जोड़ने के विचार के पीछे गहरी और सख्त सांस्कृतिक जड़ें हैं. पॉप कल्चर से लेकर फूड मार्केटिंग तक हर चीज में इनकी झलक दिखती है. ये भाषा में भी दिखता है. एक अध्ययन में लैंगिक संज्ञाओं वाली भाष जीवनशैली से जुड़ी एक पसंद के तौर पर देखा गया वीगनिज्म या वीगनवाद, आज पश्चिमी मुख्यधारा संस्कृति में तेजी से बड़ी जगह बनाता दिख रहा है.
वेरनेली अब ब्रिटेन की एक गैर-लाभकारी संस्था वीगनरी में काम करती हैं. इसी संस्था ने जनवरी में वीगन आहार को बढ़ावा देने का अभियान चलाया. यह मुहिम तेजी से फैल रही है. पिछले साल उत्तर कोरिया के अलावा हर देश के सात लाख से ज्यादा लोगों ने इसपर हस्ताक्षर किए थे. गूगल की वैश्विक सर्च में जर्मनी का नाम सबसे ऊपर आता है, जहां 2016 के बाद से वीगन प्रेमियों की संख्या कमोबेश दोगुनी हो चुकी है. उसके बाद ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया का नंबर है.
वीगनिज्म के प्रति बढ़ती दिलचस्पी ने इसे एक फलते-फूलते अरबों डॉलर के उद्योग में बदल दिया है. बड़े पैमाने पर ऐसे उत्पाद पेश किए जा रहे हैं, जो पूरी तरह पौधों से मिली चीजों से तैयार किए जाते हैं. वीगन इन्फ्लूएंसर, अपनी रेसिपी और जीवनशैली को सामने रखने में जुटे हैं.
जलवायु जागरूकता है बड़ी वजह
मांस और डेयरी उत्पादों को खाने से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को लेकर हुई भारी मीडिया कवरेज, वीगनिज्म के प्रति रुझान का एक मुख्य बिंदु है. ब्रिटेन स्थित 'द वीगन सोसायटी' की मीडिया अधिकारी मेजी स्टेडमान कहती हैं, "मेरे ख्याल में उससे लोगों के नजरिए में एक बड़ा बदलाव आया क्योंकि हम लोग जलवायु संकट के कारण जीवन पर हो रहे प्रभाव और स्पष्टता से देख रहे हैं."
नेचर फूड नाम के जर्नल में इस साल प्रकाशित एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक, वीगन आहार में 75 फीसदी कम ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं. वन्यजीवन की तबाही और जल प्रदूषण भी उल्लेखनीय रूप से कम होता है.
पशुओं से मिलने वाले भोजन के मुकाबले फल-सब्जी, दालों और अनाज में कम ऊर्जा, कम जमीन और कम पानी खर्च होता है. मांस उत्पादन में बड़े पैमाने पर चरागाहों का इस्तेमाल शामिल है. चारागाह बनाने के लिए पेड़ काटे जाते हैं. गाय और भेड़ जैसे जीव, पाचन के दौरान मीथेन भी छोड़ते हैं. उनका चारा उगाने के लिए जो खाद इस्तेमाल की जाती है, उससे नाइट्रस ऑक्साइड निकलती है. दोनों ही गंभीर ग्रीनहाउस गैसे हैं.
घिसी-पिटी धारणाएं तोड़ना जरूरी
वीगन अभियान चलाने वालों का कहना है कि वीगनिज्म पर बढ़ते ध्यान से नए और पुराने दोनों किस्म के स्टीरियोटाइप भी उभर आए हैं.
वेरेनेली बताती हैं कि वीगनरी ने उपदेश और दुहाई वाली पारंपरिक वीगन धारणा का सीधा मुकाबला करने की कोशिश की है. इसके तहत, हमेशा के लिए वीगन बने रहने की असाध्य संभावना के बदले, कोशिश करने और नाकाम रहने की छूट को प्रोत्साहित किया है. पिछले साल एक चौथाई प्रतिभागियों ने बताया कि वे वीगन लाइफस्टाइल बनाए रख सकते थे. बाकी प्रतिभागियों में से करीब आधा लोगों ने कहा कि वे अपने आहार में पशु उत्पाद काफी कम कर देंगे.
स्टेडमान का कहना है कि इस गलत धारणा को तोड़ने में भी इससे मदद मिली है कि वीगनिज्म महंगा है और "मैं क्या खाऊं के बुनियादी तथ्य" को समझने में भी सफलता मिली है.
मांस और मर्दानगी
लेकिन "मांस मतलब मर्दानगी" के भाषायी झांसे को तोड़ना ज्यादा बड़ी चुनौती रही है.
स्टेडमान के मुताबिक, "अगर आप महिला हैं, तो आप बहुत मुमकिन है वीगन होंगी. मर्द होने या मांस खाने से जुड़ी जो घिसी-पिटी धारणाएं हैं, ये सब बातें वहीं से आती हैं."
'द वीगन सोसायटी' के मुताबिक, खुद को वीगन कहने वाली ब्रिटेन की 1.3 प्रतिशत आबादी में से सिर्फ 37 फीसदी ही पुरुष हैं.
