नयी दिल्ली, 3 जुलाई : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करने के झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश को लेकर नाराजगी जताई. न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय इस मामले के दायरे से बाहर निकल गया और अगर वह पाता है कि तथ्यात्मक स्थितियां इस तरह की कार्रवाई का समर्थन करती हैं, तो वह ज्यादा से ज्यादा इस मामले को जनहित याचिका बना सकता था. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने 29 जून को पारित अपने आदेश में कहा कि अधिकारियों के पेश होने की कोई आवश्यकता नहीं है और चूंकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका को लेकर चल रही कार्यवाही बंद हो गई है, इसलिए अब इस मामले में कुछ भी शेष नहीं है. गौरतलब है कि पीठ नौ अप्रैल और 13 अप्रैल को पारित उच्च न्यायालय के दो आदेशों के खिलाफ झारखंड सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया था और उनसे पूछा था कि उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई क्यों न की जाए.
अपनी याचिका में, राज्य सरकार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अप्रत्याशित ढंग से उक्त कार्यवाही जारी रखी और जांच अधिकारियों और सरकारी डॉक्टरों की ओर से हुई कथित चूक पर राज्य से संबंधित सामान्य प्रकृति के कई निर्देश पारित किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप अभियुक्त पर कथित रूप से झूठा मुकदमा चलाया गया, जिसने अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दी थी.
उच्च न्यायालय धनबाद निवासी बसीर अंसारी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर उसकी पत्नी अंजुम बानो द्वारा शादी के एक साल के भीतर अपने मायके में आत्महत्या करने के बाद आईपीसी की धारा 498 ए और अन्य प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. अंसारी ने कहा कि उसकी शादी सात जुलाई, 2018 को हुई थी और उसकी पत्नी ने अगस्त 2018 में पेट में दर्द की शिकायत की, जिसके बाद उसका अल्ट्रासाउंड किया गया और यह पाया गया कि वह तीन महीने की गर्भवती है. बसीर ने कहा, “अंजुम बानो के पिता को सूचित किया गया और उसे उसके पिता को सौंप दिया गया, जो उसे अपने गाँव ले गये, और समय से पहले गर्भ को समाप्त कर दिया गया. इसके बाद अंजुम बानो ने अपने पिता के घर पर आत्महत्या कर ली.'' यह भी पढ़ें : Uttarakhand New CM: जानें कौन हैं पुष्कर सिंह धामी, जिन्हें BJP ने विधायक दल की बैठक में चुना राज्य का अगला मुख्यमंत्री
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अंजुम बानो का शव परीक्षण डॉ. स्वपन कुमार सरक द्वारा किया गया था, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में, उन्होंने महिला की मृत्यु से ठीक पहले गर्भपात का उल्लेख नहीं किया है. उच्च न्यायालय ने तब मुख्य सचिव को झारखंड में सरकारी या निजी क्षेत्र में प्रैक्टिस करने वाले सभी डॉक्टरों के प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने का निर्देश दिया था. नौ अप्रैल को, उच्च न्यायालय ने कहा था कि मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामा अदालत के पहले के आदेशों के अनुसार नहीं है जबकि वह डॉ स्वपन कुमार सरक की नामांकन संख्या का उल्लेख करने में भी विफल रहे हैं, जिनके आचरण का मामला 2018 से अदालत में लंबित है. इसके बाद, मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव को उसी दिन वर्चुअल माध्यम से बुलाया गया, लेकिन अधिकारी उपस्थित नहीं हुए और बाद में उन्होंने अपनी अनुपस्थिति के कारण के रूप में कोविड-19 प्रबंधन से संबंधित मुद्दों के कारण अपने व्यस्त कार्यक्रम का हवाला दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने डॉ स्वपन कुमार सरक के कथित आचरण को लेकर अग्रिम जमानत के पहलू के बाहर के कई अन्य पहलुओं पर गौर किया. पीठ ने कहा कि अगर उच्च न्यायालय को लगता है कि तथ्यात्मक परिदृश्य इस तरह की कार्रवाई का समर्थन करते हैं तो वह एक जनहित याचिका दर्ज कर सकता है.