नयी दिल्ली, पांच अगस्त उच्चतम न्यायालय अगले सप्ताह इस बहुचर्चित कानूनी प्रश्न पर सुनवाई करेगा कि यदि पति अपनी पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है, जो नाबालिग नहीं है, तो क्या पति को बलात्कार के अपराध के लिए अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए ?
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सोमवार को एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी की दलीलों पर गौर किया कि वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर याचिकाओं पर सुनवाई की जानी चाहिए।
सीजेआई ने कहा कि याचिकाओं पर अगले सप्ताह सुनवाई होगी। उन्होंने कहा कि पीठ इस सप्ताह कराधान कानूनों से संबंधित कई मामलों से निपटने में व्यस्त रहेगी।
सोलह जुलाई को एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने याचिकाओं का उल्लेख किया था और कहा था कि उन्हें "कुछ प्राथमिकता" दी जानी चाहिए।
सीजेआई ने कहा था कि याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी। उन्होंने संकेत दिया था कि उन पर 18 जुलाई को विचार किया जा सकता है।
अब निरस्त हो चुके और अब भारतीय न्याय संहिता द्वारा प्रतिस्थापित भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है तो पति द्वारा उसके साथ संभोग या यौन क्रिया किया जाना बलात्कार नहीं माना जाएगा।
यहां तक कि नए कानून- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद-2 में स्पष्ट किया गया है कि यदि पत्नी की उम्र 18 साल से कम नहीं है तो पति द्वारा उसके साथ संभोग या यौन क्रिया किया जाना बलात्कार नहीं है।
शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी, 2023 को भारतीय दंड संहिता के उस प्रावधान के खिलाफ कुछ याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने पर जबरन यौन संबंध के लिए पति को अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करता है।
बाद में 17 मई को, इसने इस मुद्दे पर बीएनएस प्रावधान को चुनौती देने वाली इसी तरह की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था।
नव अधिनियमित कानून - भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम - 1 जुलाई से प्रभावी हुए और आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह ली।
पीठ ने कहा था, "हमें वैवाहिक बलात्कार से संबंधित मामलों को सुलझाना है।"
केंद्र ने पहले कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करना चाहेगी।
याचिकाओं में से एक इस मुद्दे पर 11 मई, 2022 के दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले से संबंधित है। यह अपील एक महिला द्वारा दायर की गई है, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक थी।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने खंडित फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ताओं को उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की थी, क्योंकि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं, जिन पर उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय लिया जाना आवश्यक है।
एक अन्य याचिका कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ एक व्यक्ति ने दायर की है, जिसमें उसकी पत्नी के साथ कथित बलात्कार के मामले में उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया था।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले साल 23 मार्च को कहा था कि पति को उसकी पत्नी के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोपों से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ है।
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