
नयी दिल्ली, 29 अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता एक 16-वर्षीया किशोरी को राजधानी के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 28 सप्ताह का गर्भ नष्ट कराने की अनुमति दे दी है और एम्स को डीएनए जांच के लिए भ्रूण संरक्षित रखने का आदेश भी दिया है।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने एम्स द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया। रिपोर्ट में पीड़िता के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से नष्ट करने की सिफारिश की गई थी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि किशोरी को अधिकारियों की इस धारणा के आलोक में अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा कि उसने गर्भावस्था को चिकित्सकीय तौर पर नष्ट करने के प्रावधानों के तहत 24 सप्ताह की गर्भावस्था की सीमा पार कर ली है, और अब (उसे) गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकेगी।
बलात्कार पीड़िता ने अपनी याचिका में कहा था कि भ्रूण 28 सप्ताह से अधिक का है और वह गर्भ को समाप्त करना चाहती है। उसकी इस अर्जी का समर्थन उसके भाई ने हलफनामा दाखिल करके किया था।
अदालत ने उच्च न्यायालय के 19 जुलाई के उस आदेश पर भी विचार किया, जिसमें उसने बलात्कार पीड़िता एक नाबालिग लड़की को भी गर्भ समाप्त करने की अनुमति दी थी।
उच्च न्यायालय ने मौजूदा याचिका स्वीकार कर ली और किशोरी को एम्स द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश होने के लिए कहा, जो उसकी गर्भावस्था को चिकित्सकीय तौर पर नष्ट करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया कर सकता है।
अदालत ने किशोरी को अपने भाई और बाल कल्याण समिति द्वारा प्रतिनियुक्त एक अधिकारी के साथ बोर्ड के सामने पेश होने के लिए कहा, ताकि कानून के अनुसार उचित कदम उठाए जा सकें।
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, ‘‘अदालत डीएनए परीक्षण के लिए नष्ट भ्रूण को संरक्षित करने का निर्देश देती है, जो लंबित आपराधिक मामले के प्रयोजनों के लिए आवश्यक होगा।’’
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