नयी दिल्ली, 1 दिसंबर : उच्चतम न्यायालय ने राज्यसभा से निलंबन को चुनौती देने वाली आप सांसद राघव चड्ढा की याचिका पर सुनवाई शुक्रवार को टाल दी, क्योंकि उसे सूचित किया गया कि मामले में "कुछ रचनात्मक" होने की संभावना है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने राज्यसभा सचिवालय की ओर से मामले में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इन दलीलों पर गौर किया कि मामले में कुछ प्रगति होने की संभावना है. शीर्ष कानून अधिकारी ने कहा, "यदि आप इसे बाद में सुन सकते हैं, तो आपको कई मुद्दों पर विचार नहीं करना पड़ेगा." पीठ ने कहा, "इस मामले के बारे में कुछ न कहें... बस इंतजार करें. आइए एक समाधान निकालें." इसने याचिका पर आगे विचार के लिए आठ दिसंबर की तारीख तय की. चड्ढा की ओर से अदालत में पेश हुए वकील शादान फरासत ने आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सदस्य को उनके आधिकारिक बंगले के संबंध में मिले बेदखली नोटिस का मुद्दा उठाया और कहा कि उन्हें संरक्षण दिया जाए.
पीठ ने मेहता से इस मुद्दे पर गौर करने को कहा. बेदखली नोटिस से जुड़े एक अन्य मामले का जिक्र करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "इस (निलंबन) आधार पर, ऐसा नहीं होगा." बेदखली मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 अक्टूबर को, चड्ढा को संबंधित सरकारी बंगले में रहने की अनुमति दे दी थी, और शहर में प्रमुख स्थान पर उन्हें आवंटित आवास से बेदखल करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था. निचली अदालत के फैसले ने चड्ढा को बंगले से बेदखल करने का रास्ता साफ कर दिया था. इससे पहले, पीठ ने निलंबन के खिलाफ चड्ढा की याचिका पर सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए टाल दी थी, क्योंकि उसे सूचित किया गया था कि इस मुद्दे पर कुछ प्रगति हुई है. फरासत ने तब कहा था कि शीतकालीन सत्र के लिए सदन को प्रश्न भेजने की समयसीमा जल्द ही समाप्त हो रही है. यह भी पढ़ें : 2017 से पहले उत्तर प्रदेश में अपराधियों, भूमाफियाओं के हौसले बुलंद थे: योगी आदित्यनाथ
शीर्ष अदालत ने तीन नवंबर को चड्ढा को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से चयन समिति विवाद पर बिना शर्त माफी मांगने को कहा था और कहा था कि सभापति इस पर "सहानुभूतिपूर्वक" विचार कर सकते हैं. चड्ढा 11 अगस्त से निलंबित हैं जब कुछ सांसदों, जिनमें से अधिकतर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के थे, ने उन पर उनकी सहमति के बिना एक प्रस्ताव में अपना नाम जोड़ने का आरोप लगाया था. प्रस्ताव में विवादास्पद दिल्ली सेवा विधेयक की पड़ताल के लिए एक चयन समिति के गठन की मांग की गई थी. शिकायत पर गौर करते हुए सभापति ने आप नेता को विशेषाधिकार समिति की जांच लंबित रहने तक निलंबित कर दिया था.