नवजात बच्चों के लिये एंटीबायोटिक्स विकसित करने की तत्काल जरूरत: वैश्विक विशेषज्ञ
भारत सहित प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील नवजात शिशुओं के लिए एंटीबायोटिक्स विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है.
नयी दिल्ली, 29 दिसंबर : भारत सहित प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील नवजात शिशुओं के लिए एंटीबायोटिक्स विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिसंबर 2022 बुलेटिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा कि हाल के अनुमानों से पता चलता है कि हर साल लगभग 23 लाख नवजात शिशु गंभीर जीवाणु संक्रमण से मर जाते हैं, जबकि बड़ी संख्या में बच्चों में एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न हो रही हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) उस स्तर तक बिगड़ गया है जहां लगभग 50-70 प्रतिशत सामान्य रोगजनक (पैथोजेन) उपलब्ध एंटीबायोटिक दवाओं के लिए उच्च स्तर का प्रतिरोध दिखाते हैं. यह बुलेटिन एएमआर के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा संयुक्त रूप से लिखा गया है. इसमें ‘ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप’ (जीएआरडीपी) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) शामिल हैं. लेखकों ने उल्लेख किया कि चिकित्सा अनुसंधान में पर्याप्त प्रगति और रोकथाम योग्य बीमारियों की वजह से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या में भारी गिरावट के बावजूद बाल स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं का समाधान किया जाना बाकी है. गंभीर जीवाणु संक्रमण उनमें से एक है. यह भी पढ़ें : अदालत ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित टॉक शो के अवैध प्रसारण पर रोक लगायी
सेंट जॉर्ज, लंदन विश्वविद्यालय (एसजीयूएल) से जुड़े और पेंटा - बाल स्वास्थ्य अनुसंधान में रोगाणुरोधी प्रतिरोध कार्यक्रम के सदस्य माइक शारलैंड ने कहा, “यह समझने के लिए उच्च प्राथमिकता वाले एंटीबायोटिक दवाओं की पहचान करने की तत्काल आवश्यकता है कि कौन से बच्चों में वे सबसे अच्छा और सुरक्षित रूप से काम करते हैं? इसके बाद उन्हें उपलब्ध कराया जाना चाहिए.” जीएआरडीपी के कार्यकारी निदेशक मनिका बालसेगरम ने कहा, “वैश्विक सहमति प्राप्त करके, हम एंटीबायोटिक विकास की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकते हैं, एंटीबायोटिक दवाओं तक तेजी से पहुंच की अनुमति दे सकते हैं और संवेदनशील नवजात आबादी पर एएमआर के बोझ को कम कर सकते हैं.”
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि विशेष रूप से नवजात शिशुओं को लक्षित करने वाले सहयोगी एंटीबायोटिक विकास और उन तक पहुंच के लिए तंत्र एकल स्वतंत्र अध्ययनों की तुलना में कैसे मूल्यवान साबित हो सकते हैं. लेखकों ने कहा कि एएमआर के कारण होने वाली नवजात मौतों की बढ़ती संख्या के बावजूद, नवजात सेप्सिस जैसे गंभीर जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए बहुत कम प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं का पर्याप्त अध्ययन किया गया है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 से वयस्कों में उपयोग के लिए 40 एंटीबायोटिक दवाओं को मंजूरी दी गई है जिनमें से केवल चार ने अपने लेबल में नवजात शिशुओं के लिए खुराक की जानकारी शामिल की है. रिपोर्ट के अनुसार, नैतिक चिंताओं, तार्किक मुद्दों और नियामक आवश्यकताओं ने नवजात शिशुओं में नैदानिक शोध करना मुश्किल बना दिया है.