मांस का संबंध पुरुष से जोड़ने के विचार के पीछे गहरी और सख्त सांस्कृतिक जड़ें हैं. पॉप कल्चर से लेकर फूड मार्केटिंग तक हर चीज में इनकी झलक दिखती है. ये भाषा में भी दिखता है. एक अध्ययन में लैंगिक संज्ञाओं वाली भाषाओं में, मांस से जुड़े शब्द अक्सर पुल्लिंग पाए गए थे.
क्वीअर ब्राउन वीगन के अपने ऑनलाइन नाम से ज्यादा मशहूर, अमेरिका में रहने वाले पर्यावरणीय शिक्षक इसाइएस एरनांदेस का कहना है, "अमीर देशों में जहां भी आप रहते हैं, वहां मांस को मर्दानगी से जोड़ा जाता है. यह धारणा पृथ्वी पर वर्चस्व की पितृसत्तात्मक मनोवृत्ति को सुदृढ़ करती है."
ज्यादा-से-ज्यादा पुरुषों को जोड़ने की अपनी कोशिशों के तहत वीगन सोसायटी ने वीगन आहार के प्रति रुझानों पर हाल में एक शोध कराया. इसमें पाया गया कि ब्रिटेन में 41 फीसदी गैर-वीगन पुरुषों ने भले ही यह कहा कि उन्हें वीगन होने में दिलचस्पी है, लेकिन उसमें मुख्य अवरोध सामाजिक संकोच और दोस्तों और परिवार के बीच मजाक का पात्र बन जाने के डर से जुड़ा है.
इस स्टीरियोटाइप का सबसे हालिया कटाक्ष "सॉय बॉय" है. यह कमजोर समझे जाने वाले पुरुषों के लिए इस्तेमाल हो रहा एक अपमानजनक शब्द है. अक्सर वामपंथी रुझान वाले लोगों के लिए भी इसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जाता है. यह शब्द सोया उत्पाद खाने और एस्ट्रोजन स्तरों में वृद्धि के बीच अप्रमाणित संबंध दिखाता है.
वेरनेली कहती हैं कि प्लांट-बेस्ड आहार लेने वाले एथलीटों पर केंद्रित गेम चेंजर्स जैसी डॉक्यूमेंट्री से इस विचार को चुनौती देने में मदद मिली है कि वीगन आहार के दम पर आप तंदरुस्त और मजबूत नहीं बन सकते.
हाइपर-मैस्कुलीन वीगन इन्फ्लुएंसरों की संख्या बढ़ी है, जो इस पक्ष को बढ़ावा देते हैं कि कैसे पौधा-आधारित जीवनशैली स्वास्थ्य और फिटनेस में योगदान दे सकती है. इंस्टाग्राम पर #वीगममेन में बाइसेप्स और पौधों का मोजेक दिखाया गया है.
लेकिन एरनांदेस का कहना है कि वीगनिज्म की और ज्यादा समावेशी समझ के निर्माण में इस किस्म का उभार मददगार नहीं होता. "वीगन पुरुष इन्फ्लुएंसर, खासकर श्वेत और विषमलैंगिक रुझान वाले लोग भी पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों को मजबूत करते हैं. एक टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी का मुकाबला वो टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी से ही करते हैं."
वीगनवाद का भविष्य
मानसिकता बदलने के लिए आंदोलन को न सिर्फ लैंगिक विभाजनों से जुड़े धारणाओं को बदलना होगा, बल्कि इस बारे में बात करने वाले ज्यादा लोगों में ज्यादा विविधता भी लानी होगी. एरनांदेस के मुताबिक, अमीर देशों के "श्वेत नजरियों" का वीगन बहसों में प्रभुत्व रहा है. वह कहते हैं, "इसे बदलना होगा क्योंकि बहुत से अश्वेत और मूलनिवासी वीगन हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं."
वीगनिज्म अब मुख्यधारा की ओर बढ़ चला है, लिहाजा उसे लेकर हमारी समझ काफी भौतिकतावादी हो चली है. एरनांदेस कहते हैं, "दुकानों में और ज्यादा वीगन उत्पादन सज चुके हैं."
एरनांदेस का कहना है कि इसका एक ही इलाज है- ज्यादा शिक्षा. उनका सुझाव है कि लोगों और धरती पर भोजन प्रणालियों के असर के बारे में और जानकारी जुटाने के लिए दोस्तों के साथ वीगनरी के दौरान साप्ताहिक पुस्तक समूह चलाए जा सकते हैं, या सुपरमार्केट से इतर देखने की आदत डाली जा सकती है और अपने स्थानीय समुदाय में भोजन की तलाश की जा सकती है.
वेरनेली स्वीकार करती हैं कि वीगनवाद के प्रति ज्यादा स्वीकार्यता के लिए जनता की मानसिकता में और बदलाव लाना होगा. कुछ अनुमानों के मुताबिक 2050 तक वैश्विक मांस की खपत 50 फीसदी बढ़ जाएगी.
वह मानती हैं कि अगले 10 साल में वीगन लोग भले ही बहुमत में न हों, लेकिन मुख्यधारा में तो पूरी तरह आ ही जाएंगे, "यह कोई मुद्दा भी नहीं रह जाएगा. यह ऐसा ही होगा जैसे कि आप किसी से कहें मुझे धनिया पसंद नहीं या मुझे अचार पसंद नहीं."