देश की खबरें | आरक्षण से संबंधित संशोधन विधेयकों पर राज्यपाल ने अभी तक नहीं दी है सहमति: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

रायपुर, आठ दिसंबर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्यपाल अनुसुइया उइके ने राज्य में आरक्षण को लेकर विधानसभा में पारित दो संशोधन विधेयकों पर अभी तक अपनी सहमति नहीं दी है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस महीने की तीन तारीख को छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 और छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 पारित किया गया था।

विधेयकों के अनुसार राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से जब विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी में देरी के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा, ''हम राजभवन द्वारा जारी बयान में विश्वास करते हैं। राज्यपाल ने कहा था कि जैसे ही विधेयक विधानसभा द्वारा पारित किया जाएगा वह तुरंत अपनी सहमति देंगी। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है।''

जब उनसे विधेयकों को अदालत में चुनौती देने की आशंका को लेकर सवाल किया गया तब उन्होंने कहा, ''क्या किसी को अदालत जाने से रोका जा सकता है? कोई कैसे अनुमान लगा सकता है कि अदालत में क्या होगा?''

यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा राजभवन के माध्यम से राज्य में आरक्षण को रोकने की कोशिश कर रही है, मुख्यमंत्री ने कहा, ''जिस हिसाब से राज्यपाल महोदया ने बयान दिया था कि तत्काल होगा और उसके बाद अब रुक रहा है। तो यह किस प्रकार के संकेत हैं समझा जा सकता है।''

इससे पहले वरिष्ठ आदिवासी नेता और राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री अमरजीत भगत ने बुधवार को राज्यपाल से मुलाकात की थी और उनसे विधेयकों पर अपनी सहमति देने का अनुरोध किया था।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने सितंबर माह में वर्ष 2012 में जारी राज्य सरकार के सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है।

इस फैसले के बाद जनजाति समुदाय के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया। उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद जनजातियों ने राज्य में आंदोलन शुरू कर दिया था। तब राज्यपाल उइके ने राज्य सरकार को आरक्षण बहाल करने के लिए अध्यादेश या विधेयक लाने पर पूर्ण सहयोग करने का आश्वासन दिया था।

राजभवन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्यपाल ने कानूनी विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों से यह समझने के लिए राय मांगी है कि यदि दोनों विधेयकों को अदालत में चुनौती दी जाती है तब आरक्षण को बढ़ाकर 76 प्रतिशत करने का बचाव कैसे किया जाएगा।

अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उच्च न्यायालय ने हाल ही में आरक्षण कोटा बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने के राज्य सरकार के 2012 के आदेश को रद्द कर दिया था। इसे देखते हुए राज्यपाल ने जानना चाहा है कि यदि आरक्षण को बढ़ाकर 76 प्रतिशत किये जाने को अदालत में चुनौती दी जाती है तब सरकार इसे कैसे सही ठहराएगी।

उन्होंने कहा कि कानूनी राय से संतुष्ट होने के बाद राज्यपाल विधेयकों पर अपनी सहमति देंगी।

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