देश की खबरें | न्यायालय ने हत्या के दोषी की उम्रकैद घटाने के उच्च न्यायालय के फैसले को ‘अस्वीकार्य’ बताया

नयी दिल्ली, दो सितंबर उच्चतम न्यायालय ने हत्या के दोषी की उम्रकैद की सजा को घटाने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को शुक्रवार को ‘अस्वीकार्य’ बताया।

उच्च न्यायालय ने उम्रकैद की सजा पाये अभियुक्त की सजा को जेल में उसके द्वारा सुनवाई के दौरान व्यतीत समय के बराबर कर दिया था।

हत्या के अपराध के लिए उम्रकैद से कम सजा नहीं हो सकती है, यह टिप्पणी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सजा की अवधि को घटाकर दोषी द्वारा जेल में गुजारे गए वक्त के बराबर कर दिया है जो सात साल 10 महीना है।

न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या की सजा मृत्युदंड या उम्रकैद और जुर्माना होनी चाहिए।

उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत प्रस्तावित न्यूनतम सजा उम्रकैद और जुर्माना है। अगर आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया गया है तो कोई भी सजा उम्रकैद से कम नहीं हो सकती है।’’

पीठ ने कहा कि इस प्रावधान के तहत दंडनीय अपराध के लिए उम्रकैद से कम कोई भी सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के विपरीत होगी।

पीठ ने कहा, ‘‘राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता की दलीलें सुनने के बाद और सजा कम किए जाने पर संज्ञान लेने और उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश पर संज्ञान लेने के बाद हमें पूरा विश्वास है कि यह अस्वीकार्य है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी स्वीकार किया है लेकिन उसकी सजा को घटा कर सुनवाई के दौरान जेल में रहने की अवधि... सात साल 10 महीने... कर दी है।’’

उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह फैसला सुनाया।

पीठ ने इस मामले में सुनवाई अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बहाल कर दिया और अभियुक्त को संबंधित अदालत या जेल प्राधिकरण के सामने समर्पण करने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)