नयी दिल्ली, एक दिसंबर यहां एम्स में इलाज करा रहे दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी ‘लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर’ से पीड़ित मरीज दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीआरडी) 2021 के तहत सरकार से मिली 50 लाख रुपये की एकमुश्त धनराशि खत्म होने के बाद जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मरीजों के परिवार के सदस्यों ने कहा कि चार अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप करने और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को तत्काल धन जारी करने का निर्देश देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीजों के अधिकारों की पैरवी करने वाले सहायता समूह ‘द लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स सपोर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया (एलएसडीएसएस)’ ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से गौचर रोग के मरीजों के स्थायी इलाज का समर्थन करने की अपील की है।
अशोक कुमार (3), अब्दुल रहमान (10) और अलिश्बा खान (6) गौचर नामक जानलेवा दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं, जिसके लिए निरंतर उपचार-एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ईआरटी) की आवश्यकता होती है।
धन की कमी की वजह से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा उनका इलाज बंद किए जाने से गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं पैदा हो गई हैं और उनका जीवन खतरे में पड़ गया है।
अलिश्बा की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। उसके पिता ने कहा, “मेरी बच्ची की हालत में सुधार हो रहा था, लेकिन अगस्त में उसका इलाज बंद कर दिया गया, जिससे उसकी तिल्ली फिर से बढ़ रही है। वह लगातार दर्द में है और मैं लाचार महसूस कर रहा हूं।”
अलिश्बा के पिता ने कहा कि जब उसकी बेटी का इलाज रोक दिया गया, तो उसकी सुनने की क्षमता खत्म हो गई। उसने अलिश्बा की जान बचाने के लिए मंत्रालय से तत्काल धनराशि जारी करने की अपील की।
राजस्थान निवासी अशोक भी गौचर रोग से जूझ रहा है। उसके पिता ने बताया कि एम्स ने अगस्त में अशोक का इलाज रोक दिया था।
अशोक ने पिता ने कहा, “सरकारी सहायता से हमें उम्मीद जगी, लेकिन अब हमें नहीं पता कि क्या करना चाहिए। देरी से मेरे बच्चे की जान जोखिम में पड़ रही है।”
उत्तर प्रदेश के रहने वाले अब्दुल के पिता ने कहा, “सितंबर से इलाज बंद होने के कारण मेरे बेटे की हालत रोजाना खराब होती जा रही है। उसे बुखार और खांसी हो रही है, क्योंकि उसकी स्वास्थ्य स्थिति अप्रत्याशित हो गई है। मैं सरकार से मेरे बेटे के लिए तुरंत धन जारी करने का आग्रह करता हूं।”
एलएसडीएसएस के अध्यक्ष मंजीत सिंह ने कहा कि गौचर रोगियों के लिए चिकित्सा की परिवर्तनकारी प्रकृति स्पष्ट है और ईआरटी ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति (एनआरडीसी) की बेंचमार्किंग रिपोर्ट में 10/10 अंक हासिल किए हैं।
उन्होंने कहा, “हालांकि, सिद्ध प्रभाव के बावजूद मौजूदा समय में केवल 25 फीसदी पात्र गौचर रोगियों को उपचार मिल रहा है। यह भारी अंतर स्थायी वित्त पोषण तंत्र और सुव्यवस्थित उपचार प्रोटोकॉल को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी मरीज को जीवन रक्षक देखभाल के लिए इंतजार न करना पड़े।”
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