जरुरी जानकारी | रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया, पर नरम रुख बरकरार
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा। हालांकि आरबीआई ने मौद्रिक नीति के मामले में नरम रुख बनाये रखा है और कहा कि जरूरत पड़ने पर आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिये वह उपयुक्त कदम उठाएगा।
मुंबई, नौ दिसंबर भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा। हालांकि आरबीआई ने मौद्रिक नीति के मामले में नरम रुख बनाये रखा है और कहा कि जरूरत पड़ने पर आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिये वह उपयुक्त कदम उठाएगा।
केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। समीक्षा में अनुमान लगाया गया है कि चौथी तिमाही तक संकुचन के दौर से वृद्धि के दौर में लौट आएगी।
केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘‘ मौजूदा और उभरती वृहत आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने शुक्रवार को हुई बैठक में सभी सदस्यों ने आम सहमति से नकदी समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रेपो दर को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय किया।’’
इसके साथ रिवर्स रेपो 3.35 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) तथा बैंक दर 4.25 प्रतिशत पर बरकरार रहेगी।
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रेपो दर वह ब्याज है जिस पर बैंक रिजर्व बैंक से नकदी की फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिये कर्ज लेते हैं जबकि रिवर्स रेपो बैंक द्वारा आरबीआई को दिये जाने वाले कर्ज या उसके पास रखने वाली राशि पर मिलने वाला ब्याज है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए यह भी कहा कि आरबीआई आर्थिक वृद्धि को पटरी पर लाने के लिये उदार रुख को बनाये रखेगा।
उदार रुख से कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यववस्था को गति देने के लिये जरूरत पड़ने पर नीतिगत दरों में कटौती की जा सकती है।
आरबीआई के बयान के अनुसार यह निर्णय उपभोक्ता मूल्य सूचंकाक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत के स्तर पर बरकरार रखने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया है।
केंद्रीय बैंक के अनुसार आंकड़ों के आधार पर 2020 की तीसरी तिमाही में वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में पुनरूद्धार के संकत है लेकिन कई देशों में कोविड-19 संक्रमण में नये सिरे से वृद्धि को देखते हुए जोखिम बना हुआ है।
घरेलू अर्थव्यवस्था के बारे में दास ने कहा, ‘‘उच्च आवृत्ति के आंकड़े (पीएमआई, बिजली खपत आदि) संकेत देते हैं कि आर्थिक गतिविधियां 2020-21 की दूसरी तिमाही में स्थिर हुई हैं।’’
सरकार के व्यय और ग्रामीण मांग, विनिर्माण खासकर उपभोक्ता और गैर-टिकाऊ सामान के क्षेत्र में तेज होने और यात्री वाहन तथा रेल माल ढुलाई जैसे सेवाओं में दूसरी तिमाही में स्थिति बेहतर हुई है।
इससे पहले, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में 23.9 प्रतिशत कीगिरावट दर्ज की गयी थी।
आर्थिक वृद्धि परिदृश्य के बारे में दास ने कहा, ‘‘चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पुनरूद्धार मजबूत होने का अनुमान है लेकिन शहरी क्षेत्र में मांग में तेजी आने में वक्त लग सकता है। इसका कारण सामाजिक दूरी नियमों का पालन और कोविड-19 संक्रमण के बढते मामले हैं...।’’
हालांकि दास ने कहा, ‘‘अप्रैल- जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में आई गिरावट अब पीछे रह गयी है और अर्थव्यवस्था में उम्मीद की किरण दिखने लगी है ...।’’ उन्होंने विनिर्माण क्षेत्र और ऊर्जा खपत में तेजी का जिक्र किया।
दास ने कहा, ‘‘कृषि क्षेत्र के परिदृश्य मजबूत बना हुआ है। इस साल कृषि उत्पादन रिकार्ड रहने का अनुमान है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वस्तु निर्यात कोविड पूर्व स्तर पर धीरे-धीरे पहुंच रहा है और आयात में गिरावट में भी कुछ कमी आयी है। ऐसे में दूसरी तिमाही में व्यापार घाटा तिमाही आधार पर बढ़ेगा।’’
आरबीआई के अनुसार मुख्य रूप से आपूर्ति संबंधी बाधाओं और उच्च मार्जिन के कारण खाद्य और ईंधन के दाम पर दबाव रहा जिससे खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई-अगस्त, 2020 के दौरान बढ़कर 6.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी।
हालांकि अने वाले समय में महंगाई दर में नरमी का अनुमान जताया गया है।
एमपीसी ने समीक्षा में कहा, ‘‘समिति का विचार है कि मुद्रास्फीति कई महीनों से ऊंची बनी हुई है जिसका प्रमुख कारण आपूर्ति संबंधी बाधाएं हैं। अर्थव्यवस्था में ‘लॉकडाउन’ से जुड़ी पाबंदियों में ढील के साथ आने वाले महीनों में आपूर्ति व्यवस्था और गतिविधयां सामान्य स्तर पर आएंगी।’’
‘‘समिति ने इस पर गौर करते हुए यथास्थिति बनाये रखने का निर्णय किया और आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये उपलब्ध गुंजाइश का उपयोग करने को लेकर मुद्रस्फीति में नरमी आने की प्रतीक्षा का निर्णय किया है।’’
इससे पहले, आरबीआई ने 22 मई को कोविड-19 संकट से प्रभावित अर्थव्यवस्था में मांग को गति देने के इरादे से नीतिगत दर में कटौती की थी। इस कटौती के बाद नीतिगत दर अबतक के सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गयी।
तीन नये बाह्य सदस्यों...आशिमा गोयल, जयंत आर वर्मा और शंशाक भिडे...के साथ मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 25वीं बैठक सात अक्टूबर को शुरू हुई। इन तीनों सदस्यों की नियुक्ति बैठक से ठीक एक दिन पहले चार साल के लिये हुई।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले, एमपीसी की बैठक 29 सितंबर से एक अक्टूबर को होनी थी। लेकिन सरकार के नये सदस्यों की नियुक्ति निर्धारित समय पर नहीं कर पाने से पहली बार समिति की बैठक टालनी पड़ी थी।
सरकार ने 2016 में नीतिगत दरों में कटौती का जिम्मा आरबीआई गवर्नर से लेकर छह सदस्यीय एमपीसी को दी। आरबीआई के गवर्नर की अध्यक्षता वाली एमपीसी में तीन रिजर्व बैंक और तीन सरकार द्वारा नामित बाहरी सदस्य होते हैं।
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