इंफाल, आठ अक्टूबर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने मंगलवार को कहा कि अतीत में कई अधिकारियों ने अपने समुदाय के लाभ के लिए राज्य सरकार से मंजूरी लिए बिना ही पहाड़ी गांवों को मान्यता दे दी थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन गांवों को संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) या उप-संभागीय अधिकारी (एसडीओ) जैसे अधिकारियों ने अपनी शक्ति से परे जाकर पंजीकृत किया है, उन्हें मनरेगा और जलापूर्ति जैसी सरकारी सुविधाएं नहीं दी जाएंगी।
हालांकि, सिंह ने कहा कि सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगी क्योंकि उनमें से ज्यादातर सेवानिवृत्त हो चुके हैं और मानवीय आधार पर भी ऐसा नहीं किया जाएगा।
सिंह ने कहा, ‘‘डीएफओ या एसडीओ अकेले ही लैंगोल और नोंगमाईजिंग के पहाड़ी गांवों को मान्यता दे रहे थे। चुराचांदपुर खौफुम क्षेत्र (जंगल) में एक एसडीसी (उप-कलेक्टर) द्वारा 31 गांवों को मान्यता दी गई, जो उन्हें प्राप्त शक्तियों से परे लिया गया फैसला है।’’
मुख्यमंत्री 70वें वन्यजीव सप्ताह समारोह के समापन के अवसर पर एक सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने अधिकारियों से भारतीय वन अधिनियमों और संविधान के प्रावधानों के दायरे में अपने कर्तव्यों का पालन करने का आग्रह किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि टेंग्नौपाल जिले के लोकचाओ को वन्यजीव क्षेत्र माना जाता है, हालांकि वहां कोई वन्यजीव नहीं है।
उन्होंने कहा कि मोरेह में एक ग्राम प्रधान ने राज्य सरकार से परामर्श किए बिना राजस्व विभाग के एक अधिकारी के माध्यम से सुरक्षा बलों को कई एकड़ जमीन आवंटित कर दी।
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