जोशीमठ (उत्तराखंड),13 फरवरी ऋषिगंगा नदी पर बनी एक अस्थायी झील से पानी निकलना शुरू हो गया है जिससे इस क्षेत्र में एक और बाढ़ का खतरा कम हो गया है जबकि उत्तराखंड में एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना की गाद से भरी सुरंग के अंदर फंसे लोगों के संभावित स्थान तक पहुंचने के लिए सुरंग में किए गए सुराख को बचाव टीमों ने शनिवार को और चौड़ा करना शुरू कर दिया।
पिछले रविवार को अचानक आई बाढ़ के बाद सुरंग 30 से अधिक लोगों के फंसे होने की आशंका है।
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) परियोजना के महाप्रबंधक आर पी अहिरवाल ने कहा, ‘‘सिल्ट फ्लशिंग टनल (एसएफटी) में शुक्रवार रात 75 मिमी व्यास का सुराख किया गया था, लेकिन अब इसे 300 मिमी तक चौड़ा किया जा रहा है ताकि गाद से भरी सुरंग के अंदर उस स्थान तक कैमरा और पानी बाहर निकालने वाला पाइप पहुंच सके जहां लोगों के फंसे होने की आशंका है।’’
उन्होंने कहा कि सुराख में 12 मीटर की गहराई होगी।
बचाव अभियान में लगी कई एजेंसियों की समन्वय बैठक में, अहिरवाल ने कहा कि एसएफटी सुरंग के अंदर की स्थितियों को 10-12 घंटे में जाना जा सकता है।
एनटीपीसी अधिकारी ने कहा कि धौलीगंगा के प्रवाह को बहाल करने का कार्य भारी मशीनों के जरिए शुरू किया जा चुका है। प्रभावित इलाकों से अब तक 38 शव बरामद किए गए हैं जबकि 166 अभी भी लापता हैं।
यहां राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र ने कहा कि ऋषि गंगा के एक हवाई सर्वेक्षण के दौरान भारतीय दूर संवेदन संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाया कि हिमस्खलन के कारण बनी झील पानी छोड़ने लगी है, जिससे इस क्षेत्र में एक और बाढ़ का खतरा कम हो गया है।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा के बाद ऋषिगंगा के ऊपरी क्षेत्र में बनी इस कृत्रिम झील पर अध्ययन कर रहा है और इसमें से पानी को बाहर निकालने के लिए नियंत्रित विस्फोट की संभावना की पड़ताल कर रहा है।
सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष सौमित्र हलदर ने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘हम इस बारे में आकलन कर रहे हैं कि यदि मौसम विभाग के पूर्वानुमान के मुताबकि बारिश और हिमपात के बाद जलस्तर बढ़ता है तो क्या प्रभाव हो सकता है। हम इस बारे में भी अध्ययन कर रहे हैं कि यदि झील फटती है तो कितना पानी निकलेगा और इसे नीचे तक पहुंचने में कितना समय लगेगा।’’
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