Sitaram Yechury: छात्र-कार्यकर्ता से लेकर उदार वामपंथी राजनीति तक का सफर
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पांचवें महासचिव सीताराम येचुरी देश में वामपंथ के सर्वाधिक पहचाने जाने वाले चेहरों में से एक थे और वह एक ऐसे उदार वामपंथी नेता थे जिनके मित्र सभी राजनीतिक दलों में थे.
नयी दिल्ली, 12 सितंबर : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पांचवें महासचिव सीताराम येचुरी देश में वामपंथ के सर्वाधिक पहचाने जाने वाले चेहरों में से एक थे और वह एक ऐसे उदार वामपंथी नेता थे जिनके मित्र सभी राजनीतिक दलों में थे. येचुरी का 72 वर्ष की आयु में बृहस्पतिवार को यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया. येचुरी को 19 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था.
येचुरी ने पार्टी के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में काम सीखा, जो 1989 में गठित वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान गठबंधन युग में एक प्रमुख नेता थे. इन दोनों ही सरकारों को माकपा ने बाहर से समर्थन दिया था.
संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने में येचुरी ने कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के साथ काम किया था. सुरजीत के शिष्य ने गठबंधन बनाने की उनकी विरासत को जारी रखा और 2004 में वाम दलों के समर्थन से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के गठन में सक्रिय भूमिका निभाई. यह भी पढ़ें : Public Holiday On Jashne Eid Milad Un Nabi 2024: क्या 16 September यानी ईद मिलाद-उन-नबी के दिन भारत में सार्वजनिक छुट्टी है
येचुरी ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर संप्रग सरकार के साथ चर्चा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हालांकि, 2008 में वामपंथी दलों ने इस मुद्दे पर संप्रग-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसका मुख्य कारण उनके पूर्ववर्ती प्रकाश करात का अडिग रुख था. वर्ष 2015 में पार्टी महासचिव का पदभार संभालने के बाद ‘पीटीआई-’ को दिए एक साक्षात्कार में येचुरी ने कहा था कि उन्हें महंगाई जैसे मुद्दों पर समर्थन वापस ले लेना चाहिए था, क्योंकि 2009 के आम चुनाव में परमाणु समझौते के मुद्दे पर लोगों को संगठित नहीं किया जा सका.