कोच्चि, 27 जुलाई केरल उच्च न्यायालय में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के साजी चेरियन को विधायक के तौर पर अयोग्य घोषित करने के लिए बुधवार को एक और याचिका दायर की गई।
चेरियन को अयोग्य करार देने का अनुरोध करने वाली पहली याचिका सोमवार को अदालत में दाखिल की गई थी।
उच्च न्यायालय ने बुधवार को नवीनतम अर्जी पर संक्षिप्त सुनवाई की। याचिका में दावा किया गया है कि जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा-9 के तहत चेरियन को अयोग्य करार दिया जाना चाहिए।
याचिका के मुताबिक कानून की धारा-9 के अनुसार ‘‘ऐसा व्यक्ति जो भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन पद ग्रहण कर रहा है, उसे भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठा नहीं रखने पर पांच वर्ष तक अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। अयोग्यता की अवधि अयोग्य करार दिए जाने के दिन से मानी जाएगी।’’
इस मामले में निर्वाचन आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता दीपूलाल मोहन ने बताया कि उच्च न्यायालय प्रथम दृष्टया इस बात पर सहमत नहीं था कि यह प्रवाधान इस मामले में लागू होता है।
उन्होंने बताया कि अदालत ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या विधायक का कार्यालय राज्य सरकार के तहत आता है, जैसा की प्रावधान में उल्लेख है। इसके साथ ही एडवोकेट जनरल को इस पहलु पर अगली सुनवाई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। अब मामले की सुनवाई अगस्त महीने में होगी।
इससे पहले दायर याचिका में दावा किया गया है कि चेरियन ने संविधान के अनुच्छेद 173(ए) तथा 188 का उल्लंघन किया ।
गौरतलब है कि संविधान के खिलाफ टिप्पणी को लेकर खड़े हुए विवाद के बाद माकपा विधायक साजी चेरियन ने राज्य सरकार में मंत्री पद से छह जुलाई को इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले, उन्हें राज्य विधानसभा से एक दिन के लिए निलंबित भी किया गया था।
उच्च न्यायालय में मंगलवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने दलील दी कि अगर एक मंत्री ने अपनी शपथ का उल्लंघन किया है, तो भी इस वजह से उसे विधायक के तौर पर अयोग्य घोषित करने की मांग नहीं की जा सकती। उसने कहा कि रिट याचिका में मांगी गई राहत प्रदान नहीं की जा सकती।
उच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-173 विधायक होने की योग्यता से संबंधित है और उसे इस मामले में लागू नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि हालांकि चेरियन का बयान अनुच्छेद-188 के दायरे में आता है।
अनुच्छेद-188 विधानसभा या किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों द्वारा शपथ या अभिकथन के उल्लंघन से संबंधित है।
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