नयी दिल्ली, 20 मई उच्चतम न्यायालय ने दो दशक पहले पत्नी की हत्या के जुर्म में कैद पति और उसके भाई को रिहा करने का आदेश दिया है।
इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि अपराध को देखने के लिए एक समान या सार्वभौमिक प्रतिक्रिया नहीं हो सकती और धारणा के आधार पर नतीजे नहीं निकाले जाने चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि केवल पत्नी को पसंद नहीं करने की वजह से उसकी हत्या करने की साजिश करने का सिद्धांत स्वीकार्य करने के लिए सर्वथा अनुचित है और अभियोजन पक्ष ऐसा कोई सबूत पेश करने में असफल रहा जो साबित कर सके कि सभी आरोपियों का विचार एवं मंशा एक ही थी।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की तीन सदस्यीय पीठ ने इसके साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया जिसमें सुरेंद्र कुमार (मृतका का देवर) और रणवीर (मृतका का पति) को पत्नी कमला रानी की हत्या करने का दोषी ठहराया गया था।
अदालत ने कहा कि हो सकता है कि रणवीर अपनी पत्नी से खुश नहीं था लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि उसने अपने भाई सुरेंद्र और पिता ओम प्रकाश (सुनवाई के दौरान मौत हो गई) के साथ मिलकर कमला रानी की हत्या की साजिश रची।
पीठ ने कहा, ‘‘आसान तथ्य व्यक्ति से नाखुशी को अगर स्वीकार भी कर लिया जाए तो व्यक्ति की हत्या की साजिश रचने का मजबूत उद्देश्य पेश नहीं किया जा सका।’’
अभियोजन पक्ष के मुताबिक आठ अगस्त 1993 को कुछ दिन मायके में रहने के बाद कमला रानी स्कूटर से अपने देवर सुरेंद्र के साथ लौट रही थी।
रास्ते में दो सशस्त्र बदमाशों से झड़प हुई और वे कमलारानी को सड़क के किनारे स्थित गन्ने की खेत में ले गए और उसे गोली मार दी और गहने लूट लिए।
प्राथमिकी में कमला रानी के ससुराल पक्ष पर मृतका से दुर्व्यवहार का आरोप लगाया गया जिसके आधार पर अपीलकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया और चार दिन बाद पुलिस ने साजिश और हत्या के आरोप में तीनों को औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया।
शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा कि जब सशस्त्र लुटेरों से सामना हुआ, इसके बावजूद उसे चोटें नहीं लेकिन इससे संदिग्ध गतिविधि का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।
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