देश की खबरें | भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने में बंगाल सरकार के असहयोग से व्यवधान पड़ा:केंद्र

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्र ने मंगलवार को नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय को बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार के असहयोग और राज्य में भूमि अधिग्रहण के लंबित मुद्दों के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने की परियोजना बाधित हुई है।

नयी दिल्ली, 12 दिसंबर केंद्र ने मंगलवार को नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय को बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार के असहयोग और राज्य में भूमि अधिग्रहण के लंबित मुद्दों के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने की परियोजना बाधित हुई है।

असम में अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने से जुड़े नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को इन याचिकाओं में चुनौती दी गई है।

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि केंद्र सरकार ने भारत-बांग्लादेश सीमा को सुरक्षित करने के लिए बहु-आयामी कदम उठाए हैं।

विधि अधिकारी ने शीर्ष अदालत को बताया कि पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ 2,216.7 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है और 81.5 प्रतिशत बाड़ लगाई जा चुकी है। शेष सीमा पर भी बाड़ लगाने या तकनीकी समाधानों के माध्यम से उसे सुरक्षित करने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं।

मेहता ने पीठ को बताया, ‘‘पश्चिम बंगाल सरकार कहीं अधिक धीमी, अधिक जटिल प्रत्यक्ष भूमि खरीद नीति का पालन कर रही है। यहां तक कि सीमा पर बाड़ लगाने जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए भी राज्य सरकार द्वारा असहयोग किया जा रहा है...।’’

पीठ में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को अवैध प्रवासियों के प्रवेश करने को रोकने, विशेषकर पूर्वोत्तर के राज्यों में घुसपैठ को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताया।

न्यायालय ने धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना आदेश मंगलवार को सुरक्षित रख लिया। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और कपिल सिब्बल की दलीलें भी सुनी।

असम समझौते के दायरे में आने वाले लोगों की नागरिकता निर्धारित करने के लिए यह धारा नागरिकता अधिनियम में एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल की गई थी।

इसमें कहा गया है कि जो लोग 1985 में संशोधित किये गए नागरिकता अधिनियम के अनुसार, बांग्लादेश सहित अन्य निर्धारित क्षेत्रों से 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए थे और तब से पूर्वोत्तर राज्य के निवासी हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा।

परिणामस्वरूप, यह प्रावधान असम में रह रहे प्रवासियों, खासकर बांग्लादेश से आए लोगों को नागरिकता प्रदान करने के लिये ‘कट ऑफ’ तारीख 25 मार्च,1971 तय करता है।

न्यायालय में दाखिल किये गये हलफनामे में केंद्र ने कहा कि इस प्रावधान के तहत 17,861 लोगों को नागरिकता प्रदान की गई है।

न्यायालय द्वारा सात दिसंबर को पूछे गये सवाल का जवाब देते हुए केंद्र ने कहा कि 1966-1971 की अवधि के संदर्भ में विदेशी न्यायाधिकरण के आदेशों के तहत 32,381 ऐसे लोगों को पता लगाया गया जो विदेशी थे।

न्यायालय ने यह भी पूछा था कि 25 मार्च 1971 के बाद भारत में अवैध तरीके से घुसे प्रवासियों की अनुमानित संख्या कितनी है, इस पर केंद्र ने जवाब देते हुए कहा कि अवैध प्रवासी बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के गुप्त तरीके से देश में प्रवेश कर लेते हैं।

केंद्र ने कहा, ‘‘अवैध रूप से रह रहे ऐसे विदेशी नागरिकों का पता लगाना, उन्हें हिरासत में लेना और निर्वासित करना एक जटिल प्रक्रिया है। चूंकि देश में ऐसे लोग गुप्त तरीके से और चोरी-छिपे प्रवेश कर जाते हैं, इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे ऐसे अवैध प्रवासियों का सटीक आंकड़ा जुटाना संभव नहीं है।’’

सरकार ने कहा कि 2017 से 2022 तक पिछले पांच वर्षों में 14,346 विदेशियों को निर्वासित किया गया है।

केंद्र ने कहा कि वर्तमान में असम में 100 विदेशी न्यायाधिकरण काम कर रहे हैं और 31 अक्टूबर 2023 तक 3.34 लाख से अधिक मामले निपटाए जा चुके हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि एक दिसंबर 2023 तक विदेशी न्यायाधिकरण के आदेशों से संबद्ध 8,461 मामले गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।

सरकार ने असम पुलिस के कामकाज, सीमाओं पर बाड़ लगाने, सीमा पर गश्त और घुसपैठ को रोकने के लिए उठाये गये अन्य कदमों का भी विवरण दिया।

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