देश की खबरें | संसद में गतिरोध दूर करने की पहल सरकार की तरफ से होनी चाहिए: पी. डी. टी. आचारी

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. महंगाई सहित विभिन्न मुद्दों पर हंगामे के कारण संसद के मानसून सत्र के शुरुआती दो हफ्ते हंगामे की भेंट चढ़ गए। इस दौरान राज्यसभा के 23 और लोकसभा के चार सांसदों को निलंबित भी किया गया। संसदीय कार्यवाही के निरंतर गिरते स्तर और करदाताओं के पैसों के दुरुपयोग मुद्दों पर संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पी. डी. टी. आचारी से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:

नयी दिल्ली, 31 जुलाई महंगाई सहित विभिन्न मुद्दों पर हंगामे के कारण संसद के मानसून सत्र के शुरुआती दो हफ्ते हंगामे की भेंट चढ़ गए। इस दौरान राज्यसभा के 23 और लोकसभा के चार सांसदों को निलंबित भी किया गया। संसदीय कार्यवाही के निरंतर गिरते स्तर और करदाताओं के पैसों के दुरुपयोग मुद्दों पर संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पी. डी. टी. आचारी से के पांच सवाल और उनके जवाब:

सवाल: संसद के मानसून सत्र के पहले दो हफ्ते हंगामे में बर्बाद हो गए। इसे कैसे देखते हैं आप?

जवाब: हंगामा और गतिरोध का होना कोई नयी बात नहीं है। कई बार तो पूरा का पूरा सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। समस्या यह है कि विपक्ष चाहता है कि कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हो जाए और सरकार उसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं रहती। सरकार की तरफ से हिचकिचाहट रहती है, वह चाहे किसी की भी हो। इस वजह से हंगामा होता है और कार्यवाही बाधित होती है। अभी जो सत्ताधारी पार्टी है, वह जब विपक्ष में थी तब वह भी यही करती थी। संसद में जितने दल हैं, सभी ने इस तरह के हंगामे किए हैं और कार्यवाही को बाधित किया है। लेकिन संसद में यह नहीं होना चाहिए। इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए पहल सरकार की तरफ से होनी चाहिए। सरकार में जो पार्टी है वह बहुत बड़ी और शक्तिशाली पार्टी है। उसे प्रतिपक्ष से बात करनी चाहिए। उनकी चिंताओं का समाधान कर रास्ता निकालना चाहिए।

सवाल: सरकार के चर्चा कराने में आनाकानी करने पर विपक्ष के क्या अधिकार हैं?

जवाब: संविधान के हिसाब से पक्ष हो या विपक्ष सबके अधिकार समान हैं, लेकिन शक्तियां सरकार के पास होती हैं। विपक्ष चर्चा की मांग कर सकता है, लेकिन उसके लिए समय निकालना सरकार का काम है। सरकार अगर समय नहीं निकालती है, तो विपक्ष के पास कोई चारा नहीं होता। वह क्या कर सकते हैं? अधिक से अधिक मांग रख सकते हैं। सरकार जब चर्चा को तैयार नहीं होती है, तो फिर इस प्रकार के हंगामे का वातावरण बनता है। सरकार से सवाल करना, सरकार की आलोचना करना, सरकार की नीतियों में खामियां निकालना और सकारात्मक सुझाव देना, यही तो विपक्ष का काम है। विपक्ष अगर यह भी ना कर पाए तो उसके लिए बहुत मुश्किल स्थिति हो जाती है। तो फिर संसद कैसे चलेगा। पंडित नेहरू के जमाने में विपक्ष को अधिक समय दिया जाता था। वह सत्ता पक्ष से अधिक समय विपक्ष को देते थे, ताकि सरकार के बारे में विपक्ष की राय वह जान सकें। गलतियों को सुधार सकें। वह हमेशा विपक्ष की आलोचना सुनने को तैयार रहते थे। इतना ही नहीं प्रखर आलोचना करने वालों और सकारात्मक सुझाव देने वालों की वह पीठ भी थपथपाते थे। यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त होती चली गई। सरकार को चाहिए कि वह गतिरोध दूर करे। पूरे विपक्ष को साथ लेकर चले। वैसे भी इस सरकार की नीति ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ की है।

सवाल: संसद नहीं चल पाने के लिए किसे ज्यादा जिम्मेदार मानेंगे आप?

