देश की खबरें | उकसाने का अपराध साबित करने के लिये अपराध करने की मनोदशा जरूर दिखनी चाहिए : न्यायालय
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उकसावे के अपराध में दोष निर्धारित करने के लिये किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा “अनिवार्य रूप से दिखनी” चाहिए।
नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उकसावे के अपराध में दोष निर्धारित करने के लिये किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा “अनिवार्य रूप से दिखनी” चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने 1997 में अपनी पत्नी को खुदकुशी के लिये उकसाने के मामले में आरोपी पति की दोषसिद्धि को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायालय ने कहा कि “आपराधिक मन:स्थिति” (मंशा) के तत्वों के परोक्ष रूप से मौजूद होने की बात नहीं मानी जा सकती और उनका “दिखना तथा सुस्पष्ट होना” जरूरी है।
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मार्च 2010 के आदेश को निरस्त करते हुए यह कहा। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (खुदकुशी के लिये उकसाना) के तहत पति को दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा था।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, “ सभी अपराधों में आपराधिक मन:स्थिति को साबित करना होता है। भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा 107 के तहत उकसावे के अपराध को साबित करने के लिये किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा जरूर दिखनी चाहिए, ताकि दोष निर्धारित हा सके।”
न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मन:स्थिति को साबित करने के लिये यह स्थापित करने या दिखाने के लिये कोई साक्ष्य होना चाहिए कि व्यक्ति कुछ गलत मंशा रखे हुए था और उस मनोदशा में उसने अपनी पत्नी को खुदकुशी के लिये उकसाया।
न्यायलय ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा आरोपी को मामले में दी गई चार साल की कैद की सजा को बरकरार रखा था।
आरोपी की पत्नी के पिता के बयान के आधार पर 1997 में बरनाला में इस संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और अभियोजन ने आरोप लगाया था कि पर्याप्त दहेज नहीं दिये जाने को लेकर विवाहिता को परेशान किया जाता था।
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