लखनऊ, 23 अप्रैल उत्तराखंड के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) लागू करने की चर्चा शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने शनिवार को इसकी जनकारी दी ।
मौर्य ने कहा कि कॉमन सिविल कोड इस देश और उत्तर प्रदेश के लिए जरूरी है और इस दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार गंभीरता से विचार कर रही है।
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने शनिवार को मीडिया से बातचीत में कहा, ‘‘एक देश में एक कानून सबके लिए हो, इसकी आवश्यकता है।’’ उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि अलग- अलग लोगों के लिये अलग-अलग कानून की जरूरत नहीं है ।
उन्होंने कहा, "उत्तर प्रदेश सरकार भी इस दिशा में गंभीरता से विचार कर रही है और जिस प्रकार से उत्तराखंड सरकार ने अपने कदम बढाये उसी प्रकार से उप्र में भी ...।"
मौर्य ने कहा, "देश के अन्य राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें हैं, वहां भी और जहां गैर भाजपा सरकारें है वहां भी, अगर सबका साथ सबका विकास चाहिए तो कॉमन सिविल कोड जरूरी है और यह एक ऐसी चीज है जिसकी सबको मांग करनी चाहिए और सबको स्वागत करना चाहिए।"
मौर्य ने तंज किया, "हर जगह जब वोट बैंक की बात आएगी तो निश्चित तौर पर उसके सामने तुष्टिकरण की राजनीति दिखाई देती है लेकिन हम इसके (तुष्टिकरण) पक्ष में नहीं हैं।"
उन्होंने कहा, "आज कॉमन सिविल कोड की जरूरत है और कॉमन सिविल कोड इस देश के लिए बहुत जरूरी है, उप्र के लिए जरूरी है और इस देश की जनता की जरूरत है।"
हाल ही में संपन्न उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पूरे देश के लिए एक कानून के पक्ष में बात की थी और कहा था कि इस मामले को सही समय पर उठाया जाएगा।
इस मुद्दे को विपक्षी दलों और मुस्लिम निकायों का समर्थन नहीं मिला है। हालांकि, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने समान नागरिक संहिता का आह्वान किया है, जिसे उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति उनकी बढ़ती नजदीकी के एक और संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
इससे पहले उत्तराखंड में कैबिनेट की बैठक में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति के गठन को मंजूरी दी जा चुकी है। पहली कैबिनेट बैठक के बाद धामी ने कहा था कि उत्तराखंड इस तरह की संहिता को लागू करने वाला पहला राज्य होगा, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि "शायद यह गोवा में पहले से ही लागू है ।"
धामी ने कहा था कि "हम एक विशिष्ट सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के साथ एक हिमालयी राज्य हैं। हम दो देशों के साथ सीमा भी साझा करते हैं। इसलिए समान नागरिक संहिता जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 44 में इसका प्रावधान है। यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी इसे लागू न करने पर अतीत में अपना असंतोष व्यक्त किया है।"
हालांकि, विशेषज्ञ इस बात पर बंटे हुए थे कि क्या कोई राज्य सरकार समान नागरिक संहिता लागू कर सकती है।
संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पी डी टी आचार्य ने हाल ही में पीटीआई को बताया था कि केंद्र और राज्य दोनों को ऐसा कानून लाने का अधिकार है क्योंकि शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं।
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