मुंबई, 25 अक्टूबर राजनीतिक दल भले ही अक्सर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर वंशवाद की राजनीति करने का आरोप लगाते रहते हों लेकिन चुनाव के दौरान वे सभी अपने स्थापित नेताओं के रिश्तेदारों को मैदान में उतारने से नहीं कतराते। अगले महीने होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए घोषित उम्मीदवारों की सूची से भी यही साबित होता है।
राज्य के अधिकतर प्रमुख राजनीतिक दलों ने 20 नवंबर को 288 विधानसभा सीट पर होने वाले चुनाव के लिए अपने-अपने उम्मीदवारों की कम से कम पहली सूची घोषित कर दी है।
सत्तारूढ़ पक्ष की ओर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने उम्मीदवारों की पहली सूची की घोषणा कर दी है लेकिन विपक्षी महा विकास आघाडी (एमवीए) की ओर से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) ने ही अब तक पहली सूची जारी की है।
उनकी सूचियों से पता चलता है कि वर्तमान मंत्रियों, विधायकों या सांसदों के निकट संबंधियों को बड़ी संख्या में उम्मीदवार बनाया गया है।
इनमें पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए अशोक चव्हाण की बेटी श्रीजया चव्हाण भी शामिल हैं जो नांदेड़ जिले में अपने परिवार की परंपरागत सीट भोकर से चुनाव लड़ेंगी।
भाजपा की मुंबई इकाई के प्रमुख आशीष शेलार के भाई विनोद शेलार को पार्टी ने मलाड पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा है, जबकि आशीष को मुंबई की बांद्रा पश्चिम सीट से फिर से टिकट दिया गया है।
भाजपा ने श्रीगोंडा विधानसभा क्षेत्र (अहिल्यानगर जिले में) से अपने मौजूदा विधायक बबनराव पाचपुते का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण उनकी जगह उनकी पत्नी प्रतिभा पाचपुते को टिकट दिया है।
भाजपा ने ठाणे जिले के कल्याण पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से अपने विधायक गणपत गायकवाड़ की जगह उनकी पत्नी सुलभा को इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए नामित किया है। गायकवाड़ कुछ महीने पहले पुलिस थाने में शिवसेना कार्यकर्ता पर गोली चलाने के आरोप में फिलहाल जेल में हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा सदस्य नारायण राणे के बेटे नितेश वर्तमान में कंकावली विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके बड़े भाई एवं पूर्व लोकसभा सदस्य नीलेश अब सत्तारूढ़ शिवसेना में शामिल हो चुके हैं और कुदाल निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे, जो उनके गृह जिले सिंधुदुर्ग के अंतर्गत आता है।
पुणे जिले के चिंचवड निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा ने दिवंगत पार्टी नेता लक्ष्मण जगताप की पत्नी एवं मौजूदा विधायक अश्विनी जगताप को टिकट न देकर लक्ष्मण के भाई शंकर जगताप को टिकट दिया है। यह उनका पहला चुनाव है।
शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने रत्नागिरी जिले की राजापुर सीट से राज्य मंत्री उदय सामंत के भाई किरण सामंत को उम्मीदवार बनाया है।
इस वर्ष के आम चुनावों के बाद लोकसभा के सदस्य बने शिवसेना नेताओं संदीपन भुमरे और रवींद्र वायकर के परिवार के सदस्यों को भी पार्टी ने उन संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों से मौका दिया है, जिनका ये दोनों पूर्व विधायक प्रतिनिधित्व करते थे।
भुमरे के बेटे विलास छत्रपति संभाजीनगर जिले के पैठण से चुनाव लड़ेंगे, जबकि वायकर की पत्नी मनीषा, जोगेश्वरी पूर्व विधानसभा सीट से चुनाव में किस्मत आजमाएंगी।
सत्तारूढ़ राकांपा ने इस महीने की शुरुआत में पंकज भुजबल को पार्टी एमएलसी (विधान परिषद के सदस्य) के रूप में नामित किया था। वह पार्टी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल के बेटे हैं, जो नासिक जिले के येवला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
शिवसेना (यूबीटी) ने मुंबई की वर्ली सीट से मौजूदा विधायक आदित्य ठाकरे को फिर से उम्मीदवार बनाया है, जबकि उनके उनके मौसेरे भाई वरुण सरदेसाई बांद्रा पूर्व से अपना पहला चुनाव लड़ेंगे। शिवसेना (यूबीटी) ने मुंबई की विकरोली सीट से पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय राउत के भाई और मौजूदा विधायक सुनील राउत को टिकट देने का फैसला किया है।
हालांकि राकांपा (एसपी) ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की सूची की घोषणा नहीं की है लेकिन पूर्व गृह मंत्री दिवंगत आर आर पाटिल के बेटे रोहित पाटिल ने बृहस्पतिवार को सांगली जिले के तासगांव-कवठे महांकाल निर्वाचन क्षेत्र से राकांपा (एसपी) उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, शरद पवार के पोते और अहिल्यानगर में कर्जत जामखेड विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक रोहित पवार को इस निर्वाचन क्षेत्र से फिर से टिकट दिए जाने की संभावना है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने कभी चुनाव नहीं लड़ा लेकिन उन्होंने अपने बेटे अमित को मुंबई की माहिम विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। यह उनका पहला चुनाव होगा।
पार्टियों द्वारा नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट दिए जाने के बारे में पूछे जाने पर राजनीतिक पर्यवेक्षक अभय देशपांडे ने कहा, ‘‘स्थापित नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं और इसके लिए वे मतदाताओं के साथ अपना नेटवर्क एवं संपर्क विकसित करते हैं। उनका पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्र उस विशेष परिवार का गढ़ बन जाता है और इसलिए इसे राजनीतिक विरासत के रूप में उनके बेटे या बेटी को सौंप दिया जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन कुछ मामलों में पार्टी किसी स्थापित नेता के निधन के बाद उसके परिवार से किसी सदस्य को उम्मीदवार बनाती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसका एक कारण मतदाताओं की परिवार के प्रति सहानुभूति से राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है। साथ ही, इसे उस विशेष परिवार के प्रति राजनीतिक पार्टी के आभार का प्रतीक भी माना जाता है जिसने लंबे समय तक उसकी सेवा की हो।’’
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