मुंबई, आठ फरवरी बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार के कामकाज से संबंधित फर्जी और झूठी सामग्री की पहचान करने के लिए हाल ही में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत एक तथ्य जांच इकाई (एफसीयू)के गठन पर रोक के मुद्दे पर एक तीसरे न्यायाधीश फैसला करेंगे।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एफसीयू को सरकार के अधिसूचित नहीं करने का उनका पूर्व का बयान तीसरे न्यायाधीश द्वारा मामले में अंतरिम राहत पर विचार किए जाने तक लागू रहेगा।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को चुनौती देने के लिए दायर कई याचिकाओं पर 31 जनवरी को खंडित फैसला दिया था।
न्यायमूर्ति पटेल ने अपने फैसले में नियमों को सेंसरशिप के बराबर करार दिया था, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने आदेश में कहा था कि नियमों का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विपरीत असर नहीं डालता। अदालत ने तब कहा था कि इस मुद्दे को तीसरे न्यायाधीश के पास उनकी राय के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद फैसला सुनाया जाएगा।
उस समय सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि उनका पहले का बयान कि सरकार नियमों के तहत एफसीयू को अधिसूचित नहीं करेगी, केवल दस और दिनों तक जारी रखा जा सकता है।
हास्य कलाकार कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने अंतरिम आवेदन दायर कर अदालत से अनुरोध किया कि तीसरे न्यायाधीश की ओर से मुद्दे पर राय दिए जाने तक सरकार द्वारा पहले दिए गए आश्वासन को जारी रखा जाए।
न्यायमूर्ति पटेल और न्यायमूर्ति गोखले की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि नियमों की संवैधानिक वैधता के मुख्य मुद्दे पर और अंतरिम रोक जारी रखने की जरूरत है या नहीं, इस पर उनके विचार अलग-अलग हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, एफसीयू के गठन पर रोक संबंधी पहले के बयान को जारी रखने का अनुरोध करने वाले अंतरिम आवेदनों पर तीसरे न्यायाधीश द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए।’’
अदालत ने मेहता के बयान को स्वीकार कर लिया और कहा कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने बुधवार को इस मुद्दे को तीसरे न्यायाधीश को सौंपते हुए एक आदेश पारित किया है।
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि नियम मनमाना और असंवैधानिक है।
न्यायमूर्ति पटेल ने चुनौती दिए गए नियम को अंसवैधानिक करार देते हुए उन्हें खारिज कर दिया था, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने उन्हें बरकरार रखा और याचिकाएं खारिज कर दीं।
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