देश की खबरें | ‘प्राथमिकी रद्द कराने के लिए सीधे शीर्ष अदालत आने की पत्रकारों के लिए अलग व्यवस्था नहीं की जा सकती’: न्यायालय

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नयी दिल्ली,आठ सितंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह नहीं चाहता कि प्रेस की स्वतंत्रता कुचली जाए लेकिन पत्रकारों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कराने के लिए सीधे उसके पास चले जाने के लिए वह उनके लिए एक अलग व्यवस्था नहीं बना सकता।

उच्चतम न्यायालय ने डिजिटल समाचार पोर्टल ‘द वायर’ का प्रकाशन करने वाले ‘फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म’ और उसके तीन पत्रकारों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कराने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ताओं से प्राथमिकियां रद्द कराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पास जाने के लिए कहा और उन्हें गिरफ्तारी से दो माह का संरक्षण दिया।

पीठ ने कहा,‘‘ आप उच्च न्यायालय जाइए और प्राथमिकियां रद्द करने का अनुरोध कीजिए। हम आपको अंतरिम राहत देंगे।’’

पीठ ने कहा,‘‘ हम पत्रकारों के लिए एक अलग व्यवस्था नहीं बना सकते, जिससे वे अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कराने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत सीधे हमारे पास आ सकें।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को समझती है और “प्रेस की स्वतंत्रता को कुचलना नहीं चाहती है।”

यह याचिका ‘फाउंडेशन फॉर इडिपेंडेंट जर्नलिस्ट’ और तीन पत्रकारों- सिराज अली, मुकुल सिंह चौहान और इस्मत आरा की ओर से दायर की गई थी। इसमें रामपुर, गाजियाबाद और बाराबंकी में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों और उन पर हो सकने वाली कार्रवाइयों को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

अधिवक्ता शदान फरासत के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि ये प्राथमिकियां पूरी तरह से विभिन्न सार्वजनिक प्रासंगिकता की घटनाओं की पत्रकारीय रिपोर्टिंग के कारण दर्ज की गई हैं।

इसमें कहा गया कि रामपुर में प्राथमिकी इस साल जनवरी में दर्ज की गई थी जबकि दो अन्य प्राथमिकियां जून में दर्ज की गईं।

याचिका में कहा गया, "प्रकाशित मामले का कोई भी हिस्सा दूर-दूर तक अपराध नहीं है, हालांकि यह सरकार या कुछ लोगों के लिए अप्रिय हो सकता है।” याचिका के अनुसार पोर्टल और उसके पत्रकारों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं।

याचिका में कहा गया है कि बाराबंकी में दर्ज प्राथमिकी जिला प्रशासन के आदेश पर पुलिस द्वारा मई 2021 में क्षेत्र में एक मस्जिद गिराए जाने पर एक समाचार के संबंध में दर्ज की गई है।

याचिका में उत्तर प्रदेश पुलिस को इन प्राथमिकियों को रद्द करने के अलावा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई से रोकने के आदेश देने का भी अनुरोध किया गया है।

याचिका में शीर्ष अदालत से भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के कथित दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश देने का भी आग्रह किया गया है, जिनमें धारा 153-ए (धर्म, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 505 (सार्वजनिक शरारत करने वाले बयान) शामिल हैं।

इसमें कहा गया कि मीडिया की खबरों को लेकर “फैसला सुनाने का काम” पुलिस का नहीं है।

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