देश की खबरें | चुनाव घोषणापत्र में नकद देने के वादे को भ्रष्ट आचरण घोषित करने की याचिका पर निर्वाचन आयोग को नोटिस

नयी दिल्ली, 15 सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को निर्वाचन आयोग से सवाल किया कि क्यों वह उन राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई से ‘बच रहा’ है जो ‘भ्रष्ट आचरण’ सबंधी उसके दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हैं। अदालत ने इसके साथ ही चुनाव घोषणा में नकद हस्तांरण के वादे को भ्रष्ट चुनावी आचरण घोषित करने के लिए दायर जनहित याचिका पर आयोग से जवाब तलब किया।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा, ‘‘क्यों आप कार्रवाई करने से बच रहे हैं? आप कार्रवाई करना शुरू करें। केवल नोटिस और पत्र जारी नहीं करें। हम देखते हैं कि आप क्या कार्रवाई करते हैं। आप सजा के तरीके भी प्रस्तावित कर सकते हैं।’’

अदालत ने यह टिप्पणी निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील द्वारा यह कहने के बाद की कि उसने पहले ही ‘‘भ्रष्ट कृत्यों’ को लेकर दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं और उन्हें राजनीतिक दलों को भेजा है। पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग को अपने दिशानिर्देशों के संदर्भ में कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।

उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र को भी जवाब को देने का निर्देश दिया जिसमें कहा गया है कि ‘नोट के बदले’ वोट जनप्रतिनिधि कानून की धारा-123 का उल्लंघन हैं। यह धारा भ्रष्ट आचरण और रिश्वत से संबंधित है।

पीठ ने दो राजनीतिक पार्टियों- कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी (तेदपा)- से भी उनका रुख पूछा है क्योंकि याचिका में कहा गया है कि तेदपा और कांग्रेस ने वर्ष 2019 के आम चुनाव में समाज के कुछ वर्गों को नकद देने की पेशकश की थी।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने न्यूनतम आय योजना की घोषणा की थी जिसके तहत अर्हता रखने वाले परिवार को सालाना 72 हजार रुपये देने की पेशकश की गई थी।

अदालत दो अधिवक्ताओं- पराशर नारायण शर्मा और कैप्टन गुरविंदर सिंह- की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनके वकीलों ने अनुरोध किया है कि चुनाव घोषणा पत्र में बिना किसी काम के नकद देने की पेशकश को गैर कानूनी घोषित किया जाए।

उच्च न्यायालय ने अब इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 24 सितंबर की तारीख तय की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सौम्या चक्रवर्ती ने कहा कि ‘‘जब बिना किसी श्रम के नकद की पेशकश की जाती तो यह किसी नीति द्वारा समर्थित नहीं होती।

उन्होंने कहा, ‘‘ कोविड-19 के दौरान लोगों के खातों में पैसे भेजे गए लेकिन वह असमान्य स्थिति थी। अगर राजनीतिक दलों ने बिना किसी काम के लोगों को रुपये देने की परिपाटी शुरू की तो हमारे उद्योग, कृषि खत्म हो जाएंगे।’’

अधिवक्ता अमरदीप मैनी के जरिये दायर याचिका में कहा गया, ‘‘लोकतंत्र की सफलता सरकार की ईमानदारी पर निर्भर करती है जो भ्रष्ट आचरण से मुक्त स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से चुनी जाती है।’’

उन्होंने तर्क दिया कि ‘मुफ्त उपहार’ के तौर पर नकद की पेशकश करने की बढ़ती परिपाटी लोकतंत्र के आधार के लिए ‘मृत्युपरक झटका’ साबित होगी और मुक्त सार्वभौमिक मदान के विरुद्ध होगी।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन कृत्यों के बावजूद निवार्चन आयोग ने चुप्पी साध रखी है।

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