देश की खबरें | पत्नी के 18 साल की रहने पर वैवाहिक बलात्कार में आरोपित किये जाने से संरक्षण जारी रहेगा:अदालत
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को लेकर आरोपित किये जाने से व्यक्ति को संरक्षण उन मामलों में जारी रहेगा, जहां पत्नी 18 साल या इससे अधिक आयु की है।
प्रयागराज (उप्र), 10 दिसंबर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को लेकर आरोपित किये जाने से व्यक्ति को संरक्षण उन मामलों में जारी रहेगा, जहां पत्नी 18 साल या इससे अधिक आयु की है।
अदालत ने ‘इंडीपेंडेंट थाउट’ बनाम भारत संघ (2017) में दिये उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि एक पुरुष और उसकी 15 से 18 वर्ष के बीच की आयु की पत्नी के बीच यौन संबंध बलात्कार माना जाएगा।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ कथित अप्राकृतिक यौन संबंध के मामले में बरी करते हुए उल्लेख किया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत आने वाला ‘अप्राकृतिक यौन संबंध’ धारा 375 (ए) में शामिल है, जैसा कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था।
अपने आदेश में, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था कि बलात्कार से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (2013 संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित) में यौन संबंध बनाने के सभी संभावित पहलू शामिल हैं।
अदालत ने कहा था कि जब इस तरह के कृत्य के लिए सहमति महत्वहीन है तो आईपीसी की धारा 377 की धारा लगाने की कोई गुंजाइश नहीं है, जहां पति और पत्नी यौन गतिविधियों में शामिल रहे हों।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘इस प्रकार, उपरोक्त फैसले पर गौर करने पर यह भी पता चलता है कि वैवाहिक बलात्कार से किसी व्यक्ति को संरक्षण अब भी उस मामले में जारी है, जहां पत्नी की उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है।’’
आरोपी द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता, जिसके भारतीय दंड संहिता की जगह लेने की संभावना है, में आईपीसी की धारा 377 का कोई प्रावधान नहीं है।
हालांकि, अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज उत्पीड़न) और 323 के तहत आरोपों के लिए उसकी दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की।
इस मामले में, वर्ष 2013 में संजीव गुप्ता के खिलाफ उसकी पत्नी ने लिंक रोड, गाजियाबाद पुलिस थाना में आईपीसी की धारा 498ए, 323, 377 और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था।
हालांकि, गाजियाबाद की अदालत ने उक्त धाराओं के तहत उसे दोषी करार दिया था। अपीलीय अदालत ने भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया था। इसलिए याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
उच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 377 के तहत दोषसिद्धि के संबंध में कहा कि विवाह के बाद, पति द्वारा पत्नी का बलात्कार किये जाने को अभी तक इस देश में अपराध नहीं माना गया है, लेकिन कई याचिकाएं अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं।
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