नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि वह मदरसा संबंधी अपने कानून पर कायम है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय को पूरे कानून को असंवैधानिक नहीं ठहराना चाहिए था।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज से पूछा कि क्या वह कानून की वैधता पर कायम हैं, क्योंकि यह मदरसों को नियंत्रित करने का अधिकार भी प्रदान करता है।
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर नटराज के अपनी दलीलें पेश शुरू करते ही प्रधान न्यायाधीश ने उनसे पूछा, ‘‘क्या आप कानून की वैधता पर कायम हैं?’’
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 राज्य में मदरसों के संचालन को नियंत्रित करता है और इसे ऐसे संस्थानों में संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया गया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 22 मार्च को इस अधिनियम को ‘‘असंवैधानिक’’ और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया था तथा राज्य सरकार से मदरसा छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल करने को कहा था।
राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष कानून का समर्थन किया था। हालांकि, उसने फैसले के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की।
उच्चतम न्यायालय की पीठ द्वारा सवाल पूछे जाने के बाद नटराज ने कहा, ‘‘मैं इस कानून की वैधता का समर्थन करता हूं। चूंकि, (कानून की) संवैधानिकता को खारिज कर दिया गया है, इसलिए हम कुछ कहना चाहते हैं। हम कानून का बचाव कर रहे हैं। राज्य ने एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दायर नहीं की है।’’
नटराज ने कहा कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में अधिनियम के पक्ष में अपना जवाब दाखिल किया है और वह अपने रुख से पीछे नहीं हट सकती।
उन्होंने कहा कि कानून को पूरी तरह से रद्द करना गलत होगा और यह विधायी वैधता का मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकारों के आधार पर इसे रद्द किया गया है।
नटराज ने कहा, ‘‘पूरे कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है।’’
इस बीच, पीठ ने कहा, ‘‘राज्य के रूप में, आपके पास मदरसा कानून की धारा 20 के तहत मदरसों में शिक्षा की बुनियादी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अधिकार हैं और राज्य के तौर पर यदि आपको लगता है कि शिक्षा के बुनियादी स्तर का पालन नहीं किया जा रहा है, तो आप हमेशा हस्तक्षेप कर सकते हैं।’’
इससे पहले दिन में एक वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाए।
मदरसों को बंद करने और छात्रों को स्कूलों में भेजे जाने के बारे में उच्च न्यायालय द्वारा कही गई बात का जिक्र करते हुए रोहतगी ने कहा, ‘‘मेरे मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है क्योंकि मैं धार्मिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाउंगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मदरसों में सैकड़ों छात्र पढ़ रहे हैं और आप किसी को मजबूर नहीं कर सकते, यह धर्मनिरपेक्षता नहीं है।’’
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