कोलंबो, 20 अगस्त : श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Vikramsinghe) सरकार को अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को मान्यता देने को लेकर आगाह किया और काबुल के साथ संबंध तोड़ने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि इस बात पर फिर से विचार करना चाहिए कि क्या देश को क्षेत्र में अपना सिर उठाने वाले "आतंकवाद की मदद करने वाली पार्टी" होना चाहिए. बृहस्पतिवार को जारी एक बयान में, चार बार प्रधानमंत्री रहे विक्रमसिंघे ने कहा, “सभी को डर है कि तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान जिहादी आतंकवादी समूहों का केंद्र बन जाएगा.”
विक्रमसिंघे ने कहा, “राज्यों और लोगों को धमकाने के लिए उनकी कार्रवाई को कोई भी माफ नहीं कर सकता. कुरान की गलत व्याख्या पर आधारित उनकी विचारधारा पारंपरिक इस्लामी राज्यों और अन्य देशों के लिए खतरा है.” उन्होंने कहा, “तालिबान शासन को मान्यता देने के लिए हमारे पास कोई उचित कारण नहीं हैं.” यह भी पढ़ें : Uttar Pradesh: वाराणसी में 5 महिलाओं ने पुराने मंदिर परिसर में पूजा का अधिकार मांगा
विक्रमसिंघे ने वहां श्रीलंका दूतावास को बंद किए जाने की ओर इशारा करते हुए अफगानिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने की वकालत की. उन्होंने कहा "हमें मध्य एशियाई देश में एक दूतावास की आवश्यकता है, यह कहीं और स्थित हो सकता है.” विक्रमसिंघे ने याद किया कि तालिबान ने अफगानिस्तान में बामियान बौद्ध मूर्ति को नष्ट कर दिया था. तालिबान द्वारा 2001 में विशाल प्रतिमाओं को नष्ट करने की व्यापक अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई थी . निंदा करने वाले देशों में श्रीलंका भी शामिल था जहां बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है.