मुंबई, 30 जुलाई बंबई उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड (एमएसईडीसीएल) में नौकरी के लिए मराठा आरक्षण के तहत आवेदन करने वाले उम्मीदवार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कर्णिक की पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। इसी के साथ पीठ ने एमएसईडीसीएल के फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत मराठा समुदाय के अर्हता प्राप्त उम्मीदवारों को सिविल नौकरियों में पिछली तारीख से ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी।
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र की पिछली महा विकास अघाडी (एमवीए) सरकार द्वारा जारी सरकारी प्रस्ताव के आधार पर बिजली कंपनी द्वारा लिया गया फैसला ‘अवैध और कानून के लिहाज से खराब’ था।
आदेश के मुताबिक, एमएसईडीसीएल ने अगस्त 2019 में भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था, जिसमें ईडब्ल्यूएस और सामाजिक-शैक्षणिक आधार पर पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए अलग-अलग आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
विज्ञापन में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि राज्य सरकार की ओर से एसईबीसी श्रेणी में दिया गया आरक्षण उच्चतम न्यायालय द्वारा इसकी वैधता पर दिए जाने वाले फैसले पर निर्भर करेगा, जो लंबित है। इसी श्रेणी के तहत मराठा समुदाय को आरक्षण दिया जाना था।
इस बीच, 31 मई 2021 को एमवीए सरकार ने सरकारी प्रस्ताव पारित कर घोषणा की कि एसईबीसी श्रेणी के उम्मीदवार ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आरक्षण का लाभ ले सकते हैं।
वहीं, उच्चतम न्यायालय ने नवंबर 2021 में महाराष्ट्र एसईबीसी अधिनियम को खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद सरकारी प्रस्ताव की व्याख्या बिजली कंपनी ने इस तरह से की कि एसईबीसी के ऐसे उम्मीदवार, जो नौकरी के लिए योग्यता प्राप्त कर चुके हैं, उनकी नियुक्ति ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत निर्धारित ऐसी सीटों पर करने के लिए विचार किया जा सकता है, जो खाली थीं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा भर्ती प्रक्रिया के बीच में किया गया इस तरह का बदलाव ‘मनमाना और अनुचित है।’
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