देश की खबरें | शीर्ष न्यायालय ने सूफी संत पर टीवी एंकर की टिप्पणी मामले में फैसला सुरक्षित रखा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कोई अपराध करने की मंशा रखने वाले किसी व्यक्ति का इरादा ‘‘जांच का विषय’’ है क्योंकि महज एक शब्द ‘‘सार्वजनिक अव्यवस्था’’ पैदा कर सकता है।
नयी दिल्ली, 25 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कोई अपराध करने की मंशा रखने वाले किसी व्यक्ति का इरादा ‘‘जांच का विषय’’ है क्योंकि महज एक शब्द ‘‘सार्वजनिक अव्यवस्था’’ पैदा कर सकता है।
शीर्ष न्यायालय ने एक सूफी संत पर टीवी एंकर अमिश देवगन की कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
जून महीने की 15 तारीख को अपने टीवी कार्यक्रम ‘आर पार’ के प्रसारण के दौरान देवगन ने सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की थी। इसे लेकर देवगन के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
देवगन ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि किसी भी प्राथमिकी (एफआईआर) में नहीं कहा गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान पड़ा और यहां तक कि उन्होंने इस मुद्दे को लेकर खेद भी प्रकट किया था।
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न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायामूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने देवगन और उन राज्यों के वकीलों की दलीलें सुनी, जहां प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
इसके बाद शीर्ष न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
उल्लेखनीय है कि पीठ ने देवगन को प्राथमिकी के संबंध में किसी कठोर कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया था।
पीठ ने कहा, ‘‘पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनीं। बहस संपन्न हुई। फैसला सुरक्षित रखा जाता है। याचिकाकर्ता को लिखित दलील पेश करने के लिये आज से एक सप्ताह का समय दिया जाता है और उसके बाद प्रतिवादी/हस्तक्षेपकर्ता को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिये एक सप्ताह दिया जाएगा। ’’
देवगन की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और अधिवक्ता मृणाल भारती ने कहा कि आरोपी की ओर से कानून व्यवस्था या सार्वजनिक व्यवस्था या शांति में व्यवधान डालने की मंशा होनी चाहिए थी और किसी अपराध का यह महत्वपूर्ण तथ्य इस मामले में गायब है।
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आपकी मंशा थी या नहीं, यह जांच का विषय है और यह प्राथमिकी रद्द करने के लिये आधार नहीं हैं। यहां तक कि महज एक शब्द सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा कर सकता है लेकिन यह जांच का विषय है। ’’
लूथरा ने प्राथमिकी रद्द करने के लिये अर्णब गोस्वामी के मामले में दिये शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला भी दिया।
वहीं, राजस्थान की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मंशा या मकसद की पूरी अवधारणा पर इस शुरूआती चरण में विचार नहीं किया जा सकता। एक जांच करनी होगी, जिससे यह निष्कर्ष निकलेगा कि क्या कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा था या नहीं...प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती। ’’
देवगन ने कहा कि वह अपनी टिप्पणी के बारे में एक ट्वीट के जरिये पहले ही स्पष्टीकरण दे चुके हैं।
याचिका में कहा गया है कि टीवी कार्यक्रम में परिचर्चा के दौरान एक पैनल सदस्य ने चिश्ती (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) को उद्धृत कर दिया और गलती से देवगन ने भी चिश्ती नाम का जिक्र कर दिया, जबकि वह खिलजी (अलाउद्दीन खिलजी) का जिक्र करना चाहते थे। जुबान फिसल जाने को फौरन ही महसूस करते हुए याचिकाकर्ता ने स्पष्टीकरण दिया और स्पष्ट किया कि चिश्ती का जिक्र गलती से और अनजाने में हो गया।
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