जवाब: इसके लिए काफी हद तक सरकार जिम्मेदार है। क्योंकि वह चर्चा से कतरा रही है। चर्चा कराने में आखिर क्या जाता है। एक कहावत है ‘‘अपोजिशन विल हेव इट्स से’’ एंड ‘‘द गवर्नमेंट विल हैव इट्स वे’’। विपक्ष को कहने का मौका मिलना चाहिए। सरकार की नीति में क्या खामियां हैं, यह तो विपक्ष ही बता सकता है। सत्ताधारी पार्टी के लोग थोड़े ही बताएंगे। इसलिए सरकार को विपक्ष की आलोचना सुननी चाहिए। उसमें तथ्य हैं तो सुधार करना चाहिए और नहीं हैं तो विपक्ष को जवाब देना चाहिए। संसदीय लोकतंत्र में सत्य को छिपाना नहीं है। सरकार और विपक्ष के बीच में विश्वास का वातावरण होना चाहिए तब जाकर संसदीय लोकतंत्र मजबूत होता है। संसदीय लोकतंत्र बैलगाड़ी के दो पहियों के समान हैं, ये पहिए सरकार और विपक्ष हैं।

सवाल: संसद के ना चलने से लोकतंत्र किस प्रकार से प्रभावित होता है?

जवाब: जब संसद में इस प्रकार का हंगामा होता है, तो लोकतंत्र कमजोर होता है। संसद की अहमियत घटती है। लोग यही सोचते हैं कि भाई संसद होने का हमें क्या फायदा है। यहां तो लोग हंगामा ही करते हैं। जनता में गलत संदेश जाता है। अध्यक्ष के आसन के नजदीक आकर हंगामा करना, कभी-कभी कागज के टुकड़े कर हवा में लहराना, यह सब तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। कई बार तो हंगामा करने वाले लक्ष्मण रेखा भी पार कर जाते हैं। इससे लोकतंत्र प्रभावित होता है। मैंने संसद में 40 साल बिताए हैं। पहले तो कभी ऐसा नहीं होता था। मर्यादा के साथ विरोध जताया जाता था। इसकी शुरुआत कुछ ‘‘बैकबेंचर्स’’ ने की थी। उसके बाद यह परंपरा स्थापित हो गई।

सवाल: किसी सांसद द्वारा सदन के बाहर की गई किसी टिप्पणी पर संसद में हंगामा और संसद की कार्यवाही खत्म होने के बाद सोनिया गांधी और स्मृति ईरानी के बीच हुई नोकझोंक पर आप क्या कहेंगे?

जवाब: राष्ट्रपति के बारे में की गई टिप्पणी आपत्तिजनक है। राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं। भले ही सदन के बाहर कहा गया हो, लेकिन वह एक सार्वजनिक बयान था। मुझे ऐसा लगता है वह चूकवश उनके मुंह से निकल गया। लेकिन इसे जरूरत से ज्यादा उछाला जा रहा है और विवाद पैदा किया जा रहा है। सत्ताधारी दल के नेताओं और मंत्रियों की ओर से बार-बार यह दोहराना भी अनुचित है कि वह गरीब, जनजातीय और महिला हैं। राष्ट्रपति देश का राष्ट्रपति होता है, वह ना तो कोई दलित होता है और ना ही जनजातीय होता है। रही बात गांधी और ईरानी के बीच नोकझोंक की, तो मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा।

ब्रजेन्द्र संतोष

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