काबुल, 15 फरवरी (एपी) अफगानिस्तान में तालिबान राज के छह महीने पूरे होने के दौरान कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। अफगानिस्तान के लोग अब खुद को सुरक्षित मानने के साथ दशकों बाद हिंसा में कमी महसूस कर रहे हैं। लेकिन कभी विदेशी सहायता के बूते चलने वाली अफगान अर्थव्यवस्था अब पतन की तरफ बढ़ती दिख रही है। अफगानिस्तान से हजारों लोग पलायन कर चुके हैं या फिर उन्हें वहां से निकाल लिया गया है। इसमें शिक्षित अभिजात्य वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है। ये लोग अपने आर्थिक भविष्य या स्वतंत्रता के अभाव को लेकर डरे हुए हैं।
वर्ष 1990 के दशक के अंत में पिछले तालिबान शासन के दौरान लड़कियों के स्कूल जाने और महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी गई थी। मंगलवार को अफगानिस्तान में तालिबान राज के छह महीने पूरे हो गए। अमेरिका समर्थित अफगान राष्ट्रपति अचानक और गुप्त तरीके से काबुल छोड़कर चले गए थे। प्रांतों पर नियंत्रण के लिए चले एक महीने के लंबे सैन्य अभियान के बाद तालिबान ने काबुल पर भी कब्जा कर लिया।
हालांकि आज भी सड़कों पर घूमते सशस्त्र तालिबान लड़ाकों का दृश्य लोगों को डराता है। लेकिन महिलाएं सड़कों पर लौट आई हैं। युवकों ने शुरू में पारंपरिक पायजामा-कमीज पहनने के लिए पश्चिमी परिधानों से पल्ला झाड़ लिया था, लेकिन युवा अब दोबारा पश्चिमी परिधान पहनने लगे हैं। हालांकि तालिबान लंबी कमीज और जेबदार पतलून का समर्थक है।
1990 के दशक के विपरीत तालिबान कुछ महिलाओं को काम करने की अनुमति दे रहा है। महिलाएं स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालयों के साथ-साथ काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नौकरी पर वापस आ गई हैं। लेकिन दूसरे मंत्रालयों में महिलाएं अब भी काम पर लौटने की प्रतीक्षा कर रही हैं। आर्थिक मंदी के दौर में हजारों नौकरियां चली गई हैं और महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। सोमवार को वैलेंटाइन्स डे पर दिल के आकार के फूल बेचने वाले कुछ युवकों को हिरासत में लेने से यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल पुरुषों द्वारा संचालित तालिबान प्रशासन प्रेम के मामले में पश्चिमी विचारों के प्रति सहिष्णु नहीं है।
कक्षा एक से छह तक की लड़कियां स्कूल जा रही हैं। लेकिन ज्यादातर हिसों में इससे ऊपर की कक्षाओं की छात्राएं अब भी घरों में बंद हैं। तालिबान ने वादा किया था कि मार्च के अंत में अफगान नव वर्ष के बाद सभी छात्राएं स्कूल जाएंगी। विश्वविद्यालय धीरे-धीरे फिर से खुल रहे हैं और निजी विश्वविद्यालय और स्कूल तो कभी बंद ही नहीं हुए।
देश में गरीबी गंभीर होती जा रही है। लोगों को अपने ही पैसे हासिल करने में दिक्कत हो रही है। बैंकों में लंबी-लंबी कतारें लगी हैं, लोगों को पैसा निकालने के लिए घंटों और कभी-कभी दिनभर इंतजार करना पड़ता है। बैंक से एक हफ्ते में पैसे निकालने की सीमा 200 डॉलर है।
तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगानिस्तान की नौ अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की विदेशी संपत्ति जब्त कर ली गई थी। पिछले हफ्ते राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें वादा किया गया था कि 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर (संयुक्त राज्य अमेरिका में जमा अफगानिस्तान के सात अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति में से) अमेरिका के 9/11 पीड़ितों के परिवारों को दिए जाएंगे। बाकी के 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर अफगान सहायता के लिए मुक्त किए जाएंगे।
अफगानी राजनेताओं ने अमेरिका के निर्णय की निंदा करते हुए आरोप लगाया है कि वह अफगानिस्तान के हिस्से के पैसे ले रहा है। अंतरराष्ट्रीय संकट समूह के एशिया प्रोग्राम के एक वरिष्ठ सलाहकार ग्रीम स्मिथ ने प्रतिबंधों के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि इसका असर उल्टा होगा। उन्होंने कहा, ‘‘तालिबान पर आर्थिक दबाव बरकरार रखने से उनके शासन से छुटकारा नहीं मिलेगा, लेकिन एक ढहती अर्थव्यवस्था के कारण और अधिक लोग पलायन कर सकते हैं, जिससे एक और पलायन संकट पैदा हो सकता है।
एपी
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